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पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

पशुओं का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए करे ये उपाय, होगा दोगुना फायदा

किसान भाइयों आजकल दूध और दूध से बने पदार्थ की बहुत मांग रहती है। पशुपालन से किसानों को बहुत लाभ मिलता है। पशुपालन का असली लाभ तभी मिलता है जब उसका पशु पर्याप्त मात्रा में दूध दे और दूध में अच्छा फैट यानी वसा हो। 

क्योंकि बाजार में दूध वसा के आधार पर महंगा व सस्ता बिकता है। आइये जानते हैं कि पशुओं में दूध उत्पादन कैसे बढ़ाया जाये। 

 किसान भाइयों आपको अच्छी तरह से जान लेना चाहिये कि पशुओं में दूध उत्पादन उतना ही बढ़ाया जा सकता है जितना उस नस्ल का पशु दे सकता है।  

ऐसा ही फैट के साथ होता है। दूध में वसा यानी फैट की मात्रा पशु के नस्ल पर आधारित होती है। ये बातें आपको पशु खरीदते समय ध्यान रखनी होंगी और जैसी आपको जरूरत हो उसी तरह का पशु खरीदें।

दूध उत्पादन कम होने के कारण (Due to low milk production)

  1. संतुलित आहार की कमी होना।
  2. पशुओें की देखभाल में कमी होना।
  3. बच्चेदानी की खराबी व अन्य बीमारियों का होना
  4. टीके लगाने का साइड इफेक्ट होना
  5. चारा-पानी के प्रबंधन में कमी होना।

पशुओं की देखभाल कैसे करें

दुधारू पशु की देखभाल किसान भाइयों को 24 घंटे करनी चाहिये। कोई-कोई किसान भाई कहते हैं कि अपने पशुओं के चारे-दाने पर बहुत ज्यादा खर्च कर रहे हैं लेकिन फिर भी उनका दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है।  

आपने किसी जानवर को दूध के हिसाब से 5 किलो सुबह और 5 किलो शाम दाना खिला दिया , उसके बाद भी दूध उत्पादन नहीं बढ़ता है। आपको दो समय की जगह पर उतनी ही मात्रा को चार बार देना है और समय-समय पर पानी का प्रबंध भी करना है।

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कैसा होना चाहिये पशुओं का संतुलित आहार

किसान भाइयों  आपको पशुओं की नस्ल, उनकी कद-काठी एवं दूध देने की क्षमता के अनुसार संतुलित आहार देना चाहिये। आइये जानते हैं कुछ खास बातें:-

  1. पशुओं के संतुलित आहार में, 60 प्रतिशत हरा चारा खिलाना चाहिये तथा 40 प्रतिशत सूखा चारा जिसमें दाना व खल भी शामिल है, खिलाना चाहिये।
  2. हरे चारे में घास, हरी फसल व बरसीम आदि देना चाहिये
  3. सूखे चारे में गेहूं, मक्का, ज्वार-बाजरा आदि का मिश्रण बनाकर भूसे के साथ देना चाहिये।
  4. पशुओं को दिन में 30 से 32 लीटर पानी देना चाहिये।
  5. पशुओं में दूध का उत्पादन बढ़ाने गाय को प्रतिदिन 5 किलो और भैंसको प्रतिदिन 10 किलो दाना खिलाना चाहिये।
  6. वैसे तो पशुओं को सुबह शाम सानी की जाती है लेकिन कोशिश करें कि कम से कम तीन बार तो आहार दें और कम से कम इतनी ही बार उन्हें पानी पिलायें।
  7. खली में सरसों ,अलसी व बिनौले की खली देना पशुओं के लिए उत्तम है। इससे दूध और उसका फैट बढ़ता है।

संतुलित आहार का मिश्रण कैसे तैयार करें

  1. गेहूं, जौ, बाजरा और मक्का का दानें से संतुलित आहार तैयार करें। आहार में दाने का हिस्सा 35 प्रतिशत रखना चाहिये।
  2. संतुलित आहार बनाते समय खली का विशेष ध्यान रखना चाहिये। क्षेत्र के हिसाब से अलग-अलग तरह की खली मिलती है। वैसे दूध की क्वालिटी अच्छी करने में सरसों की खली सबसे अच्छी मानी जाती है। यदि किसी क्षेत्र में सरसों की खली न मिले तो वहां पर मूंगफली की खली, अलसी की खली या बिनौला की खली का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। आहार में खली की मात्रा 30 प्रतिशत होनी चाहिये।
  3. चोकर या चूरी भी पशुओं के दूध बढ़ाने में बहुत सहायक हैं। चोकर या चूरी में गेहूं का चोकर,चना की चूरी, दालों की चूरी और राइस ब्रान आदि का प्रयोग संतुलित आहार में किया जाना चाहिये। आहार में चोकर या चूरी की मात्रा भी एक तिहाई रखनी चाहिये।
  4. खनिज लवण दो किलो या अन्य साधारण नमक एक किलो पशुओं को देने से उनका हाजमा सही रहता है तथा पानी भी अधिक पीते हैं। इससे उनके दूध उत्पादन की क्षमता में बढ़ोतरी होती है।
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मौसम के अनुसार करें पशुओं की देखभाल

हमारे देश में प्रमुख रूप से सर्दी, गर्मी और बरसात के मौसम होते हैं। इन मौसमों में पशुओं की देखभाल करनी जरूरी होती है।

  1. चाहे कोई सा मौसम हो पशुओं को स्वच्छ व ताजा पानी पिलाना चाहिये। ताजे पानी से वो पेट भर कर पानी पी लेगा। बासी व गंदा पानी पीने से अनेक तरह की बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। सर्दियों में ठंडा बर्फीला और गर्मियों में गर्म पानी होने से पशु अपनी प्यास का आधा ही पानी पी पाता है। इससे उसके स्वास्थ्य को तो नुकसान होता ही है और उसके दुग्ध उत्पादन पर भी विपरीत असर पड़ता है।
  2. आवास का प्रबंधन करना होगा। गर्मियों में पशुओं को गर्मी के प्रकोप से बचाना होता है। उन्हें प्रचंड धूप व गर्म हवा लू से बचायें। धूप के समय उनको साये में बनी पशुशाला में रखें। उन्हें अधिक बार पानी पिलायें। पानी पर्याप्त मात्रा में हो तो दिन में एक बार उन्हें ताजे पानी से नहलायें। इससे उनके शरीर का तापमान सामान्य रहेगा और स्वस्थ रहकर दुग्ध उत्पादन बढ़ा पायेंगे।
  3. सर्दियों में पशुओं के आवास का विशेष प्रबंधन करना होता है। शाम को या जिस दिन अधिक सर्दी हो, तब उन्हें साये वाले पशुशाला में रखें। उनके शरीर पर बोरे की पल्ली ओढ़ायें। पशु शाला में थोड़ी देर के लिए आग जलायें। आग जलाते समय स्वयं मौजूद रहें। जब आपका कहीं जाना हो तो आग को बुझायें । यदि तसले आदि में आग जलाई हो तो वहां से हटा दें।

मौसम के अनुसार आहार पर भी दें ध्यान

मौसम के बदलाव के अनुसार पशुओं के आहार में भी बदलाव करना चाहिये। गर्मियों के मौसम में संतुलित आहार बनाते समय किसान भाइयों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि वो अपने पशुओं को ऐसी कोई चीज न खिलायें जिसकी तासीर गर्म होती हो। इस समय गुड़ और बाजरे से परहेज करना चाहिये।

