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पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

पशुओं को साइलेज चारा खिलाने से दूध देने की क्षमता बढ़ेगी

गाय-भैंस का दूध उत्पादन बढ़ाने के लिए आप साइलेज चारे को एक बार अवश्य खिलाएं। परंतु, इसके लिए आपको नीचे लेख में प्रदान की गई जानकारियों का ध्यान रखना होगा। पशुओं से हर दिन समुचित मात्रा में दूध पाने के लिए उन्हें सही ढ़ंग से चारा खिलाना बेहद आवश्यक होता है। इसके लिए किसान भाई बाजार में विभिन्न प्रकार के उत्पादों को खरीदकर लाते हैं एवं अपने पशुओं को खिलाते हैं। यदि देखा जाए तो इस कार्य के लिए उन्हें ज्यादा धन खर्च करना होता है। इतना कुछ करने के पश्चात किसानों को पशुओं से ज्यादा मात्रा में दूध का उत्पादन नहीं मिल पाता है।

 यदि आप भी अपने पशुओं के कम दूध देने से निराश हो गए हैं, तो घबराने की कोई जरूरत नहीं है। आज हम आपके लिए ऐसा चारा लेकर आए हैं, जिसको समुचित मात्रा में खिलाने से पशुओं की दूध देने की क्षमता प्रति दिन बढ़ेगी। दरअसल, हम साइलेज चारे की बात कर रहे हैं। जानकारी के लिए बतादें, कि यह चारा मवेशियों के अंदर पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के साथ ही दूध देने की क्षमता को भी बढ़ाता है। 

कौन से मवेशी को कितना चारा खिलाना चाहिए

ऐसे में आपके दिमाग में आ रहा होगा कि क्या पशुओं को यह साइलेज चारा भरपूर मात्रा में खिलाएंगे तो अच्छी पैदावार मिलेगी। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि ऐसा करना सही नहीं है। इससे आपके मवेशियों के स्वास्थ्य पर गलत प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए ध्यान रहे कि जिस किसी भी दुधारू पशु का औसतन वजन 550 किलोग्राम तक हो। उस पशु को साइलेज चारा केवल 25 किलोग्राम की मात्रा तक ही खिलाना चाहिए। वैसे तो यह चारा हर एक तरह के पशुओं को खिलाया जा सकता है। परंतु, छोटे और कमजोर मवेशियों के इस चारे के एक हिस्से में सूखा चारा मिलाकर देना चाहिए। 

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साइलेज चारे में कितने प्रतिशत पोषण की मात्रा होती है

जानकारी के अनुसार, साइलेज चारे में 85 से लेकर 90 प्रतिशत तक हरे चारे के पोषक तत्व विघमान होते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें विभिन्न प्रकार के पोषण पाए जाते हैं, जो पशुओं के लिए काफी फायदेमंद होते हैं। 

साइलेज तैयार करने के लिए इन उत्पादों का उपयोग

अगर आप अपने घर में इस चारे को बनाना चाहते हैं, तो इसके लिए आपको दाने वाली फसलें जैसे कि ज्वार, जौ, बाजरा, मक्का आदि की आवश्यकता पड़ेगी। इसमें पशुओं की सेहत के लिए कार्बोहाइड्रेट अच्छी मात्रा में होते हैं। इसे तैयार करने के लिए आपको साफ स्थान का चयन करना पड़ेगा। साथ ही, साइलेज बनाने के लिए गड्ढे ऊंचे स्थान पर बनाएं, जिससे बारिश का पानी बेहतर ढ़ंग से निकल सके। 

गाय-भैंस कितना दूध प्रदान करती हैं

अगर आप नियमित मात्रा में अपने पशु को साइलेज चारे का सेवन करने के लिए देते हैं, तो आप अपने पशु मतलब कि गाय-भैंस से प्रति दिन बाल्टी भरकर दूध की मात्रा प्राप्त कर सकते हैं। अथवा फिर इससे भी कहीं ज्यादा दूध प्राप्त किया जा सकता है।

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत

अब किसानों को नहीं झेलनी पड़ेगी यूरिया की किल्लत - बंद पड़े खाद कारखानों को दोबारा खोला जाएगा

नई दिल्ली। अब देश के किसानों को यूरिया की किल्लत नहीं झेलनी पड़ेगी। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गुजरात मे नैनो यूरिया संयंत्र का उद्घाटन किया था। अब उत्तर-प्रदेश, बिहार, झारखंड और ओडिशा में बंद पड़े खाद कारखानों को दोबारा खोला जा रहा है। इन कारखानों में जल्दी ही उत्पादन शुरू किया जाएगा। इसके लिए तैयारियां जोरों पर चल रहीं हैं। कयास लगाए जा रहे हैं कि अगस्त के पहले सप्ताह में कारखानों में यूरिया का उत्पादन शुरू हो जाएगा। हिंदुस्तान उर्वरक और रासायन लिमिटेड के जनरल कामेश्वर झा ने बताया कि प्लांट में सभी मशीनों की जांच की जा रही है। कम्पनी का प्रयास है कि चरणबद्ध तरीके से उत्पादन कार्य शुरू किया जाए। इसकी शुरुआत जुलाई में ही शुरू हो जाएगी। और अगस्त के महीने में पूरी क्षमता के साथ उत्पादन होगा। पूरी क्षमता से उत्पादन शुरू हो जाने के बाद यहां प्रतिदिन 3850 नीम कोटेड यूरिया का उत्पादन किया जाएगा।

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बीस साल बाद शुरू होगा सिंदरी खाद कारखाना

- बता दें कि पांच सितंबर 2002 को स्व. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में वित्तीय संकट के चलते सिंदरी खाद कारखाना बंद हो गया था। करीब 20 साल बाद फिर से कारखाना शुरू होने जा रहा है। सिंदरी खाद कारखाना से देश मे हरित क्रांति लाने में बेहद महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यूरिया की कमी होगी दूर

- साल 1951 में सिंदरी कारखाने की पहली यूनिट का उत्पादन शुरू हुआ था। उन दिनों प्लांट का संचालन फर्टिलाइजर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड द्वारा किया जाता था। यह कारखाना पूर्वी भारत में एफसीआई द्वारा संचालित एकमात्र यूरिया उत्पादन कारखाना था। इसके बंद होने के बाद पूर्वी राज्यों में यूरिया की भारी किल्लत हो गई थी। सभी आठ कारखाने बंद हो गए थे। और यूरिया की खपत लगातार बढ़ती जा रही है। स्थिति ऐसी बन गई है कि देश को यूरिया का आयात करना पड़ा रहा है। इसे देखते हुए केन्द्र सरकार ने गौरखपुर, सिंदरी और बरौनी में फिर से बंद पड़े यूरिया खाद कारखानों को शुरू करने की योजना बनाई है। बताया जा रहा है कि प्रत्येक प्लांट शुरू करने की योजना के अंतर्गत 6000 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की गई है।

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डीएपी से अभी राहत नहीं

- सरकार भले ही यूरिया की किल्लत दूर करने का दावा कर रही है। लेकिन फिलहाल डीएपी पर कोई राहत दिखाई नहीं दे रही है। माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में डीएपी की किल्लत और बढ़ेगी। ------- लोकेन्द्र नरवार
Soil Health card scheme: ये सॉइल हेल्थ कार्ड योजना क्या है, इससे किसानों को क्या फायदा होगा?

