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जुताई

भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण

आइए जानते हैं कि भूमि का विकास किस तरह से किया जाता हैं और भूमि विकास पूर्ण हो जाने के जुताई और बीज बोने के क्या तरीके हैं। 

जुताई और बीज बोने की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारी पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें। आइये जानें भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण और आधुनिक कृषि यंत्र

बीज बोने के तरीके

बुवाई का क्या अर्थ होता है, मिट्टी की विशेष गहराई को प्राप्त करने के बाद अच्छे अंकुरण बीजों को बोने की क्रिया को बुवाई कहते हैं। कृषि क्षेत्र में बुवाई का अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। 

बीच होने से पहले भूमि को अच्छी तरह से समतल किया जाता है।ताकि बीज बोने के टाइम जमीन उथल-पुथल या उसके कण भूमि में ना रह जाए।भूमि में बीज डालने के बाद बीज की दूरी को ध्यान में रखना आवश्यक होता है इससे अंकुरण अच्छे से फूट सके।

भूमि विकास के लिए भूमि की जुताई

किसी भी फसल की बुआई के लिए जुताई सबसे पहला कदम होती है। मिट्टी को उल्टा पुल्टा कर थोड़ा ढीला करा जाता है।जिससे पौधों और पोषक तत्वों की उपलब्धता को सुनिश्चित किया जा सके। 

जुताई के द्वारा रोपाई में बहुत ही मदद मिलती है और अंकुरण आसानी से भूमि में प्रवेश कर लेते हैं।मिट्टी ढीला करने से सबसे बड़ा फायदा यह होता है।कि मिट्टी को ढीला करने से इनमें मौजूद रोगाणुओं और केंचुओं के विकास में बहुत ही आसानी होती है।

जिससे फसलों को उच्च कोटि का लाभ पहुंचता है। साथ ही साथ यह जुताई खरपतवार आदि में भी काफी सहायता देती है।जुताई के द्वारा मिट्टी पोषक तत्वों से पूरी तरह से भरपूर बनाई जाती है। 

सभी किसान, कृषि फसलों की बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से जुताई करना अनिवार्य समझते हैं।कभी-कभी जुताई  फसलों के आधार पर भी की जाती है। की फसल किस तरह की है ,और उसे कितने तरह की जताई की जरूरत है किन स्थितियों में।

किसान अपनी भूमि की जुताई के लिए कल्टीवेटर , कुदाल, हल आदि उपकरणों का प्रयोग करते हैं।कभी-कभी मिट्टी काफी कठोर हो जाती है और फसलों की जुताई करने के लिए हैरो का इस्तेमाल भी किया जाता है। जिसके बाद जुताई के बाद भी कई प्रकार के जुताई की जाती है।

बुवाई के लिए भूमि को समतल करना

किसान खेतों की जुताई के बाद जो दूसरी क्रिया करते हैं वह भूमि समतल है। समतल यानी भूमि को एक समान करना होता है हल यह किसी भी अन्य उपकरणों के द्वारा। भूमि समतल विभिन्न विभिन्न समय पर फसलों के आधार पर बदलता रहता है। 

किसान समतल के लिए खेतों में मेड, खांचे या अन्य प्रकार की क्रिया को शामिल किए रहते हैं। जो विशिष्ट फसलों के लिए बहुत ही आवश्यक होती हैं। भूमि समतल करने से फसलों में सिंचाई काफी आसानी से हो जाती हैं। 

पौधों को अच्छी तरह से पानी की प्राप्ति हो जाती है पौधों के पनपने और पूर्ण रूप से उत्पादन करने के लिए। भूमि समतल करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण यानी लेवलर का इस्तेमाल किया जाता है। लेवलर उपकरण का इस्तेमाल कर भूमि को समतल किया जाता है। 

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खाद का चयन करना

बुवाई के बाद खाद के रूप में गाय की गोबर, नीम के अर्क, केचुआ सिंथेटिक उर्वरकों आदि जैसे जैविक संशोधनों का उपयोग किया जाता है। 

खेतों में मिट्टी की खाद डालने से पहले उसका अच्छी प्रकार से परीक्षण कर लेना चाहिए ,ताकि किसी भी प्रकार से फसलों को हानि ना हो, और मिट्टियों में मौजूद पोषक तत्व और खनिजों की उचित मात्रा की उपलब्धता पूर्ण रूप से सुनिश्चित हो। कुछ प्राकृतिक संशोधन के बाद हमें मिट्टी में खाद मिलानी चाहिए। 