गर्मियों के मौसम का आहार

गर्मियों के लिए आहार में गेहूं, जौ, मक्के का दलिया,चने का खोल, मूंग का छिलका, चने की चूरी, सोयाबीन, उड़द, जौ, तारामीरा,आंवला और सेंधा नमक का मिश्रण तैयार करके पशुओं को देना चाहिये।

सर्दियों के मौसम का आहार

सर्दियों के मौसम के आहार में गेहूं, मक्का, बाजरा का दलिया, चने की चूरी, सोयाबीन, दाल की चूरी, हल्दी, खाद्य लवण व सादा नमक का मिश्रण तैयार करें। 

इसके अलावा सर्दियों के मौसम में गुड़ और सरसों का तेल भी दें। बाजरा और गुड़ का दलिया भी अलग से दे सकते हैं। यह ध्यान रहे कि यह दलिया केवल अधिक सर्दियों में ही दें। 

खास बात

पशुओं को खली देने के बारे में भी सावधानी बरतें। सर्दियों के समय हम खली को रात भर भिगोने के बाद पशुओं को देते हैं। गर्मियों में ऐसा नहीं करना चाहिये। सानी करने से मात्र दो-तीन घंटे पहले ही भिगो कर ही दें।

फैट्स बढ़ाने के तरीके

पशुओं में फैट्स उनकी नस्ल की सीमा से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता है। फिर भी कोई पशु अपनी नस्ल की सीमा से कम फैट देता है तो उसको बढ़ाने के लिए निम्न उपाय करें:-

  1. शाम को जब पशुओं को रात्रि विश्राम के लिए बांधा जाये तो उस समय 300 ग्राम सरसों के तेल को 300 ग्राम गेहूं के आटे में मिलाकर दें और उसके बाद पानी न दें।
  2. अच्छा फैट देने वाले किसान भाइयों को चाहिये कि वो दूध दुहने से दो घंटे पहले ही पानी पिलायें, उसके बाद नहीं । ऐसा करने से फैट बढ़ेगा।
  3. दूध दुहने से पहले बच्चे को पहले दूध पिलायें क्योंकि पहले वाले दूध में फैट कम होता है और बाद वाले दूध में फैट अधिक होता है। यदि आपका दुधारू पशु दस-12 लीटर दूध देता है तो उसको एक चौथाई दूध दुह कर बर्तन बदल लें। बाद में जो दूध दुहेंगे उसमें फैट पहले वाले से अधिक निकलेगा।

इस राज्य सरकार ने होली के अवसर पर गन्ना किसानों के खाते में भेजे 2 लाख करोड़

इस राज्य सरकार ने होली के अवसर पर गन्ना किसानों के खाते में भेजे 2 लाख करोड़

मुख्यमंत्री ने बताया है, कि भारत में नया रिकॉर्ड स्थापित होने जा रहा है। पहली बार दो लाख करोड़ से ज्यादा का गन्ना भुगतान किसानों भाइयों के बैंक खातों में हस्तांतरित हो रहा है। भारत के विभिन्न राज्य ऐसे भी हैं, जिनका सालाना बजट भी दो लाख करोड़ नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा सोमवार को यह दावा किया गया है, कि योगी सरकार द्वारा गन्ना किसानों को दलालों की चपेट से निजात प्रदान की है। विगत छह सालों के उनके शासन में प्रदेश में एक भी किसान ने आत्महत्या नहीं की है। मुख्यमंत्री ने होली से पूर्व गन्ना किसानों के बैंक खाते में शेष भाव के दो लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित किए जाने के मोके पर कहा, कि पिछली सरकारों में किसान आत्महत्या को मजबूर रहता था। आज मैं गर्व से कह सकता हूं कि बीते छह सालों में उत्तर प्रदेश में कोई भी किसान भाई आत्महत्या करने पर मजबूर नहीं हुआ है। यह इसलिए संभव हो पाया है, कि हमारी सरकार में किसानों भाइयों के गन्ना मूल्य का भुगतान कर दिया गया है। समयानुसार धान एवं गेहूं की खरीद की है। योगी जी ने कहा है, कि याद कीजिए एक वक्त वो था जब राज्य के गन्ना किसान खेतों में ही अपनी फसल को जलाने के लिए मजबूर थे। उन्हें सिंचाई हेतु न तो वक्त से जल प्राप्त होता था और ना ही बिजली मुहैय्या कराई जाती थी। इतना ही नहीं समुचित समयानुसार किसानों की बकाया धनराशि का भुगतान भी नहीं हो पाता था। इसी कड़ी में योगी ने आगे बताया कि आज का दिन गन्ना किसानों के लिए ऐतिहासिक होने वाला है, जब होली की पूर्व संध्या पर सोमवार को दो लाख करोड़ की धनराशि उनके बैंक खातों में सीधे तौर पर हस्तांतरित करदी है। सरकार के इस ऐतिहासिक कदम से प्रदेश के गन्ना किसानों की होली की खुशी को दोगुना कर दिया जाएगा।

दलालों की दलाली की बंद

योगी जी ने कहा है, कि विगत समय पर जल, खाद एवं उत्पादन का सही भाव न मिलने की वजह से खेती-किसानी नुकसान का सौदा मानी जाती थी। हमने गन्ना किसानों को दलालों के दलदल से मुक्ति दिलाई है। आजकल किसान भाइयों को खरीद पर्ची हेतु इधर-उधर चक्कर नहीं काटने पड़ते हैं। उनकी पर्ची उनके स्मार्टफोन में पहुँच जाती है। मुख्यमंत्री ने बताया, कि आज किसानों के नाम पर शोषण एवं दलाली करने वालों की दुकान बंद हो गई हैं। ऐसी स्थिति में मानी सी बात है, कि उन्हें समस्या रहेगी।

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कोरोना महामारी के समय में भी 119 चीनी मिलें चालू हो रही थीं

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी का कहना है, कि विगत सरकारों के कार्यकाल में जहां चीनी मिलें बंद कर दी जाती थी। अन्यथा उचित गैर उचित भावों में बेच दी जाती थीं। जबकि, योगी सरकार द्वारा किसी चीनी मिल को बंद नहीं किया गया। साथ ही, बंद पड़े चीनी मिलों को पुनः आरंभ कराने का काम किया गया है। उन्होंने बताया कि, मुंडेरवा एवं पिपराइच चीनी मिलों को पुनः सुचारु किया गया है। कोरोना महामारी के चलते जब विश्व की चीनी मिलें बंद हो गई थीं। उस दौर में भी उत्तर प्रदेश में 119 चीनी मिलें चालू हो रही थीं।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की इन तीन प्रजातियों को विकसित किया है

गन्ना उत्पादन के मामले में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश माना जाता है। फिलहाल भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई प्रजातियां तैयार करली गई हैं। इससे किसान भाइयों को बेहतरीन उत्पादन होने की संभावना रहती है। भारत गन्ना उत्पादन के संबंध में विश्व में अलग स्थान रखता है। भारत के गन्ने की मांग अन्य देशों में भी होती है। परंतु, गन्ना हो अथवा कोई भी फसल इसकी उच्चतम पैदावार के लिए बीज की गुणवत्ता अच्छी होनी अत्यंत आवश्यक है। शोध संस्थान फसलों के बीज तैयार करने में जुटे रहते हैं। हमेशा प्रयास रहता है, कि ऐसी फसलों को तैयार किया जाए, जोकि बारिश, गर्मी की मार ज्यादा सहन कर सकें। मीडिया खबरों के मुताबिक, भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान द्वारा गन्ने की 3 नई ऐसी ही किस्में तैयार की गई हैं। यह प्रजातियां बहुत सारी प्राकृतिक आपदाओं को सहने में सक्षम होंगी। साथ ही, किसानों की आमदनी बढ़ाने में भी काफी सहायक साबित होंगी।