Soil Health card scheme: ये सॉइल हेल्थ कार्ड योजना क्या है, इससे किसानों को क्या फायदा होगा?

"Swasth Dharaa. Khet Haraa." - Healthy Earth. Green Farm.

सॉयल हेल्थ कार्ड योजना को भारतीय सरकार द्वारा 19 फरवरी 2015 में शुरू किया गया. इस योजना का मुख्य उद्देश्य मिट्टी के पोषक तत्वों की जांच करना है. यदि किसानों को पता होगा कि उन्हें फसल की देखभाल कैसे करनी है तो किसानों को कम खर्च में ज्यादा पैदावार मिलेगी और इन सब के लिए मिट्टी के पोषक तत्वों की जांच करवाना आवश्यक है. साथ ही इस योजना मुख्य उद्देश्य किसानों को अच्छी खाद और पोशाक तत्त्वों के इस्तमाल के लिए जागरुक करना है. सॉयल हेल्थ कार्ड योजना की शुरुआत हमारे देश के प्रधानमंत्री जी ने इसलिए शुरू की ताकि खेती के लिए उपजाऊ जमीन की पहचान कर उसमे खेती लायक पोशाक तत्वों की जांच कर पता लगाया जा सके की किस हिसाब से फसल को देखभाल की जाए. जिस वजह से पैदावार अच्छी होगी. सॉयल हेल्थ कार्ड योजना

मिट्टी के पोषक तत्वों के जांच की क्या जरूरत

मिट्टी के पोषक तत्वों के जांच से कौन सी जमीन कितनी उपजाऊ है और उसमे कितने पोषक तत्वों की जरूरत है. यदि हम ये बिना पता किए कि जमीन में कितने पोषक तत्व है, उसमे पोषक तत्वों को डालते है तो संभव है कि हम खेत में आवश्यकता से अधिक या कम खाद डाल दे. कम खाद डालने पर कम पैदावार होगी वहीं ज्यादा खाद डालने पर खाद और पैसों का नुकसान ही होगा और ये अगली बार की पैदावार में भी असर करेगा.

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नमूने की जांच कहा होगी

नमूने के जांच हेतु आप किसी नजदीकी कृषि विभाग के दफ्तर या स्थानीय कृषि पर्यवेक्षक में जमा करवा सकते है. यदि आपके निकट कोई मिट्टी परीक्षण प्रयोगशाला हो तो आप वहां पर भी जाकर इसकी जांच मुफ्त में करवा सकते है. जिला स्तर पर प्रयोगशाला कहां पर स्थित है उसकी जानकारी farmer.gov.in पोर्टल पर जाकर राज्यवार ली जा सकती है। अतः अपना समय और पैसा बचाने के लिए और अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी का परीक्षण जरूर करवाएं.
एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा : खुशहाल किसान, स्वस्थ होगा इंसान

जैविक खेती मतलब निर्णय फायदे भरा, ऑर्गेनिक खेती का बढ़ रहा चलन दिन प्रतिदिन डिजिटल होती लाइफ के बीच कृषि में तकनीक एवं रसायन आधारित उपयोग के नुकसान के बाद, किसानों को जैविक खेती (Jaivik Kheti/Organic Farming) के फायदों के बारे में जागरूक कर, इसके उपयोग के लिए प्रेरित किया जा रहा है। यूरिया जैसे रासायनिक विकल्पों के बजाए केंचुआ (Earthworm) एवं सूक्ष्म जीव (microbe) आधारित जैविक खादों के उपयोग के लिए किसान भी प्रेरित हुए हैं। ऑर्गेनिक फार्मिंग या जैविक खेती (Organic Farming/Jaivik Kheti) क्या है, इसे कैसे करते हैं, कौन सा तरीका जैविक खेती के लिए कारगर है। इससे जुड़े लाभ के बारे में जानते हैं मेरी खेती के साथ

जैविक खेती क्या है

जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है जैव आधारित कृषि पद्धति को ही ऑर्गेनिक फार्मिंग (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) के नाम से जाना जाता है।

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सूक्ष्म जीवों पर आधारित इस कृषि व्यवस्था में जैविक माध्यम से की जाने वाली प्राकृतिक व्यवस्था की युक्ति अपनाई जाती है। जिस तरह प्रकृति छोटे-छोटे जीव जंतुओं की मदद से बीजारोपण, पौध संरक्षण, भूमि उर्वरता का काम लेती है उसी महत्व को पहचान कर ऑर्गेनिक खेती (Organic Farming) या फिर जैविक खेती (Jaivik Kheti) का खाका बुना गया है। सोचिये आधुनिक कृषि तरीकों में जिस मट्ठर भूमि को उर्वर बनाने के लिए कई हॉर्स पॉवर वाले ट्रैक्टरों की दरकार होती है, उस भूमि को लिजलिजा केंचुआ (Earthworm) समूह कैसे रेंगकर बगैर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए शांत तरीके से अंकुरण के लायक बना देता है।

जैविक खेती में इनका प्रयोग वर्जित

कृषि की जैविक खेती आधारित विधि में संश्लेषित उर्वरक (synthetic fertilizers) एवं संश्लेषित कीटनाशक (synthetic insecticide) का प्रयोग वर्जित है। जरूरत होने पर इनका नाममात्र मात्रा में प्रयोग किया जाता है। भूमि की उर्वरा शक्ति के संतुलन के लिए जैविक खेती में फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट जैसी युक्तियों को अपनाया जाता है।

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वैश्विक स्तर पर जैविक उत्पादों का बाजार इन दिनों काफी तेजी से अपनी पहचान बना रहा है। अजैविक खेती के भूमि और जनस्वास्थ्य पर पड़ रहे प्रतिकूल असर के कारण कृषक अब स्वयं भी “जैविक खेती” (Organic farming) के तरीके को अपना रहे हैं। जैविक खेती के राष्ट्रीय केंद्र, राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र (National Centre for Organic and Natural Farming - NCONF) की देखरेख में भारतीय “जैविक खेती” का विकास हो रहा है। इस विधि के विकास में एकीकृत जैविक खेती खासी मददगार है।

एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming)

अंतर्राष्ट्रीय जैविक नियंत्रण संगठन (The International Organization for Biological and Integrated Control) या आईओबीसी (IOBC), यूएनआई 11233-2009 (UNI 11233: 2009) यूरोपीय मानक ने एकीकृत खेती को एक कृषि प्रणाली माना है। किसानी की यह वह प्रणाली है जिसमें उच्च गुणवत्ता से पूर्ण जैविक भोजन, चारा, फाइबर आदि का उत्पादन होता है। इसके साथ ही मिट्टी, पानी, वायु आदि प्राकृतिक विकल्पों के उपयोग से इस प्रणाली में नवीकरणीय ऊर्जा का उत्पादन भी संभव है।

एकीकृत जैविक खेती प्रणाली

आईओएफएस (IOFS) यानी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग सिस्टम (Integrated Organic Farming System/IOFS/आईओएफएस) को हिंदी में एकीकृत जैविक खेती प्रणाली के तौर पर पहचाना जाता है। कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने एकीकृत जैविक खेती प्रणाली (आईओएफएस/IOFS) भारतीय कृषि परिप्रेक्ष्य में विकसित की है ।

एकीकृत जैविक खेती आज की अनिवार्यता

कृषि के समग्र दृष्टिकोण वाली एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) से भूमि की उत्पादकता में स्थायी रूप से वृद्धि होती है। धरती के प्रत्येक जीव के मंगल की कामना करने वाले भारत देश के लिए एकीकृत जैविक खेती (Integrated organic farming) का विकल्प नया नहीं है, हालांकि इंडिया में तब्दील होते फार्मर्स ने कम समय में ज्यादा लाभ कमाने के चक्कर में कुछ समय के लिए इस बेशकीमती पुस्तैनी रीति की किसानी को बिसरा जरूर दिया।

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प्रकति प्रदत्त गौधन से अलंकृत भारत में गाय के गोबर एवं गौमूत्र एवं भैंस, बकरी, भेड़ के गोबर, लेंड़ी, लीद आधारित किसानी का यह पुराना तरीका सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध चलन के कारण स्मृतियों में कैद होकर रह गया।

एकीकृत जैविक खेती क्या है

एकीकृत जैविक खेती का अर्थ खेत में उपलब्ध खेती किसानी के विकल्पों का पर्यावरण को नुकसान पहुंचाए बिना सर्वोत्तम उपयोग कर उपभोग की वस्तुएं निर्मित करने से है। इसमें पशुधन जैसे गाय-भैंस, भेड़-बकरी, फसल का आपसी समन्यवय एक दूसरे के लिए खाद, चारा, पानी का प्रबंध करने में मददगार होता हैं। एक तरह से यह प्रकृति प्रदत्त संसाधनों का प्रकृति के विस्तार में सहयोगी किसानी का तरीका है। मतलब पशुधन से जहां जैविक खाद आदि का प्रबंध होता है, वहीं खेत से मानव एवं पशुओं के लिए अनिवार्य पोषक खाद्य पदार्थों की प्राप्ति होती है।

पैदावार के साथ बढ़ी मुसीबतें

कृषि भूमि पर रसायनिक पदार्थों के धड़ल्ले से हुए उपयोग के कारण अनाज का उत्पादन ज्यादा जरूर हुआ लेकिन इसके बुरे परिणाम के रूप में मिट्टी और इंसान की सेहत भी प्रभावित हुई।

कृत्रिम खेती के नुकसान

मौसमी चक्र के विपरीत कम समय में फसल की पैदावार से लेकर उसके भंडारण में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक पदार्थों के कारण जल, जंगल, जमीन के साथ मानव के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ने के वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध हैं। रासायनिक खादों के अमानक उपयोग से जहां भूमि की उर्वरता प्रभावित हो रही है, वहीं रासायनिक खाद की उपज से निर्मित खाद्य पदार्थों के सेवन से शारीरिक विन्यास क्रम पर भी बुरा असर देखा गया है।

जैविक खेती का विकल्प

सिंथेटिक खाद के निर्माण एवं उसके उपयोग के कारण पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर पड़ रहे कुप्रभावों के मद्देनजर, जैविक खेती को अपनाना सख्त अनिवार्य हो गया है।

बाजार में अच्छी है मांग

इंटरनेशनल मार्केट में जैविक उत्पाद की डिमांड एवं दाम भी इस प्रणाली की खेती के पक्षधर है। देश के किसान बड़ी संख्या में एकीकृत जैविक खेती का तरीका अपना रहे हैं। खास तौर पर देश के उत्तर पूर्वी राज्यों में इस विधि से किसानी की जा रही है।

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एकीकृत जैविक खेती के लाभ

एकीकृत जैविक खेती से मृदा का अच्छा स्वास्थ्य बरकरार रहता है एवं इसकी उर्वरता में वृद्धि होती जाती है। सब्जियों और फलों संबंधी बीमारियों को कम करने में भी इससे मदद मिलती है।

इस प्रणाली की खेती से उच्च गुणवत्ता के जैविक उत्पादों का निर्माण संभव है।

मिट्टी की उर्वरता और खेती के लिए अधिक उपजाऊ भूमि बढ़ाने के अवसर भी इंटीग्रेटेड ऑर्गेनिक फार्मिंग में निहित हैं। फसल पैदावार के दौरान कीट एवं रोग प्रबंधन में जैविक खेती के जैविक उपचार तरीकों के प्रयोग के कारण कीटनाशकों का चलन कम होगा। अंत में कहा जा सकता है कि, एकीकृत जैविक खेती से उर्वर होगी धरा, खुशहाल होगा किसान, स्वस्थ होगा इंसान।

इजराइल की मदद से अब यूपी में होगी सब्जियों की खेती, किसानों की आमदनी बढ़ाने की पहल

इजराइल की मदद से अब यूपी में होगी सब्जियों की खेती, किसानों की आमदनी बढ़ाने की पहल

लखनऊ।

इजराइल की मदद से सब्जियों की खेती

केन्द्र सरकार के साथ-साथ राज्य सरकारें भी लगातार किसानों की आय बढ़ाने के लिए प्रयासरत हैं। अब
उत्तर प्रदेश में इजराइल की मदद से सब्जियों की खेती होने जा रही है। उत्तर प्रदेश में चंदौली जिला ''धान का कटोरा'' नाम से जाना जाता है। चंदौली में अब इजराइल की मदद से आधुनिक तकनीकी से सब्जियों की खेती करने की योजना बनाई जा रही है। चंदौली में इंडो-इजरायल सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल की स्थापना की जा रही है। इसका फायदा चंदौली के साथ-साथ गाजीपुर, मिर्जापुर, बनारस व आसपास के कई जिलों को मिलेगा। उक्त सेंटर के द्वारा किसानों को सब्जियों की पैदावार बढ़ाने में काफी फायदा मिलेगा।