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बीज बोने के एक प्रसारण तरीके

किसान भाई आसान तरीके से बीज बोने का प्रसारण करते हैं। खेतों में बीजों को बेहतरीन ढंग से तैयार कर लिया जाता है और अपने हाथों से भूमि पर बीजों को फेंकना शुरू कर दिया जाता हैं। 

आप हाथ या किसी अन्य उपकरण के द्वारा भी बीज को खेतों में फेंक सकते हैं।  बीज बोने से पहले बीजों का अच्छे से चयन कर लेना चाहिए। कि बीज भूमि के लिए उचित है या नहीं।बीजो को अच्छी तरह से खेतों में बिखेर देना चाहिए।

बीज बोने के लिए डिब्लिंग का इस्तेमाल

खेतों में आसानी से बीज बोने के लिए आजकल किसान भाई डिब्लिंग का भी इस्तेमाल कर रहे हैं। इस उपकरण के जरिए बीजों को डिब्बलर में रखा जाता है। डिब्बलर के निचले हिस्से पर एक छेद होता है जो बीज रखने के लिए उपयोग किया जाता है। 

डिब्बलरों को कोई भी कुशल किसान या श्रमिक आसानी से इस्तेमाल कर सकते हैं। यह एक शंक्वाकार कहने वाला यंत्र है। यह खेतों के बीच, बीज बोने के लिए खेतों में छेद करता है और अंकुरित बीजों को विकसित करता है।

डिब्लिंग विधि का इस्तेमाल कर समय की काफी बचत होती है। डिब्लिंग विधि का इस्तेमाल किसान ज्यादातर सब्जियों की फसल बोने तथा अन्य फसलों के लिए ज्यादा इस्तेमाल किया जाता हैं।

बीज बोने के लिए उपकरण

किसान बीज बोने के लिए अपना आसान और पारंपरिक तरीके का इस्तेमाल करते हैं,जैसे कि अपने हल के पीछे बीजों को गिराते रहते हैं भूमियों पर या आसान हल उपकरण का इस्तेमाल हैं बीज बोने के लिए। 

इनका उपयोग ज्यादातर गेहूं, चना ,मक्का जौ आदि बीजों की बुवाई करने के लिए किया जाता है। इस प्रक्रिया में किसान भूमि को हल द्वारा गहराई करता है ,और उसके पीछे दूसरा व्यक्ति बीजों को खेतों डालता रहता है। इस क्रिया से समय की बहुत हानि होती है।

भूमि विकास के लिए पशु चालित पटेला हैरो उपकरण का इस्तेमाल

पशु चालित पटेला हैरो की लंबाई लगभग 1.50 मीटर और मोटाई कम से कम 10 सेंटीमीटर होती है।पशु चालित पटेला हैरो लकड़ी का बना  हुआ उपकरण होता है। 

इस उपकरण से किसानों को बहुत ही सहायता मिलती है ,क्योंकि इसकी ऊपरी सतह पर घुमावदार हुक बंधा रहता है जो मिट्टियों को उपर नीचे करने में सहायक होता है। 

तथा इस उपकरण के जरिए मिट्टी में भुरभुरा पन आ जाता है।इसका मुख्य कार्य फसल के टूठ, वह इक्कट्ठा करना और खरपतवार को मिट्टी से अलग करना होता है।

पटेला 30 किसानों का कार्य करता है, इसके द्वारा 58 प्रतिशत संचालन में लगने वाले खर्चों की बचत होती है। तथा भूमि उपज में 3 से 4% की बढ़ोतरी होती है।

ब्लेड हैरो उपकरण का इस्तेमाल

या उपकरण स्टील का बना हुआ होता हैं, इसका मुख्य कार्य खरपतवार निकालने के लिए होता है। इस उपकरण में लगे ब्लेड के जरिए खरपतवार आसानी से निकाले जाते हैं। तथा इस उपकरण में लोहे के बड़े बड़े कांटे भी लगे होते। 

इस यंत्र को चलाने के लिए हरिस वह हत्था लगा हुआ होता है। यह यंत्र पूर्ण रूप से स्टील का बना हुआ होता है। इस उपकरण की मदद से किसान मूंगफली आलू आदि फसल की खुदाई भी कर सकते हैं। 