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जानकारी के लिए बतादें कि गन्ने की इस प्रजाति की बुवाई हरियाणा, पश्चिमी उत्त्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब और राजस्थान में की जा सकती है। यहां के मौसम के साथ-साथ मृदा एवं जलवायु भी इस प्रजाति के लिए उपयुक्त है। साथ ही, इसका रंग भी हरा एवं मोटाई थोड़ी कम है। इससे प्रति हेक्टेयर 82.8 टन उपज मिल जाती है। इसके रस में शर्करा 17 फीसद, पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.22 प्रतिशत है।

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इस किस्म की बुवाई उत्तर प्रदेश में की जा सकती है। इस हम प्रजाति के गन्ना के रंग की बात करें तो हल्का पीले रंग का होता है। यदि उत्पादन की बात की जाए तो एक हेक्टेयर में इसका उत्पादन 95 टन गन्ना हांसिल होगा। इसके अंतर्गत 18.60 प्रतिशत शर्करा, पोल प्रतिशक 14.55 प्रतिशत है। किसान इससे अच्छी उपज हांसिल सकते हैं।

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अनुसंधान संस्थान द्वारा लंबे परिश्रम के उपरांत यह किस्म तैयार की है। इसके रस में 17.65 प्रतिशत शर्करा एवं पोल प्रतिशत केन की मात्रा 13.42 प्रतिशत है। इस किस्म के गन्ने की लंबाई थोड़ी कम और मोटी ज्यादा है। इस गन्ने की बुवाई उत्तराखंड, पंजाब और हरियाणा में की जा सकती है। यहां का मौसम इस प्रजाति के लिए उपयुक्त माना जाता है। इसका रंग भी हल्का पीला होता है। अगर उत्पादन की बात की जाए, तो यह प्रति हेक्टेयर 91.5 टन उत्पादन मिलेगी।यह किस्म लाल सड़न रोग से लड़ने में समर्थ है।
किसानों को 81 क्विंटल तक उपज देने की क्षमता रखती हैं गेंहू की ये 5 उन्नत किस्में

किसानों को 81 क्विंटल तक उपज देने की क्षमता रखती हैं गेंहू की ये 5 उन्नत किस्में

भारतीय कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की गई गेहूं की टॉप पांच उन्नत किस्में श्रीराम 303 गेहूं की किस्म, GW 322 किस्म, पूसा तेजस 8759 किस्म, श्री राम सुपर 111 गेहूं और HI 8498 किस्म प्रति हेक्टेयर 81 क्विंटल तक उत्पादन देने में सक्षम हैं। साथ ही, यह समस्त किस्में 100 से 120 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं। गेहूं की खेती से ज्यादा मुनाफा पाने के लिए कृषकों को गेहूं की उन्नत किस्मों का चुनाव करना चाहिए। जिससे कि किसान कम वक्त में ही ज्यादा से ज्यादा उपज हाँसिल कर उसे बाजार में बेच सकें। साथ ही, कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा भी समयानुसार फसलों की नवीन-नवीन किस्मों को तैयार किया जाता है। इसी कड़ी में आज हम देश के कृषकों के लिए भारतीय कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित की गई गेहूं की टॉप पांच उन्नत किस्मों की जानकारी लेकर आए हैं। जो 100 से 120 दिन में पक जाती हैं। साथ ही, ये किस्में 81 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती हैं। गेहूं की जिन टॉप पांच उन्नत किस्मों के बारे में हम चर्चा कर रहे हैं। वह श्रीराम 303 गेहूं की किस्म, GW 322 किस्म, पूसा तेजस 8759 किस्म, श्रीराम सुपर 111 गेहूं और HI 8498 किस्म हैं।

गेहूं की टॉप पांच उन्नत किस्में इस प्रकार हैं

HI 8498 किस्म

गेहूं की HI 8498 किस्म को जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के द्वारा विकसित की गई है। इससे किसान प्रति हेक्टेयर 77 क्विंटल तक उत्पादन हांसिल कर सकते हैं। साथ ही, यह प्रजाति 125-130 दिन में पूर्णतय पककर तैयार हो जाती है।

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श्रीराम 303 गेहूं की किस्म

गेहूं की यह किस्म खेत में 156 दिनों के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। इसका औसतन पैदावार तकरीबन 81.2 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक किसानों को मिलती है। गेहूं की यह श्रीराम 303 गेहूं की किस्म पीला, भूरा और काला रतुआ रोधी किस्म है।


 

GW 322 किस्म

गेहूं की यह किस्म 3-4 बार सिंचाई के अंतर्गत ही पक जाती है। गेहूं की GW 322 किस्म से भारत के किसान लगभग 60-65 क्विंटल उपज हांसिल कर सकते हैं। इस किस्म की संपूर्ण फसल लगभग 115-125 दिन की समयावधि में बेहतर ढ़ंग से पककर तैयार हो जाती है।

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पूसा तेजस 8759 किस्म

गेहूं की पूसा तेजस किस्म 110 से 115 दिनों के समयांतराल में पककर तैयार हो जाती है। बतादें, कि गेहूं की यह किस्म जबलपुर के कृषि विश्वविद्यालय में विकसित की गई गई है। इसे किसान प्रति हेक्टेयर तकरीबन 70 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।


 

श्री राम सुपर 111 गेहूं

गेहूं की यह उन्नत किस्म किसानों के लिए अत्यंत फायदेमंद है। क्योंकि यह किस्म बंजर भूमि पर भी सुगमता से उत्पादित की जा सकती है। गेहूं की श्रीराम सुपर 111 गेहूं से किसान प्रति हेक्टेयर लगभग 80 क्विंटल तक उपज हांसिल कर सकते हैं। साथ ही, इस प्रजाति से किसान बंजर भूमि पर तकरीबन 30 क्विंटल/हेक्टेयर तक उपज हांसिल कर सकते हैं। गेहूं की यह प्रजाति 105 दिनों के अंदर पक कर तैयार हो जाती है।

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

करेले बोने की इस शानदार विधि से किसान कर रहा लाखों का मुनाफा

आजकल हर क्षेत्र में काफी आधुनिकीकरण देखने को मिला है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए करेला की खेती बेहद शानदार सिद्ध हो सकती है। 

दरअसल, जो करेला की खेती से प्रतिवर्ष 20 से 25 लाख रुपये की शानदार आमदनी कर रहे हैं। हम जिस सफल किसान की हम बात कर रहे हैं, वह उत्तर प्रदेश के कानुपर जनपद के सरसौल ब्लॉक के महुआ गांव के युवा किसान जितेंद्र सिंह है। 

यह पिछले 4 वर्षों से अपने खेत में करेले की उन्नत किस्मों की खेती (Cultivation of Varieties of bitter gourd) करते चले आ रहे हैं।

किसान जितेंद्र सिंह के अनुसार, पहले इनके इलाके के कृषक आवारा और जंगली जानवरों की वजह से अपनी फसलों की सुरक्षा व बचाव नहीं कर पाते हैं। 

क्योंकि, किसान अपने खेत में जिस भी फसलों की खेती करते थे, जानवर उन्हें चट कर जाते थे। ऐसे में युवा किसान जिंतेद्र सिंह ने अपने खेत में करेले की खेती करने के विषय में सोचा। क्योंकि, करेला खाने में काफी कड़वा होता है, जिसके कारण जानवर इसे नहीं खाते हैं।

करेला की खेती से संबंधित कुछ विशेष बातें इस प्रकार हैं ?  