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खेतों में आधुनिक तकनीकी का प्रयोग कर किसान को बेहतर उपज देने का लगातार प्रयास किया जा रहा है। यूपी में कृषि क्षेत्र को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए कृषि उत्पादों की नर्सरी तैयार की जा रही है। जिससे कई जिलों के किसानों को लाभ मिलेगा। इसके अलावा यूपी के इस जिले का कृषि और सब्जियों के क्षेत्र में पूरी दुनियां में नाम रोशन होगा। यूपी सरकार की योजना है कि धान व गेहूं के उत्पादन में बेहतर रहने वाला जिला सब्जियों के उत्पादन में भी बेहतर परिणाम दे सके, जिसके लिए पूरी तैयारी की जा चुकी है।


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इस तकनीकी से किसानों को मिलेंगे उन्नत बीज

- इजराइल तकनीकी से होने वाली खेती के लिए किसानों को उन्नत बीज मिलेंगे। उत्कृष्टता केन्द्र बागवानी क्षेत्र में नवीनतम तकनीकी के लिए प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में काम किया करते हैं। कृषि सेंटर से चंदौली के साथ-साथ पूर्वांचल के किसानों को उन्नत बीज उपलब्ध कराए जाएंगे।


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चंदौली में बागवानी फसलों के लिए मिलती है अच्छी जलवायु

उत्तर प्रदेश के चंदौली जिले में बागवानी खेती के लिए अच्छी जलवायु एवं वातावरण मिलता है। यही कारण है कि चंदौली को चावल का कटोरा कहा जाता है। यूपी में 9 ऐसे राज्य हैं जिनमें विभिन्न बागवानी फसलों के लिए अनुकूल वातावरण मिलता है। सब्जियों के लिए उत्कृष्टता केन्द्र टमाटर, काली मिर्च, बैंगन, खीरा, हरी मिर्च व विदेशी सब्जियों का हाईटेक क्लाइमेंट कंट्रोल्ड ग्रीन हाउस में सीडलिंग उत्पादन किया जाना प्रस्तावित है।
मध्य प्रदेश में अब इलेक्ट्रॉनिक कांटे से होगी मूंग की तुलाई

मध्य प्रदेश में अब इलेक्ट्रॉनिक कांटे से होगी मूंग की तुलाई

मध्य प्रदेश के किसानों के लिए एक अच्छी खबर यह है कि राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल ने मूंग (Moong or Mung Bean) की तुलाई इलेक्ट्रॉनिक कांटे (Electronic Weighing Scales) से करने का निर्देश दिया है, जिससे किसान बहुत खुश नजर आ रहें हैं। राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद लगातार हो रही है। कृषि मंत्री कमल पटेल ने देवास जिले में स्थित कन्नौद के ग्राम ननासा में ग्रीष्मकालीन मूंग उपार्जन केंद्र का जायजा लिया, किसानों को कोई परेशानी न हो इसको ध्यान में रखते हुए कृषि मंत्री कमल पटेल ने पूरे प्रदेश में मूंग की तौल इलेक्ट्रॉनिक कांटे से करने का निर्देश दिया।

समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद के लिए सरकार का किसानों ने आभार जताया

कमल पटेल ने हरदा जिले के ग्राम कडोला में भी उपार्जन केंद्र का निरीक्षण किया, उन्होंने उपार्जन केंद्रों पर किसानों के लिए की गई सभी तरह के व्यवस्थाओं का भी निरिक्षण किया, उन्होंने साफ़ तौर पर निर्देश दिया की व्यवस्थाओं में किसी भी प्रकार की कोई कमी नहीं होनी चाहिए, उन्होंने मूंग उपार्जन केंद्रों में मौजूद किसानों से बहुत देर तक बातचीत की और किसानों के समस्यायों को नजदीक से जानने की कोशिश की। कृषि मंत्री के आने से किसान काफी खुश नजर आ रहे थे।

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किसानों ने बताया कि सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीद से काफी राहत मिल रही है, सरकार मूंग को 7275 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद रही है जिससे किसान को वास्तव में काफ़ी राहत मिल रही है। मूंग की खेती करने से मिट्टी की उर्वरता में काफ़ी सुधार होता है, मूंग की खेती नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करने में मदद करती है। मूंग की गिरी हुई पत्तियां अगली फसल के लिए काफी लाभप्रद होती हैं। यह मुख्य रूप से खाद का काम करती है। मूंग को 65-70 दिनों में उगाया जा सकता है, इसमें उत्पादन की लागत भी कम होती है क्योंकि इसे गेहूं की फसल की कटाई के तुरंत बाद मिट्टी की जुताई के बिना भी बोया जा सकता है। अगर बेहतर ढंग से मूंग की खेती की जाए तो लगभग प्रति एकड़ में 8 क्विंटल तक की पैदवार की जा सकती है।

एसएमएस के जरिए सूचना

मंत्री ने उपार्जन केंद्रों पर निरीक्षण करते हुए कहा कि किसानों से मूंग खरीदारी में कोई समस्या नहीं है और कोई परेशानी न हो इसके लिए सभी तरह की व्यवस्था की गयी है। किसानों को एसएमएस के जरिए सूचना प्राप्त हो रही हैं जिसके आधार पर किसान अपनी उपज को लेकर उपार्जन केंद्रों पर आ रहे हैं। किसानों ने मीडिया से बातचीत के दौरान बताया कि अगर समर्थन मूल्य पर सरकार द्वारा मूंग की खरीद नहीं की जाती तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता, लेकिन सरकार ने किसानों को आर्थिक बल देने के लिए जो कदम उठाया है, उसकी हमसब काफ़ी सराहना करते हैं। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदारी के निर्देश से पहले मजबूरी में किसान मूंग को 5 से 6 हजार रुपये प्रति क्विंटल की दर से व्यापारियों को बेच रहे थे, इससे किसानों को काफ़ी नुकसान हो रहा था।

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पटेल की अपील

श्री पटेल ने किसानों को आश्वासन देते हुए कहा कि केंद्र और राज्य सरकार दोनों मिलकर किसानों के कल्याण के लिए काम कर रही है। उन्होंने कहा कि किसानों की भलाई के लिये केंद्र और राज्य की सरकार पूर्ण रूप से कृत-संकल्पित है और किसानों को उनकी उपज का सही दाम दिलाने तथा कृषि क्षेत्र को समृद्ध करने को लेकर हमेशा से प्रयासरत हैं, किसी भी प्रकार की परेशानी किसानों को नहीं होने दी जाएगी। श्री पटेल ने पिछले सप्ताह ही केंद्रीय कृषि मंत्रालय से प्रति दिन किसान से 25 क्विंटल की जगह 40 क्विंटल मूंग खरीदने की अपील की थी, इसके लिए उन्होंने केंद्रीय कृषि सचिव से मुलाकात भी की उसके बाद केंद्र सरकार ने श्री पटेल के अपील पर संज्ञान लेते हुए आश्वश्त किया था।

