दोस्तों आज हम बात करेंगे बैगन या बैंगन की खेती की, किसानों के लिए बैगन की खेती (Baigan ki kheti - Brinjal farming information in hindi) करना बहुत मुनाफा पहुंचाता है। बैगन की खेती से किसानों को बहुत तरह के लाभ पहुंचते हैं। क्योंकि बैगन की खेती करने से किसानों को करीब प्रति हेक्टर के हिसाब से 120 क्विंटल की पैदावार की प्राप्ति होती है। इन आंकड़ों के मुताबिक आप किसानों की कमाई का अनुमान लगा सकते हैं। बरसात के सीजन में बैगन की खेती में बहुत ज्यादा उत्पादकता होती है। बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक बातों को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बनें रहे।
बैगन की बुवाई खरीफ के मौसम में की जाती है। वैसे तो किसान खरीफ के सीजन में विभिन्न प्रकार की फसलों की बुवाई करते हैं। जैसे: ज्वार, मक्का, सोयाबीन इत्यादि। परंतु बैगन की खेती करने से बेहद ही मुनाफा पहुंचता है। बैगन की फसल की बुवाई किसान वर्षा कालीन के आरंभ में ही कर देते हैं। क्यांरियां थोड़ी थोड़ी दूर पर तैयार की जाती है। किसान 1 हेक्टेयर भूमि पर 20 से 25 क्यारियां लगाते हैं। भूमि में क्यारियों को लगाने से पहले उच्च प्रकार से खाद का चयन कर लेना फायदेमंद होता है।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैंगन के पौधे तैयार होने में लगभग 30 से 40 दिन का समय लेते हैं।
पौधों में बैगन की पत्तियां नजर आने तथा पौधों की लंबाई लगभग 14 से 15 सेंटीमीटर हो जाने पर रोपाई का कार्य शुरू कर देना चाहिए। किसान बैगन की फसल की रोपाई का सही समय जुलाई का निश्चित करते हैं।
ध्यान रखने योग्य बात : बैगन की फसल रोपाई के दौरान आपस में पौधों की दूरी लगभग 1 सेंटीमीटर से 2 सेंटीमीटर रखना उचित होता है।
किसानों के अनुसार हर एकड़ पर लगभग 7000 से लेकर 8000 पौधों की रोपाई की जा सकती है। किसान बैगन की फसल की उत्पादकता 120 क्विंटल तक प्राप्त करते हैं।
बैगन की कुछ बहुत ही उपयोगी प्रजातियां हैं, जो इस प्रकार है : पूसा पर्पल, ग्रांउड पूसा, अनमोल आदि प्रजातियां की बुवाई किसान करते हैं।
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बैगन की फसल की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए किसान हमेशा दोमट मिट्टी का ही चयन करते हैं। बलुई और दोमट दोनों प्रकार की मिट्टियां बैगन की फसल के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं। बैगन की फसल की पैदावार को बढ़ाने के लिए कार्बनिक पदार्थ से निर्मित मिट्टी का भी चयन किया जाता है। खेत रोपण करते वक्त इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि खेतों में जल निकास की व्यवस्था को सही ढंग से बनाए रखना चाहिए। क्योंकि बैगन की फसल बरसात के मौसम में लगाई जाती है, ऐसे में जल एकत्रित हो जाने से फसल खराब होने का भय होता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार बैगन की फसल के लिए सबसे अच्छा मिट्टी का पीएच करीब 5 से 6 अच्छा होता है।
बैगन की अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए कुछ चीजों को ध्यान में रखना बहुत ही ज्यादा उपयोगी है। जिससे आप बैंगन की फसल की ज्यादा से ज्यादा उत्पादकता को प्राप्त कर सकेंगे। खेतों में आपको लगभग 1 हेक्टेयर में 130 और 150 किलोग्राम नाइट्रोजन का इस्तेमाल करना चाहिए। वहीं दूसरी ओर 65 से 75 किलोग्राम फास्फोरस का इस्तेमाल करें। 40 से 60 किलोग्राम पोटाश खेतों में छोड़े, वहीं दूसरी ओर डेढ़ सौ से दो सौ क्विंटल गोबर की खाद खेतों में भली प्रकार से डालें।