किसानों के लिए करेला की खेती (Bitter Gourd Cultivation) से अच्छा मुनाफा पाने के लिए इसकी खेती जायद और खरीफ सीजन में करें। साथ ही, इसकी खेती के लिए बलुई दोमट या दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी जाती है।

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किसान करेले की बुवाई (Sowing of Bitter Gourd) को दो सुगम तरीकों से कर सकते हैं। एक तो सीधे बीज के माध्यम से और दूसरा नर्सरी विधि के माध्यम से किसान करेले की बिजाई कर सकते हैं। 

गर आप करेले की खेती (Karele ki kheti) नदियों के किनारे वाले जमीन के हिस्से पर करते हैं, तो आप करेल की अच्छी पैदावार प्राप्त कर सकते हैं।

करेले की उन्नत किस्में इस प्रकार हैं ?

करेले की खेती से शानदार उपज हांसिल करने के लिए कृषकों को करेले की उन्नत किस्मों (Varieties of Bitter Gourd) को खेत में रोपना चाहिए। वैसे तो बाजार में करेले की विभिन्न किस्में उपलब्ध हैं। 

परंतु, आज हम कुछ विशेष किस्मों के बारे में बताऐंगे, जैसे कि- हिसार सलेक्शन, कोयम्बटूर लौंग, अर्का हरित, पूसा हाइब्रिड-2, पूसा औषधि, पूसा दो मौसमी, पंजाब करेला-1, पंजाब-14, सोलन हरा और सोलन सफ़ेद, प्रिया को-1, एस डी यू- 1, कल्याणपुर सोना, पूसा शंकर-1, कल्याणपुर बारहमासी, काशी सुफल, काशी उर्वशी पूसा विशेष आदि करेला की उन्नत किस्में हैं। 

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किसान किस विधि से करेले की खेती कर रहा है ?

युवा किसान जितेंद्र सिंह अपने खेत में करेले की खेती ‘मचान विधि’ (Scaffolding Method) से करते हैं। इससे उन्हें काफी अधिक उत्पादन मिलती है। 

करेले के पौधे को मचान बनाकर उस पर चढ़ा देते हैं, जिससे बेल निरंतर विकास करती जाती है और मचान के तारों पर फैल जाती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने खेत में मचान बनाने के लिए तार और लकड़ी अथवा बांस का इस्तेमाल किया जाता है। 

यह मचान काफी ऊंचा होता है। तुड़ाई के दौरान इसमें से बड़ी ही सुगमता से गुजरा जा सकता है। करेले की बेलें जितनी अधिक फैलती हैं उससे उतनी ही अधिक उपज हांसिल होती है। 

वे बीघा भर जमीन से से ही 50 क्विंटल तक उत्पादन उठा लेते हैं। उनका कहना है, कि मचान बनाने से न तो करेले के पौधे में गलन लगती है और ना ही बेलों को क्षति पहुँचती है।

करेले की खेती से कितनी आय की जा सकती है ?

करेले की खेती से काफी शानदार उत्पादन करने के लिए किसान को इसकी उन्नत किस्मों की खेती करनी चाहिए। जैसे कि उपरोक्त में बताया गया है, कि युवा किसान जितेंद्र सिंह पहले अपने खेत में कद्दू, लौकी और मिर्ची की खेती किया करते थे, 

जिसे निराश्रित पशु ज्यादा क्षति पहुंचाते थे। इसलिए उन्होंने करेले की खेती करने का निर्णय लिया है। वहीं, आज के समय में किसान जितेंद्र 15 एकड़ में करेले की खेती कर रहे हैं और शानदार मुनाफा उठा रहे हैं। 

जितेंद्र के मुताबिक, उनका करेला सामान्य तौर पर 20 से 25 रुपये किलो के भाव पर आसानी से बिक जाता है। साथ ही, बहुत बार करेला 30 रुपये किलो के हिसाब से भी बिक जाता है। अधिकांश व्यापारी खेत से ही करेला खरीदकर ले जाते हैं। 

उन्होंने यह भी बताया कि एक एकड़ खेत में बीज, उर्वरक, मचान तैयार करने के साथ-साथ अन्य कार्यों में 40 हजार रुपये की लागत आती है। वहीं, इससे उन्हें 1.5 लाख रूपये की आमदनी सरलता से हो जाती है। 

जितेंद्र सिंह तकरीबन 15 एकड़ में खेती करते हैं। ऐसे में यदि हिसाब-किताब लगाया जाए, तो वह एक सीजन में करेले की खेती से तकरीबन 15-20 लाख रुपये की आय कर लेते हैं। 

उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

उत्तर प्रदेश के इन जनपदों में शुरू हो चुकी है MSP पर धान की खरीद

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि पूर्वी जोन में रायबरेली, उन्नाव, चित्रकूट और कानपुर समेत विभिन्न जनपदों में 1 नवंबर से धान की खरीद चालू हो जाएगी। जो कि अगले वर्ष 28 फरवरी तक चलती रहेगी। साथ ही, धान की बिक्री करने के लिए संपूर्ण राज्य में अब तक 1 लाख 66 हजार 645 किसानों ने पंजीकरण करवाया है। उत्तर प्रदेश में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीद शुरू हो गई है। सरकार की ओर से धान क्रय केंद्र पर पुख्ता व्यवस्थाऐं की गई हैं। हालांकि, क्रेय केंद्र पर धान बिक्री के लिए बहुत कम तादात में किसान आ रहे हैं। अब ऐसी स्थिति में कहा जा रहा है, कि अगले एक सप्ताह के उपरांत धान की खरीद में तीव्रता आएगी। क्योंकि इस बार मानसून विलंब से आने के कारण किसानों ने धान की रोपाई विलंभ से आरंभ की थी। दरअसल, अब तक कई क्षेत्रों में धान की फसल पक कर पूरी तरह से तैयार नहीं हो पायी है। वहीं, पश्चमी उत्तर प्रदेश में किसान अगेती धान की रोपाई करने में कामयाब हो गए थे। अब ऐसी स्थिति में वे धान विक्रय के लिए क्रय केंद्रों पर पहुंच रहे हैं।

धान खरीद के लिए राज्यभर में 4000 क्रय केंद्र स्थापित किए गए हैं

साथ ही, क्रय केंद्रों पर किसान भाइयों को किसी प्रकार की कोई दिक्कत न हो पाए इसके लिए प्रशासन की ओर से पूरी तैयारी की गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सरकार के मुताबिक, फसल सीजन 2023- 24 के लिए किसानों से 2 केटेगरी के धान खरीदे जाएंगे। इसमें ‘धान कॉमन’ और ‘ग्रेड ए’ धान शम्मिलित हैं। विशेष बात यह है, कि ‘धान कॉमन’ की एमएसपी 2183 रुपये प्रति कुंतल निर्धारित की गई है। वहीं, ‘ग्रेड ए’ को 2203 रुपये प्रति कुंतल की दर से खरीदा जाएगा। विशेष बात यह है, कि धान खरीदने के लिए पूरे राज्य में 4000 क्रय केंद्र निर्मित किए गए हैं।