मूंग की बम्पर खरीदारी

इस बार मध्यप्रदेश में 12 लाख हेक्टेयर भूमि में मूंग की खेती की गई है, सरकार को बंपर प्रोडक्शन की उम्मीद हैं, वहीं केंद्र सरकार ने इस साल 2 लाख 40 हजार टन मूंग की खरीद का लक्ष्य रखा है, माना जा रहा हैं कि केंद्र सरकार और राज्य सरकार जिस तरह से किसानों के हित के लिए कदम उठा रही है और जिस तरह से न्यूनतम समर्थन मूल्य पर उपज की खरीदारी हो रहीं हैं, उससे किसानों को काफी राहत मिलेगी। इससे किसान अपनी उपज को अधिक से अधिक बेच पाने में सक्षम हो रहे हैं और साथ ही उन्हें उनकी उपज का अच्छा दाम भी मिल रहा है, जिससे उनकी आय में वृद्धि हो रही हैं।
अब इस राज्य में भी MSP पर होगी धान की खरीदी, सरकार खोलेगी 23 नई मंडियां

अब इस राज्य में भी MSP पर होगी धान की खरीदी, सरकार खोलेगी 23 नई मंडियां

खरीफ का सीजन अपने पीक पर है। इस दौरान देश में सबसे ज्यादा धान उत्पादक राज्य पश्चिम बंगाल, पंजाब, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में धान की फसल तैयार हो चुकी है। ज्यादातर राज्यों में तो धान की कटाई भी खत्म हो चुकी है और फसल मंडियों में पहुंचने लगी है। इसको देखते हुए कुछ राज्य सरकारें MSP पर धान की खरीदी प्रक्रिया शुरू कर चुकी हैं, जबकि कुछ सरकारें धान को MSP पर 1 अक्टूबर से खरीदना प्रारम्भ करेंगी। अन्य राज्यों को देखते हुए अब जम्मू और कश्मीर का प्रशासन भी अपने राज्य के किसानों की मदद के लिए आगे आया है। जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने घोषणा की है कि राज्य में धान किसानों की मदद करने के लिए 23 नई मंडियां खोली जाएंगी, जिसमें किसानों को तमाम आधुनिक सुविधाएं मुहैया करवाई जाएंगी, ताकि जम्मू और कश्मीर के किसान बिना किसी परेशानी के अन्य राज्यों के किसानों की तरह अपनी धान की फसल को आसानी से बेच पाएं। राज्य में नई मंडियों की स्थापना करने के लिए जम्मू कश्मीर एडमिनिस्ट्रेशन के साथ एग्रीकल्चर ऑफिसर अपने काम पर लग गए हैं। नई मंडियों की स्थापना और जमीन अधिग्रहण में किसानों को किसी भी प्रकार की परेशानी न हो इसके लिए प्रशासन ने सख्त निर्देश जारी किये हैं।

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किस जिले में कितनी धान मंडियां होंगी स्थापित

जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने बताया कि जो 23 मंडिया स्थापित की जानी है वो जम्मू डिवीजन के अंतर्गत ही स्थापित की जाएंगी, क्योंकि धान की पैदावार इसी डिवीजन में होती है। प्रशासन ने बताया कि 11 मंडियां जम्मू जिले में, 11 मंडियां कठुआ जिले में और एक मंडी सांबा जिले में स्थापित की जाएगी। जम्मू और कश्मीर प्रशासन के अंतर्गत आने वाला कृषि उत्पादन व किसान कल्याण डिपार्टमेंट ने इसको लेकर कार्य योजना बनानी शुरू कर दी है। जल्द ही इसकी सूचना भी सार्वजनिक कर दी जाएगी।

न्यूनतम समर्थन मूल्य भी हुआ तय

राज्य में नई धान मंडियों की घोषणा के साथ ही जम्मू और कश्मीर प्रशासन ने राज्य के किसानों को तोहफा देते हुए न्यूनतम समर्थन मूल्य की भी घोषणा कर दी है। प्रशासन के अनुसार, राज्य में ए ग्रेड धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2060 रूपये प्रति क्विंटल रखा गया है, जबकि सामान्य धान 2040 रुपये प्रति क्विंटल के न्यूनतम समर्थन मूल्य के साथ खरीदा जाएगा। इसके साथ ही प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को लेकर केंद्र सरकार ने जो दिशा निर्देश जारी किये हैं, मंडियों में उसी के अनुसार खरीदी की जाएगी।

तीनों जिलों में बारदाने की व्यवस्था करने के निर्देश

जिन जिलों में धान की खरीदी होनी है, उन जिलों में प्रशासन की तरफ से बारदाने की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए हैं, क्योंकि किसी भी फसल की खरीदी बिना बारदाने के नहीं हो सकती। इसलिए प्रशासन ने उचित मात्रा में बारदाना रखने के निदेश दिए हैं। साथ ही प्रशासन ने बताया है कि मंडियों में किसानों की समस्याओं को निपटाने के लिए हेल्पडेस्क बनाने के निर्देश भी दिए गए हैं, जहां पर एक मंडी कर्मचारी हमेशा तैनात रहेगा। यदि किसानों को फसल बेचने से संबधित किसी भी प्रकार की समस्या होती है तो किसान की उस समस्या को हेल्पडेस्क में उपस्थित कर्मचारी नोट करेगा और किसान को त्वरित समाधान प्रदान करने की कोशिश करेगा।

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कई राज्यों में जल्द ही शुरू होगी धान की खरीदी

पंजाब और हरियाणा में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर धान की खरीदी 1 नवम्बर से प्रारम्भ होने जा रही है। हरियाणा सरकार ने इस साल 55 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए सरकार ने 400 से अधिक मंडियों में धान खरीदी की व्यवस्था की है। मंडियों में खरीदी को लेकर सभी प्रकार की व्यवस्थाएं पूरी कर ली गईं हैं। इनके अलावा छत्तीसगढ़ में 1 नवम्बर से धान की खरीदी प्रारम्भ होगी। इस दौरान छत्तीसगढ़ सरकार ने 1.1 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी का लक्ष्य रखा है। जिसके लिए सरकारी अफसर व्यवस्थाएं चाक चौबंद करने में लगे हुए हैं।
केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार की मूंग सहित इन फसलों की खरीद को हरी झंडी, खरीद हुई शुरू