इस यंत्र के द्वारा किसानों को कम से कम 24 मजदूरों की बचत होती हैं और 15% जो खर्च संचालन में लगता है उसकी भी बचत होती है। 3 से  4% फसल उपजाऊ में काफी बढ़ोतरी भी होती है।

ट्रैक्टर चालित मिटटी पलट हल का इस्तेमाल

ट्रैक्टर चालित मिटटी पलट हल स्टील का बना हुआ होता है। इसका जो भाग होता है वो फार,मोल्ड बोर्ड, हरिस , भूमि पार्श्व  वह (लैंड साइड), हल मूल (फ्राग) आदि का होता है। 

इस उपकरण की सहायता से मिट्टी जितने भी सख्त हो, उसको तोड़ा जा सकता है। यह हल सख्त से सख्त मिट्टी को तोड़ने में सक्षम हैं।

यह हल कम से कम 40 से लेकर 50% मजदूरों का काम अकेले करता है। इसकी सहायता से 30% संचालन का खर्चा बचता है। इस हल की सहायता से किसानों को कम से कम 4 से 5% की उच्च कोटि की खेती की प्राप्ति होती है। 

यह हल की जुताई की गहराई का नियंत्रण लगभग हाइड्रोलिक लीवर या ट्रैक्टर के थ्री प्वाइन्ट लिंकेज से किया जाता हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस पोस्ट के जरिए भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण व अन्य उपकरणों की पूर्ण जानकारी प्राप्त हुई होगी। 

यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट है ,तो हमारी इस पोस्ट को अपने सोशल मीडिया यह अन्य प्लेस पर शेयर करें अपने दोस्तों के साथ धन्यवाद।

कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल

कद्दू उत्पादन की नई विधि हो रही है किसानों के बीच लोकप्रिय, कम समय में तैयार होती है फसल

सीताफल और काशीफल जैसे लोकप्रिय नाम से प्रचलित कद्दू या कुम्हड़ा (Kaddu, kumharaa or pumpkin) एक ऐसी सब्जी है, जिसे उत्पादन के बाद कोल्ड स्टोरेज में रखने की इतनी आवश्यकता नहीं होती है और लंबे समय तक आसानी से बेचा जा सकता है। सभी पोषक तत्वों की पूर्ति करने वाली यह फसल कई प्रकार की मिठाइयां बनाने के काम में तो आती ही है, साथ ही इसे खाने से उसके बीज में मौजूद विटामिन-सी, आयरन, फास्फोरस, पोटेशियम तथा जिंक जैसे सूक्ष्म तत्वों की कमी को भी दूर किया जा सकता है।

कद्दू की खेती के उपयुक्त जलवायु

वैसे तो कद्दू की खेती के लिए गर्म जलवायु की आवश्यकता होती है, परंतु फिर भी एक जायद फसल होने के नाते ठंडी और गर्म मिश्रण की जगह पर भी इसे उगाया जा सकता है। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि कद्दू की फसल को ज्यादा ठंड पड़ने पर पाले से बचाना होगा। कद्दू की अच्छी पैदावार के लिए आपको 18 से 25 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच में तापमान को नियंत्रित करना होगा।


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कद्दू की खेती के लिए कैसी मिट्टी चाहिये ?

कद्दू की खेती के लिए मुख्यतया भारत के किसान दोमट या बलुई दोमट मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं, हालांकि इसकी खेती बलुई मिट्टी में भी की जाती है। कद्दू की खेती के लिए किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि आपके खेत में पानी निकासी की व्यवस्था अच्छी तरीके से होनी चाहिए।

कद्दू की खेती के लिए खेत की तैयारी व खाद उपचार

किसान भाई यह तो जानते ही होंगे कि कद्दू एक उथली जड़ वाली फसल होती है, इसलिए इसे ज्यादा जुताई की आवश्यकता नहीं होती है। आप एक बार ही कल्टीवेटर से जुताई कर अपने खेत को समतल बनाकर इसके बीजों की बुवाई कर सकते है। खेत के तैयार होने के बाद छोटी-छोटी क्यारियां और नालियां बना कर मेड़ बनानी चाहिए। कद्दू की फसल के दौरान इस्तेमाल में होने वाले ऑर्गेनिक गोबर की खाद को डाला जा सकता है। इसके अलावा आप अरंडी की फसल से तैयार होने वाले चारे को पीसकर भी अंतिम जुताई से पहले खेत में अच्छी तरह बिखेर सकते है।