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किसानों को पंजीकरण करवाना ही पड़ेगा

यदि किसान भाई एमएसपी पर धान की बिक्री करना चाहते हैं, तो उनको पहले आधिकारिक वेबसाइट https://fcs.up.gov.in/ अथवा मोबाइल एप UP KISAN MITRA पर जाकर पंजीकरण करवाना होगा।

एमएसपी पर धान खरीदी की अंतिम तिथि

साथ ही, किसानों को जानकारी के लिए बतादें कि यूपी सरकार भिन्न-भिन्न जोन में दो फेज में धान की खरीद करेगी। प्रथम फेज के अंतर्गत पश्चिमी जोन में धान की खरीद की जाएगी। इसमें लखनऊ मंडल के बरेली, आगरा, मुरादाबाद, सहारनपुर अलीगढ़, मेरठ, हरदोई, सीतापुर, लखीमपुर और झांसी मंडल के समस्त जनपद शम्मिलित हैं। इन जनपदों में 1 अक्टूबर से 31 जनवरी तक एमएसपी पर धान की खरीद की जाएगी।
आलू के बाद अब गेहूं का समुचित मूल्य ना मिलने पर किसानों में आक्रोश

आलू के बाद अब गेहूं का समुचित मूल्य ना मिलने पर किसानों में आक्रोश

उत्तर प्रदेश में आलू का बेहद कम दाम मिलने की वजह से किसानों में काफी आक्रोश है। ऐसी हालत में फिलहाल गेहूं के दाम समर्थन मूल्य से काफी कम प्राप्त होने पर शाजापुर मंडी के किसान काफी भड़के हुए हैं, उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए परेशानियों पर ध्यान देने की बात कही गई है। आलू के उपरांत फिलहाल यूपी के किसान गेहूं के दाम कम मिलने से परेशान हैं। प्रदेश के किसान गेहूं का कम भाव प्राप्त होने पर राज्य की भारतीय जनता पार्टी की सरकार से गुस्सा हैं। प्रदेश की शाजापुर कृषि उत्पादन मंडी में उपस्थित किसानों ने सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन व नारेबाजी की है। किसानों ने बताया है, कि कम भाव मिलने के कारण उनको हानि हो रही है एवं यदि गेहूं के भाव बढ़ाए नहीं गए तो आगे भी इसी तरह धरना-प्रदर्शन चलता रहेगा। कृषि उपज मंडी में जब एक किसान भाई अपना गेहूं बेचने गया, जो 1981 रुपये क्विंटल में बिका। किसान भाई का कहना था, कि केंद्र सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2125 रुपये क्विंटल निर्धारित किया गया है। इसके बावजूद भी यहां की मंडी में समर्थन मूल्य की अपेक्षा में काफी कम भाव पर खरीद की जा रही है। उन्होंने चेतावनी देते हुए बताया है, कि सरकार को अपनी आंखें खोलनी होंगी एवं मंडियों पर कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने बताया है, कि सरकार किसानों की दिक्कत परेशानियों को समझें। ये भी देखें: केंद्र सरकार का गेहूं खरीद पर बड़ा फैसला, सस्ता हो सकता है आटा आक्रोशित एवं क्रोधित किसानों का नेतृत्व किसानों के संगठन भारतीय किसान संघ के जरिए किया जा रहा है। संगठन का मानना है कि, सरकार को किसानों की मांगों की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। खून-पसीना एवं कड़े परिश्रम के उपरांत भी किसानों को उनकी फसल का समुचित भाव नहीं मिल पा रहा है।

आलू किसानों की परिस्थितियाँ काफी खराब हो गई हैं

उत्तर प्रदेश में आलू उत्पादक किसान भाइयो की स्थिति काफी दयनीय है। आलू के दाम में गिरावट आने की वजह से किसान ना कुछ दामों में अपनी फसल बेचने पर मजबूर है। बहुत से आक्रोशित किसान भाइयों ने तो अपनी आलू की फसल को सड़कों पर फेंक कर अपना गुस्सा व्यक्त किया है। ऐसी परिस्थितियों में विरोध का सामना कर रही उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 650 रुपये प्रति क्विंटल के मुताबिक आलू खरीदने का एलान किया है। परंतु, किसान इसके उपरांत भी काफी गुस्सा हैं। कुछ किसानों द्वारा आलू को कोल्ड स्टोर में रखना चालू कर दिया है। दामों में सुधार होने पर वो बेचेंगे, परंतु अब कोल्ड स्टोर में भी स्थान की कमी देखी जा रही है। ऐसी स्थितियों के मध्य किसान हताश और निराश हैं।
इस राज्य ने 40 टन आलू को ओमान निर्यात किया, आलू की एमएसपी भी निर्धारित की गई

इस राज्य ने 40 टन आलू को ओमान निर्यात किया, आलू की एमएसपी भी निर्धारित की गई

प्रदेश सरकार निरंतर किसानों के फायदे में कदम उठाती आ रही है। राज्य सरकार की तरफ से अब निर्यात को बढ़ाने पर अधिक बल दिया है। इससे प्रदेश के किसानों की आमदनी में भी अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी भी हो पाएगी। प्रत्येक किसान का यही प्रयास और उम्मीद रहती है, कि उसको प्रत्येक फसल से आमदनी मिल सके। हर उत्पादन से उसको मुनाफा हो भी जाती है। आलू, सब्जी की ऐसी पैदावार होती है, कि इससे किसान काफी हद तक आमदनी कर लेते हैं। आलू की पैदावार भी उन्हीं में से एक है। मुख्य बात यह है, कि आलू की ऐसी विशेष किस्में विकसित की जा रही हैं इससे किसान प्रत्यक्ष रूप से लाभ उठा सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आलू उत्पादन से जुड़ी बड़ी कार्रवाई की गई है। फिलहाल, उत्तर प्रदेश सरकार आलू की पैदावार को लेकर बड़ी कार्रवाई कर रही है। बतादें, कि आलू के साथ-साथ बाकी बागवानी फल सब्जियों को सड़क पर फेंकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी।

किसानों ने मजबूरन अपना आलू सड़कों पर फेंका

इस वर्ष भारत में आलू की बुरी हालत रही है। भारत के विभिन्न हिस्सों में
आलू का भाव काफी ज्यादा गिर गया है। इसके प्रभाव से किसानों को अपने आलू को सड़कों पर फेंकते हुए देखा गया है। किसानों के आलू की कीमत 1 रुपये से 2 रुपये प्रति किलो तक गिर गई। किसानों का मंड़ी तक आलू ले जाने का खर्चा तक भी नहीं निकल पा रहा था। यह भी पढ़ें : शिमला मिर्च, बैंगन और आलू के बाद अब टमाटर की कीमतों में आई भारी गिरावट से किसान परेशान

उत्तर प्रदेश से 40 टन आलू ओमान निर्यात किया है

उत्तर प्रदेश सरकार किसानों के फायदे के लिए निरंतर कदम उठा रही है। प्रदेश के किसानों का आलू सरकारी मदद से विदेश निर्यात किया जा रहा है। मीडिया खबरों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के उद्यान कृषि विपणन द्वारा लुलु ग्रुप की मदद से ओमान को 40 टन अनाज निर्यात किया गया है। इसी कड़ी में प्रदेश सरकार का कहना है, कि अन्य उत्पादों को प्रोत्साहन देने के लिए भी सरकार निरंतर कार्य कर रही है। इससे किसानों की आमदनी में भी इजाफा होना निश्चित है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने आलू का एमएसपी प्राइस निर्धारित किया है