केंद्र सरकार मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलों की ताबड़तोड़ खरीददारी कर रही है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने जानकारी दी है, कि अब तक केंद्र सरकार 24,000 टन मूंग खरीद चुकी है। इसके साथ ही सरकार आगामी दिनों में 4,00,000 टन खरीफ मूंग की खरीददारी करने जा रही है। इसके लिए सरकार ने अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार यह 4,00,000 टन खरीफ मूंग उत्तर प्रदेश, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा और महाराष्ट्र समेत 10 राज्यों के किसानों से खरीदेगी।


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अधिकारियों ने बताया है, कि मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) को पूरी तरह से केंद्र सरकार का कृषि मंत्रालय नियंत्रित करता है। कृषि मंत्रालय जब देखता है, कि बाजार में फसलों के भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे गिर गए हैं, तब कृषि मंत्रालय मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत किसानों से फसलें खरीदना प्रारंभ कर देता है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को औने पौने दामों में बेचने पर मजबूर न होना पड़े। यह खरीददारी कृषि मंत्रालय के आधीन आने वाला भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) करता है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो इस साल अभी तक 24,000 टन मूंग की खरीदी हो चुकी है, जिसमें से 19,000 टन अकेले कर्नाटक के किसानों से खरीदी गई है। कृषि मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि सरकार लगातार प्रयास कर रही है, जिससे किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिल पाए। इसके लिए खरीदी प्रक्रिया की हर राज्य में सघनता से जांच की जा रही है। ताकि किसानों को अपनी फसलों को बेचने पर किसी भी प्रकार की परेशानी न होने पाए।


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बकौल कृषि मंत्रालय, मूंग के अलावा 2022-23 खरीफ सत्र में उगाई गई 2,94,000 टन उड़द और 14 लाख टन मूंगफली की भी खरीददारी की जाएगी। कृषि मंत्रालय ने इसकी स्वीकृति भी भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) को भेज दी है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने कृषि मंत्रालय को अपने जवाब में बताया है, कि इस साल अभी तक उड़द और मूंगफली की खरीद नहीं हो सकी है। क्योंकि अभी भी बाजार में इन दोनों फसलों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से बहुत ज्यादा ऊपर चल रहे हैं। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) ने अभी तक जिन फसलों की खरीद की है। उन्हें कृषि मंत्रालय ने राज्य सरकारों को देना शुरू कर दिया है, ताकि इन फसलों को पीडीएस के माध्यम से खपाया जा सके। इसी तरह अगर खरीफ की फसलों के अंतर्गत आने वाले धान की फसल की बात करें, तो अभी तक भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) के माध्यम से सरकार ने 306.06 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की है। जबकि सरकार का लक्ष्य 775.72 लाख टन धान खरीदने का है।
इस सरकार ने 14 लाख किसानों को भेजे 11 हजार करोड़, धान खरीदी जारी

इस सरकार ने 14 लाख किसानों को भेजे 11 हजार करोड़, धान खरीदी जारी

बतादें, कि छत्तीसगढ़ राज्य में धान खरीद बहुत ही तीव्रता से की जा रही है। फिलहाल, 55 लाख मीट्रिक टन धान खरीद राज्य सरकार द्वारा हो चुकी है। 14 लाख धान कृषकों के खाते में साढ़े 11 हजार करोड़ रूपये की धनराशि भी भेज दी गयी है। भारत में धान खरीदी का कार्यक्रम कुछ राज्यों में रुक सा गया है, तो कुछ मेें बहुत तीव्रता से धान खरीदी दर्ज हुई है। इस वर्ष राज्य सरकारों के जरिये भी कृषकों को सहूलियत दी है, समस्त राज्य सरकारों ने 48 घंटे से 72 घंटे के मध्य में कृषकों के खाते में एमएसपी(MSP) का रुपया भेज दिया गया है। छत्तीसगढ़ राज्य में धान खरीदी बहुत जोर शोर से चल रही है। यहां खरीद केंद्रों पर धान विक्रय किया जा रहा है।


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किसानों के लिए अच्छी व्यवस्था एवं उनकी सुविधाओं का भी खरीद केंद्र प्रशासन व जिला प्रशासन काफी ख्याल रख रहे हैं। छत्तीसगढ़ के समस्त जनपदों की मंडियों में धान खरीदी तेजी से चल रही है। यदि राज्य सरकार के आंकड़ों पर ध्यान दें, तो राज्य में तकरीबन 55 लाख मीट्रिक टन धान खरीदी की जा चुकी है। इस धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) (MSP On Paddy) के तौर पर लगभग 14 लाख कृषकों के खाते में साढ़े 11 हजार करोड़ रुपये की धनराशि भेजी जा चुकी है। इस धनराशि को बैंक लिंकिंग व्यवस्था के माध्यम से भेजा गया है।


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कितने लाख मीट्रिक टन धान खरीदी का लक्ष्य तय किया गया है

प्रदेश में एक नवंबर से धान खरीदी प्रारंभ की जा चुकी है। राज्य सरकार द्वारा धान खरीदी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इस वर्ष कृषकों द्वारा 110 लाख मीट्रक टन धान खरीदी की जानी है। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री (भूपेश बघेल) जी ने समस्त जनपदों के अधिकारियों को निर्देश दिया गया है, कि खरीद केंद्रों पर जो भी किसान आऐं उनको कोई भी प्रकार की परेशानी या दिक्कत का सामना नहीं करना पड़े। निर्धारित लक्ष्य को पाने के लिए धान खरीद करना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए किसानों का धान हर कीमत पर खरीदा जाए।

कितने न्यून्तम समर्थन मूल्य पर खरीदा जायेगा धान

छत्तीसगढ़ राज्य में धान खरीदी एमएसपी के अनुरूप की जा रही है, धान खरीदी हेतु 2594 उपार्जन केन्द्र स्थापित किये जा चुके हैं। छत्तीसगढ़ में सामान्य धान 2040 रुपये प्रति क्विंटल एवं ग्रेड-ए धान 2060 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कृषकों द्वारा खरीदा जा रहा है। वहीं, दूसरे राज्य से विक्रय हेतु आये हुए धान पर काफी सजगता व सतर्कता बरती जा रही है। प्रशासन इसको एक अवैध परिवहन मानता है और तत्कालिक रूप से कार्यवाही भी कर रहा है।


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कितने हजार ऑनलाइन टोकन जारी किये जा चुके हैं

धान खरीदी हेतु 70,356 टोकन, साथ ही, टोकन तुंहर हाथ एप के माध्यम से 19,481 ऑनलाइन टोकन जारी किए जा चुके हैं। किसान ऑनलाइन पंजीकरण में भी अपना रुझान कर रहे हैं, इस वर्ष 25.92 लाख कृषकों का पंजीकरण हो गया है। इसमें से करीब 2.26 लाख नवीन कृषक सम्मिलित हुए हैं। दूसरी जगह पंजीकृत कृषकों का धान का क्षेत्रफल में वृध्दि होकर 30.44 लाख हेक्टेयर तक पहुँच गया है।
आ गया पीएम किसान की 14वीं किस्त पर बड़ा अपडेट, इस महीने आएंगे अकाउंट में पैसे