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बैगन की फसल की तुड़ाई करने से पहले कुछ चीजों का खास ख्याल रखना चाहिए। सबसे पहले आपको तुड़ाई करते समय चिकनाई और उसके आकर्षण को भली प्रकार से जांच कर लेना चाहिए। बैगन ज्यादा पके नहीं तभी तोड़ लेनी चाहिए। इससे बैगन में ताजगी बनी रहती है और मार्केट में अच्छी कीमत पर बिकते हैं। बैगन की मांग मार्केट में बहुत ज्यादा होती है। बैगन के आकार को जांच परख कर ही तुड़ाई करना चाहिए। बैगन की तुड़ाई करते समय आपको इन चीजो का खास ख्याल रखना चाहिए।
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल बैगन की खेती पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में बैगन की खेती से जुड़ी सभी प्रकार की आवश्यक और महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। जो आपके बहुत काम आ सकती है। हमारे इस आर्टिकल से यदि आप संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया तथा अन्य प्लेटफार्म पर शेयर करें।
किसान निरंजन सरकुंडे ने बताया है, कि उनके पास 5 एकड़ खेती करने लायक भूमि है। पहले सरकुंडे अपने खेत में पारंपरिक फसलों की खेती किया करते थे। जिससे उनको उतनी आमदनी नहीं हो पाती थी। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, झारखंड, बिहार और हरियाणा में ही किसान केवल बागवानी की ओर रुख नहीं कर रहे। इनके साथ-साथ दूसरे राज्यों में भी किसान पारंपरिक फसलों की जगह फल और सब्जियों की खेती में अधिक रुची ले रहे हैं। मुख्य बात यह है, कि सब्जियों की खेती करने से किसानों की आय में भी काफी इजाफा होगा। इससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार देखने को मिलेगा। हालांकि, पहले पारंपरिक फसलों की खेती करने पर किसानों को खर्चे की तुलना में उतना ज्यादा मुनाफा नहीं होता था। साथ ही, परिश्रम भी काफी ज्यादा करना पड़ता था। बहुत बार तो अत्यधिक बारिश अथवा सूखा पड़ने से फसल भी बर्बाद हो जाती थी। परंतु, वर्तमान में बागवानी करने से किसानों को प्रतिदिन आमदनी हो रही है।
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महाराष्ट्र राज्य के किसान अधिकतर प्याज का उत्पादन करते हैं और इस पर ही आश्रित रहते हैं हालाँकि सर्वाधिक प्याज उत्पादन रबी सीजन में ही प्राप्त होता है। प्याज के द्वितीय सीजन की बुआई अक्टूबर-नवंबर माह के मध्य में होती है। इसकी फसल जनवरी से मार्च के मध्य तैयार हो जाती है। प्याज का फसल का तीसरा समय रबी सीजन में होता है। रबी सीजन की बुवाई दिसंबर से जनवरी के मध्य होती है, और इसकी फसल की पैदावार मार्च से मई के मध्य ली जाती है। महाराष्ट्र में प्याज की कुल पैदावार का ६० प्रतिशत उत्पादन रबी सीजन के दौरान होता है।
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हाल ही में महाराष्ट्र के नासिक से एक बहुत ही ज्यादा चौका देने वाली खबर सामने आई है. सोलापुर जिले के 58 वर्षीय किसान राजेंद्र तुकाराम प्याज की खेती करने वाले एक साधारण से किसान हैं. हाल ही में वह सोलापुर APMC में अपने 512 किलो प्याज बेचने के लिए अपने गांव से लगभग 70 किलोमीटर की दूरी तय करते हुए पहुंचे और आपको यह जानकर बहुत हैरानी होगी कि उन्हें 1 किलो प्याज के लिए सिर्फ ₹2 कीमत मिली.
सभी तरह के खर्चे निकालने के बाद जब राजेंद्र तुकाराम ने अपना मुनाफा जोड़ा तो वह मात्र 2.49 रुपए था और इसके लिए भी उन्हें 15 दिन बाद का एक पोस्ट डेटेड चेक थमा दिया गया जिस पर कीमत ₹2 लिखी गई थी क्योंकि बैंक राउंड फिगर में ही पैसा अदा करता है और वह 49 पैसे किसान को नहीं दे सकते हैं.
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राजेंद्र तुकाराम को यह पैसा सीधा ट्रेडर की तरफ से दिया जाएगा और उन्हें यह पैसा लेने में कोई दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है. उन्होंने आगे बताया कि उन्हें अपने पूरे प्याज की फसल का दाम ₹512 दिया गया था जिसमें से लगभग ₹509 ट्रेडर ने ट्रांसपोर्ट, लोडिंग और वजन आदि करने के लिए काट लिया.
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