किसानों के कहने के मुताबिक, उत्तर प्रदेश सरकार आलू के मिनीमम प्राइस निर्धारित करने में लगी हुई है। उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से आलू का मिनीमम प्राइस रेट 650 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। दरअसल, किसान अपने आलू को उतनी कीमत पर बेच नहीं पा रहे हैं। मंडी में कीमत 800 रुपये प्रति किलो तक पहुंच चुकी है। यहां कीमत कम करना वास्तविकता में परेशान करने वाला है।
उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

उत्तर प्रदेश के आलू का जलवा अब अमेरिका में भी, अलीगढ़ में एग्रीकल्चर एक्सपोर्ट केंद्र खोलने की तैयारी

आलू की खेती से किसान रबी सीजन में करते हैं, किसानों को इससे काफी मुनाफा अर्जित होता है। जैसा कि हम सब जानते हैं, कि खरीफ की फसलों की कटाई का समय आ चुका है। यूपी की उपजाऊ मृदा से हो रही पैदावार निरंतर विदेशों में लोकप्रियता अर्जित कर रही है। यहां पर उगने वाले आलू की मांग सात समुंदर पार भी हो रही है। प्रथम बार यूपी के आलू को अमेरिका के गुनाया में निर्यात किया गया है। किसानों को अपनी समझ और सूझबूझकर से खेती करने के लिए विशेषज्ञों की सलाह की भी जरूरत होती है। उत्तर प्रदेश के आलू का दबदबा विदेशों तक भी है। दरअसल, यूपी के आलू को पहली बार हजारों किलोमीटर दूर स्थित अमेरिका भेजा गया है। यूपी के आलू का जलवा विदेशों में भी है। मीडिया खबरों के अनुसार, फार्मर ग्रुप (FPO) की सहायता से 29 मीट्रिक टन आलू अमेरिका के गुयाना में भेजा गया। बतादें, कि इसके साथ ही योगी सरकार का किसानों की आमदनी दोगुनी करने का सपना भी साकार हो रहा है।

आलू का निर्यात अब सात समुंदर पार भी होगा

वाराणसी के एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी (APEDA) के उप महाप्रबंधक का कहना है, कि आलू को पहली बार व्‍यापारिक रूप से अमेरिका के गुयाना शहर निर्यात किया गया है। उन्‍होंने बताया है, कि निर्यात किए गए आलू को अलीगढ़ के एफपीओ से खरीद कर शीत गृह में पैक किया गया। 29 मीट्रिक टन आलू समुद्र मार्ग के जरिए गुयाना पहुंचेगा।

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अलीगढ़ में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खोलने की मुहिम

बतादें, कि इसी कड़ी में अलीगढ़ के किसान उद्यमी के साथ-साथ निर्यातक भी बन रहे हैं। अलीगढ़ में आलू के उत्पादन को मंदेनजर रखते हुए एग्रीकल्चर एंड प्रोसेस्ड फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट डेवलपमेंट अथॉरिटी अलीगढ़ में कृषि निर्यात केंद्र खोलने की तैयारी कर रहा है। बतादें, कि यदि अलीगढ़ जनपद में एग्रीकल्‍चर एक्‍सपोर्ट सेंटर खुलता है, तो जनपद के आसपास के हजारों लोगों को रोजगार का अवसर भी मिलेगा।

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योगी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने का प्रयास कर रही है

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार बिचौलियों को अलग करके किसानों की आमदनी दोगुनी करने की कोशिश कर रही है। इसी कड़ी में एफपीओ के जरिए से किसानों को निर्यातक बनाया जा रहा है। प्रदेश में योगी सरकार एफपीओ एवं किसान समूहों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार की तरफ प्रोत्साहन देने पर ध्यान केंद्रित कर रही है। किसानों को विदेशों में निर्यात कर बेहतरीन आमदनी देने वाली फसलों की पैदावार करनी चाहिए। किसान केवल पारंपरिक फसलों पर ही आश्रित ना रहें।
पशुओं को आवारा छोड़ने वालों पर राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाही

पशुओं को आवारा छोड़ने वालों पर राज्य सरकार करेगी कड़ी कार्रवाही

योगी सरकार प्रदेश में घूम रहे निराश्रित पशुओं की सुरक्षा के लिए अभियान चलाने जा रही हैं। इसके लिए समस्त जनपदों के अधिकारियों को निर्देश जारी कर दिए गए हैं। उत्तर प्रदेश में सड़कों पर विचरण कर रहे पशुओं को लेकर अक्सर राजनीति होती रहती है। ऐसी स्थिति में सड़कों पर छुट्टा घूम रहे गोवंश को लेकर राज्य सरकार काफी सख्ताई बरत रही है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के समस्त जिला अधिकारियों को सड़कों पर घूम रहे निराश्रित गोवंश को गौशालाओं तक पहुंचाने के निर्देश दिए हैं। उत्तर प्रदेश के पशुधन और दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया है, कि राज्य में यह अभियान चलाकर हम निराश्रित गोवंश का संरक्षण करने के साथ-साथ उन्हें गौशालाओं तक पहुंचाने का काम कर रहे हैं। इसके लिए अधिकारियों को दिशा-निर्देश भी दिए गए हैं। राज्य सरकार की ओर से गौ संरक्षण करने के लिए यह योजना जारी की गई है।

गोवंश संरक्षण हेतु अभियान का समय

उत्तर प्रदेश के पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह का कहना है, कि इस योजना का प्रथम चरण बरेली, झांसी और गोरखपुर मंडल में 10 सितंबर से 25 सितंबर तक सुनिश्चित किया जाएगा। सड़कों पर विचरण कर रहे गोवंश को गोआश्रय तक पहुंचाने का कार्य किया जाएगा। वहीं, इसके साथ ही उनके खान-पान की भी समुचित व्यवस्था की जाएगी। यह भी पढ़ें: योगी सरकार ने मुख्यमंत्री खेत सुरक्षा योजना के लिए 75 से 350 करोड़ का बजट तय किया

पशुओं को छुट्टा छोड़ने वालों पर होगी कानूनी कार्रवाई

उत्तर प्रदेश के पशुधन मंत्री धर्मपाल सिंह ने इन जनपद के किसानों एवं पशुपालकों से निवेदन किया है, कि कोई भी पशुओं को सड़कों पर निराश्रित ना छोड़ें। यदि कोई भी शक्श ऐसा करता पाया गया तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। उन्होंने जनपद के अधिकारियों को निर्देश दिए हैं, कि ऐसे लोगों की पहचान की जाए जो पशुओं को खाली सड़कों पर छोड़ दे रहे हैं। साथ ही, संपूर्ण राज्य में इस अभियान का चरणबद्ध ढ़ंग से प्रचार-प्रसार किया जाए। सरकार स्थानीय प्रशासन, मनरेगा एवं पंचायती राज विभाग के सहयोग से समस्त जनपदों में गोआश्रय स्थल बनवाएगी और पहले से मौजूद गौशालाओं की क्षमता का विस्तार भी किया जाऐगा। यह भी पढ़ें: योगी सरकार द्वारा जारी की गई नंदिनी कृषक बीमा योजना से देशी प्रजातियों की गायों को प्रोत्साहन मिलेगा

मवेशियों की ईयर टैगिंग की जाऐगी

पशुधन एवं दुग्ध विकास मंत्री धर्मपाल सिंह ने बताया है, कि ग्रामीण क्षेत्र के सभी पशुओं का ईयर टैगिंग किया जाएगा। इसकी सहायता से मवेशियों की देखभाल और निगरानी में काफी आसानी होगी। इसके अतिरिक्त सरकार ने बाढ़ प्रभावित जनपदों में पशुओं के लिए पर्याप्त चारा, औषधीय और संक्रामक रोगों से संरक्षण के लिए दवाईयों एवं टीकाकरण की व्यवस्था भी करेगी।
शासन से अनुमति मिलने के बाद ही बेच सकते हैं बीज : जानें यूपी में कैसे मिलेगी बीज बेचने की अनुमति?