आ गया पीएम किसान की 14वीं किस्त पर बड़ा अपडेट, इस महीने आएंगे अकाउंट में पैसे

किसानों के लिए केंद्र सरकार पीएम किसान सम्मान निधि योजना चला रही है. सीमांत किसानों की आर्थिक मदद करने के लिए इसे योजना की शुरुआत की गयी है. इस योजना के अंतर्गत किसानों के खातों में अब तक 13 किस्ते जा चुकी हैं. जिसके बाद अब 14वीं किस्त को लेक्ट भी बड़ा अपडेट आ चुका है. 27 फरवरी को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत 13वीं किस्त को जारी किया था. जिसके लिए केंद्र सरकार की ओर से कुल 16 हजार करोड़ रूपये की राशि खर्च की गयी. बताया जा रहा है कि, केंद्र सरकार की इस योजना का फायदा देश के करीब 8 करोड़ से भी ज्यादा किसानों को मिला है. जिसके बाद अब किसान अगली यानि की 14वीं किस्त को लेकर काफी उत्साहित हैं. उनके मन में अब सिर्फ एक ही सवाल है, कि 14वीं किस केंद्र सरकार कब और कौन से महीने में जारी करेगी.
  • नहीं करना होगा ज्यादा इंतज़ार

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक
पीएम किसान सम्मान निधि योजना से जुड़ी 14वीं किस्त के लिए किसान भाइयों को अब ज्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ेगा. अगर किसान इसका फायदा उठाना चाहते हैं, तो अपने बैंक से जुड़े सारे प्रोसेस को पहले पूरा कर लें. काफी किसानों ने अब तक अपना केवाईसी भी अपडेट नहीं किया है, और अकाउंट नंबर को आधार से भी लिंक नहीं करवाया है. ऐसे में किसानों को पहले इन सब कामों को पूरा करना जरूरी होगा. वरना जो किसान 13वीं किस्त से वंचित रह गये हैं, वो 14वीं किस्त से भी वंचित रह जाएंगे.
  • केंद्रीय योजना है पीएम किसान सम्मान निधि

केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही पीएम किसान सम्मान निधि योजना सीमांत किसानों की आर्थिक मदद के लिए है. जिसमें सरकार हर साल किसानों को 6 हजार रुपये की राशि देती है. इस राशि को दो-दो हजार रुपये की तीन समान किस्तों में किसनों के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किया जाता है. इस योजना की सबसे ख़ास बात यह ही कि, इसके लिए किसानों को भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती. इस योजना के लिए केंद्र सरकार अब तक ढ़ाई लाख करोड़ रूपये से भी ज्यादा की राशि खर्च कर चुकी है.

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  • अप्रैल से जुलाई के बीच जारी हो सकती है 14वीं किस्त

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक अप्रैल से जुलाई के बीच केंद्र सरकार पीएम किसान सम्मान निधि योजना की 14वीं किस को जारी कर सकती है. आपको बता दें ऑफिसियल तौर पर इस मामले में अभी तक कोई ऐलान नहीं किया गया है. ऐसे कई किसान हैं, जिनके बैंक अकाउंट में अब तक 13वीं किस्त नहीं पहुंच पायी है. ऐसे में किसान हेल्पडेस्क पर भी अपनी शिकायत कर सकते हैं. इसके अलावा 011-24300606 और 155261 पर फोन करने किसान अपनी शिकायत को दर्ज कर सकते हैं. वहीं सरकार ने किसानों की मदद के लिए टोल फ्री नंबर भी जारी किये हैं. जो 18001155266 है. इसके साथ ही किसान भाई अपनी समस्या बताने के लिए pmkisan-funds@gov.in पर विजिट कर सकते हैं.
खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन

खुशखबरी: बिहार के मुजफ्फरपुर के अलावा 37 जिलों में भी हो पाएगा अब लीची का उत्पादन

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार राज्य के अंदर सबसे ज्यादा मुजफ्फरपुर जनपद में लीची (Lychee; Litchi chinensis) का उत्पादन किया जाता है। मुजफ्फरपुर जनपद में 12 हजार हेक्टेयर भूमि में लीची का उत्पादन किया जा रहा है। बिहार के कृषकों के लिए एक अच्छी बात है, कि वर्तमान में बिहार के मुजफ्फरपुर के साथ बाकी जनपदों में भी कृषक लीची का उत्पादन कर सकते हैं। बिहार में करीब 5005441 हैक्टेयर जमीन लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। ऐसी स्थिति में यदि मुजफ्फरपुर के अतिरिक्त अन्य जनपद के कृषक भी लीची का उत्पादन करना चालू करते हैं। तब यह लीची का उत्पादन उनके लिए एक अच्छे आय के स्त्रोत की भूमिका अदा करेगा।

मुजफ्फरपुर के अलावा और भी जगह लीची का उत्पादन किया जाता है

आज तक की रिपोर्ट के अनुसार, मुजफ्फरपुर भारत भर में शाही लीची के उत्पादन के मामले में मशहूर है। साथ ही, लोगों का मानना है, कि केवल मुजफ्फरपुर की मृदा ही लीची की खेती के लिए बेहतर होती है। हालाँकि,अब ये सब बातें काफी पुरानी हो चुकी हैं। एक सर्वेक्षण के चलते यह सामने आया है, कि बिहार के 37 जनपदों के अंदर लीची का उत्पादन किया जा सकता है। इसका यह मतलब है, कि इन 37 जनपदों में लीची के उत्पादन हेतु जलवायु एवं मृदा दोनों ही अनुकूल हैं। सर्वे के अनुसार, इन 37 जनपदों के अंतर्गत 5005441 हेक्टेयर का रकबा लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। साथ ही, 2980047 हेक्टेयर भूमि बाकी फसलों हेतु लाभकारी है। ये भी पढ़े: अब सरकार बागवानी फसलों के लिए देगी 50% तक की सब्सिडी, जानिए संपूर्ण ब्यौरा