शासन से अनुमति मिलने के बाद ही बेच सकते हैं बीज : जानें यूपी में कैसे मिलेगी बीज बेचने की अनुमति?

शासन से अनुमति मिलने के बाद ही बेच सकते हैं बीज

मथुरा। यूपी में बीज बेचने से पहले शासन से अनुमित लेनी होगी। इसके लिए गाइडलाइंस जारी कर दिए गए हैं। प्रमाणित और अप्रमाणित बीजों की आपूर्ति गैर प्रान्त की संस्थाएं विक्रेताओं को कर रहीं हैं। इनमें अधिकांश संस्थाएं हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान की हैं। अब
उत्तर-प्रदेश के बीज विक्रेताओं को आपूर्ति करने से पहले गैर प्रान्त की संस्थाओं को अपर कृषि निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) लखनऊ से अनुमति लेनी होगी। आपूर्ति से पहले उस बीज का भारत सरकार के शोध केन्द्र और प्रदेश में कृषि संस्थानों में कम से कम दो साल का ट्रायल भी होना आवश्यक है। इसके लिए फुटकर एवं बीज विक्रेताओं को निर्देश जारी किए गए हैं। जिला कृषि अधिकारी अश्विनी कुमार सिंह ने बताया कि अब केवल वही संस्थाएं बीज की आपूर्ति कर पाएंगी, जिनको अपर कृषि निदेशक (बीज एवं प्रक्षेत्र) लखनऊ से अनुमति जारी की गई होगी। जिस संस्था का बीज अपनी दुकान पर बेच रहे हैं, विक्रेता को उस संस्था से प्रदेश में बीज बिक्री की अनुमति की प्रति लेकर रखनी होगी।

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कृषि विभाग जारी करता है बीज बिक्री का लाइसेंस

कृषि विभाग बीजों की बिक्री करने का लाइसेंस जारी करता है। थोक और फुटकर बीज विक्रेता के यहां बेचे जा रहे बीज की गुणवत्ता परखने को विभागीय अधिकारी समय-समय प4 निरीक्षण करते हैं। अब तक की कार्यवाई में पाया गया है कि हरियाणा, पंजाब, उत्तराखंड और राजस्थान आदि राज्यों के आपूर्तिकर्ता और बीज उत्पादक संस्था बीजों की आपूर्ति जिले में कर रहीं हैं। बीज विक्रेता किसानों को आपूर्तिकर्ता संस्था के बिल नहीं देते हैं। बीज विक्रेता यह भी पता नहीं करते कि जिस संस्था का बीज वह बेच रहे हैं, उस संस्था को प्रदेश में बीच बेचने की अनुमति मिली है या नहीं। इसलिए यह कदम उठाया गया है।

यूपी में कैसे मिलेगी बीज बेचने की अनुमति ?

बीजो के इस लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए किसान के पास किसी प्रकार की डिग्री होने की आवश्यकता नहीं होती है | यदि वह खाद और दवा का लाइसेंस प्राप्त करना चाहते है, तो उसके लिए उसे खाद और दवा से सम्बंधित डिग्री की आवश्यकता होती है। इससे पहले इस तरह के लाइसेंस को प्राप्त करने के लिए BSC-रसायन विज्ञान से डिग्री की जरूरत होती थी, किन्तु सरकार इस प्रक्रिया को और आसान कर दिया है अब बस 21 दिन के विशेष डिप्लोमे से इस लाइसेंस को प्राप्त किया जा सकेगा | इसके अलावा यदि आप BSC-रसायन एग्रीकल्चर तब भी आप इसके लिए आवेदन के पात्र माने जायेंगे।

खाद्य लाइसेंस प्रक्रिया की फीस

यदि आप खाद के इन तीन लाइसेंस को प्राप्त करना चाहते है तो उसके लिए आपको निर्धारित फीस का भुगतान करना होता है | इस फीस का निर्धारण अलग-अलग राज्य के हिसाब से अलग-अलग रखी गयी है।

लाइसेंस का प्रकार                                       फीस कीटनाशकों- दवाइयों के लाइसेंस के लिए    -  1500 बीज लाइसेंस के लिए                                  -  1000 खाद-उर्वरक लाइसेंस के लिए                      -  1250

खाद-बीज लाइसेंस के लिए आवश्यक दस्तावेज

- आवेदन हेतु फॉर्म - आधार कार्ड - पैन कार्ड - पासपोर्ट साइज फोटो - करेंट अकाउंट की बैंक पासबुक - बायोडाटा की फोटो कॉपी - 2-3 कंपनियों के प्रिंसिपल सर्टिफिकेट - मान्य योग्यता डिग्री की फोटो कॉपी - फीस का चालान - जीएसटी सर्टिफ़िकेट - दुकान या गोदाम का नक्शा - क्षेत्रीय एनओसी अनापत्ति प्रमाण पत्र

------ लोकेन्द्र नरवार

मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना में लाभांवित होंगे हजारों किसान

लखनऊ। किसानों को सिंचाई के लिए आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री लघु सिंचाई योजना नाम से एक नई योजना शुरूआत की है। 

इस योजना के तहत वर्ष 2022-23 में प्रदेश हजारों किसान लाभांवित होंगे। लघु सिंचाई विभाग ने इसका प्रस्ताव बनाकर शासन को भेज दिया है। अब विभाग को इसकी स्वीकृति का इंतजार है। 

इस योजना के लिए बजट में 216 करोड़ प्रस्तावित हुए हैं। लघु सिंचाई के निःशुल्क बोरिंग योजना, मध्यम नहर नलकूप योजना और गहरी योजना को मिलाकर यह नई योजना शुरू की गई है। 

प्रभारी सहायक अभियंता लघु सिंचाई विनय कुमार ने बताया कि इस योजना का मुख्य उद्देश्य कृषि उत्पादन में वृद्धि हेतु कृषकों के निजी सिंचाई साधनों का निर्माण कराकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाना है। 

जिससे प्रदेश के हर खेत मे सुनिश्चित सिंचाई सुविधा उपलब्ध हो सके। तथा प्रदेश के कृषक आधिकारिक खाद्यान्न उत्पादन का प्रदेश व देश के आर्थिक विकास में योगदान कर सकें। 

उन्होंने इस योजना के तहत 300 बोरिंग कराने का प्रस्ताव शासन को भेजा है। जिसके तहत 60 बोरिंग अनुसूचित जाति व 220 बोरिंग सामान्य जाति के लोगों के लिए लगाए जाएंगे।