केवल बिहार राज्य में देश का 65 प्रतिशत लीची उत्पादन होता है

जानकारी के लिए बतादें, कि बिहार में लीची का सर्वाधिक उत्पादन किया जाता है। बिहार में किसान भारत में समकुल लीची की पैदावार का 65 फीसद उत्पादन करते हैं। परंतु, बिहार राज्य में भी सर्वाधिक मुजफ्फरपुर में शाही लीची का उत्पादन होता है। जानकारी के लिए बतादें कि 12 हजार हेक्टेयर के रकबे में लीची का उत्पादन किया जा रहा है। परंतु, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र, मुजफ्फरपुर की तरफ से किए गए सर्वेक्षण के उपरांत बिहार राज्य में लीची के क्षेत्रफल में बढ़ोत्तरी देखी जाएगी। राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, राज्य में 1,53,418 हेक्टेयर रकबा लीची के उत्पादन हेतु सर्वाधिक अनुकूल है।

ये मुजफ्फरपुर से भी अधिक लीची उत्पादक जनपद हैं

सर्वेक्षण के मुताबिक, पश्चिम चंपारण, मधुबनी, कटिहार, अररिया, बांका, औरंगाबाद, जमुई, पूर्णिया, पूर्वी चंपारण, मधेपुरा और सीतामढ़ी में मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा लीची का उत्पादन हो सकता है। इन जनपदों की मृदा और जलवायु मुजफ्फरपुर से भी ज्यादा लीची उत्पादन हेतु अनुकूल है। अगर इन समस्त जनपदों में लीची का उत्पादन चालू किया जाए तो भारत में भी चीन से ज्यादा लीची की पैदावार होने लगेगी। साथ ही, राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विकास दास के मुताबिक, तो किसान अधिकांश पारंंपरिक धान- गेहूं की भांति फसलों का उत्पादन करते हैं। इसकी वजह से प्रति हेक्टेयर में 50 हजार रुपये की आय होती है। हालांकि, लीची की खेती में परिश्रम के साथ- साथ लागत की भी ज्यादा जरूरत होती है। वहीं यदि किसान धान-गेहूं के स्थान पर लीची का उत्पादन करते हैं, तो उनको कम खर्चा में काफी अधिक लाभ मिलेगा। साथ ही, उत्पादकों को खर्चा भी काफी कम करना होगा।
कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट द्वारा विकसित सेब की किस्म से पंजाब में होगी सेब की खेती

खेती-किसानी के क्षेत्र में कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विशेषज्ञों का काबिल ए तारीफ योगदान रहता है। अगर वैज्ञानिक शोध करना बंद करदें तो किसानों को कृषि से उत्पन्न होने वाले नवीन आय के संभावित स्त्रोतों की जानकारी नहीं मिलेगी। जिससे खेती किसानी एक सीमा में ही सिमटकर रह जाएगी। किसानों को काफी फायदा होगा। कृषि विशेषज्ञों ने अब पंजाब की मृदा एवं जलवायु के अनुकूल सेब की किस्म विकसित की है। जी, हाँ अब पंजाब के किसान भाई भी सेब का उत्पादन करके अच्छी खासी आमदनी कर पाएंगे। जैसा कि हम जानते हैं, पंजाब एक कृषि प्रधान राज्य के तौर पर जाना जाता है। उत्तर प्रदेश क्षेत्रफल की दृष्टि और उपयुक्त जलवायु होने की वजह के चलते इसको छोड़के दूसरे स्थान पर पंजाब राज्य में सर्वाधिक गेहूं की खेती की जाती है। हालाँकि, अब पंजाब के किसान सेब का भी उत्पादन कर सकेंगे। दरअसल, कृषि विज्ञान केंद्र पठान कोट के जरिए एक ऐसी सेब की किस्म विकसित की गई है। जो कि पंजाब की जलवायु हेतु बिल्कुल उपयुक्त मानी जाती है। ऐसे में अब पंजाब के किसान सेब का उत्पादन करके बेहतरीन आय कर सकेंगे। मुख्य बात ये है, कि सेब की इस किस्म की खेती करने पर कम खर्चा आएगा।

सेब की खेती से बढ़ेगी किसानों की आमदनी

दैनिक भास्कर के अनुसार, कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट का सेब के ऊपर चल रहा परीक्षण सफलतापूर्वक हो चुका है। अब पंजाब के किसान पारंपरिक फसलों के अतिरिक्त सेब की खेती कर सकते हैं। इससे उन्हें अधिक आमदनी होगी। कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट के अधिकारी सुरिंदर कुमार ने बताया है, कि राज्य सरकार किसानों को फसल चक्र से बाहर निकालना चाहती है। जिससे कि वह बाकी फसलों की खेती कर सकें। ऐसे में सेब की खेती पंजाब में खेती किसानी करने वाले कृषकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगी।

अब गर्म जलवायु वाला पंजाब भी सेब का उत्पादन करेगा

अगर हम आम आदमी के नजरिये को ध्यान में रखकर बात करें तो अधिकाँश लोगों का यह मानना है, कि सेब का उत्पादन केवल ठंडे राज्यों में किया जा सकता है। विशेष रूप से उन जगहों पर जहां बर्फबारी हो रही है। हालाँकि, अब वैज्ञानिकों के प्रयासों से पंजाब जैसे अधिक तापमान वाले राज्य में भी सेब की खेती की जा सकती है। इतना ही नहीं अब कृषि विज्ञान केंद्र पठानकोट कृषकों को सेब के उत्पादन हेतु प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से जागरूक करने का कार्य करेगा। ये भी पढ़े: सेब की खेती संवार सकती है बिहारी किसानों की जिंदगी, बिहार सरकार का अनोखा प्रयास

गेंहू की भी तीन नवीन किस्म विकसित की थी

बतादें, कि खेती करने के दौरान लागत को कम करने के लिए और उत्पादन को अधिक करने के लिए देश के समस्त विश्वविद्यालय वक्त-वक्त पर नवीन किस्मों को विकसित करते रहते हैं। बतादें, कि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद द्वारा बीते माह गेंहू की तीन नवीन किस्मों को विकसित किया गया था। जिसके ऊपर अधिक तापमान का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। सेब की इस किस्म की मुख्य विशेषता यह है, कि गर्मी का आरंभ होने से पूर्व ही यह पककर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी।

यह किस्म HD-2967 एवं HD-3086 किस्म की तुलना में ज्यादा पैदावार देता है

खबरों के अनुसार, ICAR के वैज्ञानिकोंं ने बताया था, कि उन्होंने गेहूं की जिस किस्म को विकसित किया था। उनका प्रमुख उदेश्य बीट-द-हीट समाधान के अंतर्गत बुवाई के वक्त को आगे करना है। यदि इन नवीन विकसित किस्मों की बुवाई 20 अक्टूबर के मध्य की जाती है। तो यह होली से पूर्व पक कर कटाई हेतु तैयार हो जाएगी। मतलब कि गर्मी आने से पहले पहले इसको काटा जा सकता है। बतादें कि पहली किस्म का नाम HDCSW-18 है। यह HD-2967 व HD-3086 किस्म के तुलनात्मक अधिक गेहूं की पैदावार देगी।