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सामान्य जाति के लघु एवं सीमान्त किसानों हेतु अनुदान

-इन योजना में सामान्य श्रेणी के लघु एवं सीमान्त कृषकों हेतु बोरिंग पर अनुदान की अधिकतम सीमा क्रमशः 5000 रु. तथा 7000 रु. निर्धारित की गई है सामान्य श्रेणी के लाभार्थियों के लिए जोत सीमा 0.2 हेक्टेयर निर्धारित है। 

सामान्य श्रेणी के कृषकों की बोरिंग पर पम्पसेट स्थापित कराना अनिवार्य नहीं है। परंतु पम्पसेट क्रय कर स्थापित करने पर लघु कृषकों की अधिकतम 4500 रु. व सीमान्त कृषकों हेतु 6000 रु. का अनुदान अनुमन्य है।

अनुसूचित जाति/जनजाति कृषकों हेतु अनुदान

- अनुसूचित जाति/जनजाति के लाभार्थियों हेतु बोरिंग पर अनुदान की अधिकतम सीमा 10000 रुपए निर्धारित है। न्यूनतम जोत सीमा का प्रतिवर्ष तथा पम्पसेट स्थापित करने की बाध्यता नहीं है। 

10000 रुपए की सीमा के अंतर्गत बोरिंग से धनराशि शेष रहने पर रिफ्लेक्स वाल्व, डिलीवरी पाइप, बैंड आदि सामिग्री उपलब्ध करने की अतिरिक्त सुविधा भी उपलब्ध है। पम्पसेट स्थापित करने पर अधिकतम 9000रुपए का अनुदान अनुमान्य है। 

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एच.डी.पी.ई. पाइप हेतु अनुदान

- वर्ष 2012-13 से जल के अपव्यय को रोकने एवं सिंचाई दक्षता में अभिवृद्धि के दृष्टिकोण से कुल लक्ष्य के 25 प्रतिशत लाभार्थियों को 90 एमएम साइज का न्यूनतम 30 मी. से अधिकतम 60 मी. एचडीपीई पाइप स्थापित करने हेतु लागत का 50 प्रतिशत अधिकतम 3000 रुपए का अनुदान अनुमन्य करने जाने का प्रावधान किया गया है। 22 मई 2016 से 110 एमएम साइज के एचडीपीई पाइप स्थापित करने हेतु भी अनुमान्यता प्रदान कर दी गई है।

पम्पसेट क्रय हेतु अनुदान

- निःशुल्क बोरिंग योजना के अंतर्गत नाबार्ड द्वारा विभिन्न अश्वशक्ति के पम्पसेट के लिए ऋण की सीमा निर्धारित है। जिसके अधीन बैंकों के माध्यम से पम्पसेट हेतु ऋण की सुविधा उपलब्ध है। 

जनपदवार रजिस्टर्ड पम्पसेट डीलरों से नगद पम्पसेट क्रय करने की भी व्यवस्था है। दोनों विकल्पों में से कोई भी प्रक्रिया अपनाकर आईएसआई मार्क (ISI Mark) पम्पसेट क्रय करने का अनुदान अनुमन्य है। 

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कैसे करें आवदेन

- सर्वप्रथम आपको लघु सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश की आधिकारिक वेबसाइट पर जाना होगा।

यूपी निशुल्क बोरिंग योजना के अंतर्गत लक्ष्यों का निर्धारण

- लक्ष्य की प्राप्ति प्रत्येक वर्ष जनपद वार लक्ष्य शासन स्तर पर उपलब्ध कराए गए धनराशि के माध्यम से किया जाएगा। - ग्राम पंचायत के लक्ष्यों का निर्धारण क्षेत्र पंचायत द्वारा किया जाएगा।

- लक्ष्य से 25% से अधिक की संख्या में लाभार्थी ग्राम पंचायत द्वारा ग्राम जल संसाधन समिति की सहमति से उपरोक्त अनुसार चयनित किए जाएंगे। - चयनित लाभार्थियों की सूची विकास अधिकारी को प्रस्तुत की जाएगी।

लाभार्थियों का चयन

-सभी पात्र लाभार्थियों को चयन उनकी पात्रता के अनुसार किया जाएगा। इस योजना का लाभ उन किसानों को नहीं प्रदान किया जाएगा जो पूर्व में किसी सिंचाई योजना के अंतर्गत लाभवंती हुए हैं। 

इसके अलावा वर्ष 2000 -01 मैं विभाग द्वारा लघु सिंचाई कार्यों का सेंसस करवाया गया है। इस सेंसस के माध्यम से ऐसे कृषकों की सूची तैयार की गई है जिन की भूमि असिंचित है। 

इस सूची में आय कृषकओ पर खास ध्यान दिया जाएगा। ग्राम पंचायत द्वारा एक अंतिम बैठक का आयोजन किया जाएगा जिसमें लाभार्थियों की सूची तैयार की जाएगी। 

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यूपी निःशुल्क बोरिंग योजना की प्राथमिकताएं एवं प्रतिबंध

- बोरिंग के समय इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि जहां बोरिंग की जा रही है वहां खेती है या नहीं। बोरिंग के स्थान पर खेती होना अनिवार्य है। अतिदोहित/क्रिटिकल विकास खंडों में कार्य नहीं किया जाएगा। 

बोरिंग के संबंध में इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि प्रस्तावित पंपसेट से लगभग 3 हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि की सिंचाई हो सके। 

वह विकास खंड जो सेमी क्रिटिकल कैटेगरी में है उनमें नाबार्ड द्वारा स्वीकृत सीमा के अंतर्गत ही चयन किया जाएगा। पंपसेट के मध्य दूरी नाबार्ड द्वारा जनपद विशेष के लिए निर्धारित दूरी से कम नहीं होनी चाहिए। 

समग्र ग्राम विकास योजना एवं नक्सल प्रभावित समग्र ग्राम विकास योजना के अंतर्गत चयनित किए गए ग्रामों में सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर बोरिंग का कार्य किया जाएगा। 

उपलब्ध धनराशि से समग्र ग्राम विकास योजना एवं नक्सल प्रभावित समग्र ग्राम विकास योजना के ग्रामों को सर्वप्रथम पूर्ति की जाएगी।

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यूपी निशुल्क बोरिंग योजना के अंतर्गत सामग्री की व्यवस्था

इस योजना के अंतर्गत पीवीसी पाइप का प्रयोग किया जाएगा। एमएस पाइप का उपयोग केवल उन क्षेत्रों में किया जाएगा जहां हाइड्रोजियोलॉजिकल परिस्थितियों के कारण पीवीसी पाइप का प्रयोग नहीं किया जा सकता। 

एसएम पाइप का प्रयोग ऐसे जिलों में चिन्हित क्षेत्रों के संबंधित अधीक्षण अभियंता लघु सिंचाई वृत से अनुमोदन प्राप्त करके किया जाएगा। 

पीवीसी पाइप से होने वाली बोरिंग के लिए पीवीसी पाइप एवं अन्य सामग्री की व्यवस्था कृषकों द्वारा की जाएगी। जिलाधिकारी के अंतर्गत एक समिति का गठन किया जाएगा जिसके माध्यम से अनुदान स्वीकृति करने हेतु पीवीसी पाइप तथा अन्य सामग्री की दरें निर्धारित की जाएगी। 

 ----- लोकेन्द्र नरवार