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यदि बात करें रासायनिक खाद और उर्वरकों की, तो प्रति हेक्टेयर जमीन के अनुसार 70 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलोग्राम पोटाश का इस्तेमाल किया जा सकता है। इन उर्वरकों का इस्तेमाल आपको अंतिम जुताई से पहले ही अपने खेत में करना होगा और नाइट्रोजन की कुछ मात्रा कद्दू के फूल के 20 से 25 दिन बड़े होने के बाद इस्तेमाल करनी चाहिए। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि सुबह के समय कद्दू की फसल में कभी भी रसायनिक या जैविक खाद का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए।

कद्दू की बुवाई में बीज अनुपात व उपचार

कद्दू की फसल को बोने का समय इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कहां पर बोया जा रहा है। भारत के मैदानी क्षेत्रों में इसे साल में दो बार उगाया जाता है और पर्वतीय क्षेत्रों में अप्रैल महीने में इसकी बुवाई की जाती है। किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि फसल की दो कतारों के बीच में लगभग 200 से 250 सेंटीमीटर की दूरी होनी अनिवार्य है और दो छोटी पौध के बीच में 45 से 50 सेंटीमीटर की दूरी रखनी चाहिए। बीज को जमीन से 5 से 6 सेंटीमीटर गहराई में बोया जाए तो इसकी कोंपल सही समय पर बाहर निकल आती है। कद्दू की बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर की दर से 1 किलोग्राम से 2 किलोग्राम बीज पर्याप्त होते है। बीज बोने से पहले आप अपने बीज का उपचार भी कर सकते है, जिसके तहत बीज को 1 लीटर पानी में मिलाकर उसमें 2 ग्राम केप्टोन का मिश्रण तैयार किया जा सकता है और फिर इसे अच्छी तरह घोला जाता है, कुछ समय बाद बाहर निकाल कर दो से तीन घंटे छाया में सुखाकर बुवाई के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है।


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कद्दू की उन्नत किस्में

पूसा के वैज्ञानिकों के द्वारा कद्दू की फसल की कई उन्नत किस्में भारतीय किसानों के लिए तैयार की गई है, इनमें पूसा-अलंकार, पूसा-विश्वास तथा पूसा-विकास खेतों में इस्तेमाल की जाने वाली उन्नत किस्म है।

कद्दू की फसल में कीट नियंत्रण

किसान भाइयों कद्दू की फसल में लगने वाले रोग जैसे कि लीफ-माइनर और फल-मक्खी से बचाव के लिए घर पर ही कुछ रासायनिक मिश्रण तैयार कर सकते है।इसके लिए आप वर्मी-मैक्स यात्रा की 0.005 प्रतिशत मात्रा को अपने खेत में तीन से चार सप्ताह के अंतराल पर छिड़काव कर सकते है। फल मक्खी कद्दू की फसल में लगने वाले फल की मुलायम अवस्था में ही उसके अंदर अंडे दे देती है और उसे अंदर से खाना शुरु कर देती है, इसके निवारण के लिए फूल के बड़े होने के बाद रासायनिक दवाओं का इस्तेमाल कम करना चाहिए और नीम की निंबोली का पानी के साथ 5% गोल मिलाकर इस्तेमाल करना चाहिए।

कद्दू के फसल की तुड़ाई

कद्दू की फसल की बुवाई के लगभग 70 से 80 दिनों में यह तैयार हो जाता है और आपके आसपास की मंडी की मांग के अनुसार इसे समय-समय कर तोड़ते रहना चाहिए। भारत के लोगों के द्वारा दोनों समय की सब्जी के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसकी डिमांड पूरे साल चलती रहती है। यदि आप उपयुक्त बतायी गयी विधि का इस्तेमाल पूरी सावधानी से करते हैं तो एक हेक्टेयर क्षेत्र में लगभग 300 से 400 क्विंटल कद्दू की पैदावार कर सकते है। इसके भंडारण के लिए किसी विशेष शीत-ग्रह की जरूरत नहीं होगी और अपने घर में ही एक कमरे में 20 से 25 दिन तक स्टोर किया जा सकता है, पर ध्यान रहे कि तापमान लगभग 30 डिग्री सेल्सियस से कम ही होना चाहिए। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार की गई कद्दू उत्पादन की यह नई विधि पसंद आई होगी और भविष्य में इसी विधि का इस्तेमाल करके अच्छा उत्पादन कर पाएंगे।
कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं (Tillage requirement in agro-climatic conditions in Hindi)

कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं (Tillage requirement in agro-climatic conditions in Hindi)

किसान कैसे विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में अपने खेत की जुताई करते हैं और अपने खेतों को उत्पादन के लिए विकसित करते हैं। 

विभिन्न प्रकार के प्रश्नों के उत्तर और उनसे जोड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां को जानने के लिए हमारी इस पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें:

विभिन्न जलवायु परिस्थितियों में खेत की जुताई

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन होती हैं तो इन परिवर्तन के कारण पैदावार या उपज में लगभग 15 से 18% की कमी आ जाती है। 

वहीं दूसरी ओर गैर-सिंचित क्षेत्रों में तकरीबन 20 से 25% की कमी हो जाती है। इस जलवायु परिवर्तन के कारण वार्षिक कृषि कमाई 15 से 18% ही हो पाती है।

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कृषि जलवायु क्षेत्र

कृषि जलवायु क्षेत्र (Agro Climatic Zones) के लिए एक भूमि की इकाई आवश्यक होती है जिसके चलते फसलों की किस्मों को जोतने में आसानी हो। 

इनका मुख्य उद्देश प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की हो रही विभिन्न प्रकार की स्थितियों के चलते बिना किसी दुष्प्रभाव के भोजन चारा लकड़ी, फाइबर आदि के जरिए मिलने वाले ईंधन को सुरक्षित रखना है। 

इन कृषि जलवायवी योजना का मुख्य उद्देश मानव तथा प्राकृतिक द्वारा निर्मित साधनों का अधिक से अधिक वैज्ञानिक रूप से अपने कार्यों के लिए उपयोग करना होता है।

कृषि जलवायु क्षेत्रों की योजना

कृषि जलवायु क्षेत्र की योजना के अंतर्गत कृषि जलवायवी योजना का मुख्य लक्ष्य होता है कि वह ज्यादा से ज्यादा मानव निर्मित तथा प्रकृति द्वारा निर्मित दोनों ही साधनों का प्रयोग अधिक से अधिक कर सके। 

कृषि-पारिस्थितिकी क्षेत्र जलवायु मुख्य रूप से फसल की उपज, वर्षा, मिट्टी के विभिन्न प्रकार तथा पानी की आवश्यकता, वनस्पतियों के विभिन्न प्रकार आदि के नेतृत्व को प्रभावित करने वाले कारणों को पूर्ण रूप से जाना होता है।

जलवायु परिवर्तन तथा इसके प्रभाव

जलवायु परिवर्तन के कारण विभिन्न विभिन्न प्रकार के प्रभाव पड़ते हैं जैसे कुछ देशों में हिमालय से लेकर दक्षिण एशिया के तटीय देशों में इस तरह की भयानक ग्लोबल वॉर्मिंग से लड़ने के लिए हर समय खुद को सक्षम रखते हैं। 

तथा इस ग्लोबल वॉर्मिंग का हमेशा निडरता के साथ सामना करते हैं। प्राप्त की गई जानकारियों के अनुसार इन देशों में से दक्षिण एशिया अपनी 21वीं शताब्दी में 2 से लेकर 6 डिग्री सेल्सियस की अधिक गर्मी से भरपूर तापमान को झेल सकता है।

रविंद्रनाथ द्वारा दी गई सन 2007 में जानकारी के अनुसार कार्बन डाई का स्तर काफी उच्च स्तर पर था, या लगभग 410 के आसपास  पीपीएम तक पहुंच चुका था। इसे ग्लोबल वॉर्मिंग का मुख्य कारण माना जाता है। 

कुछ अन्य ऐसे भी क्षेत्र है जो इस ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते सूखा झेल रहे हैं : यह क्षेत्र कुछ इस प्रकार है जैसे: हरियाणा कर्नाटक पश्चिम राजस्थान मध्य प्रदेश आंध्र प्रदेश दक्षिणी गुजरात दक्षिणी बिहार आदि सुखा प्रवण राज्य अनपेक्षित सूखे का सामना कर रहे हैं।

कृषि-जलवायु

कृषि जलवायु के अंतर्गत इसका वार्षिक तापमान लगभग 8 °c सेल्सियस होता है। जलवायु मृदु ग्रीष्म तथा बहुत कड़ी शीत वाला होती है। इन क्षेत्रों में औसत वार्षिक वर्षा सिर्फ 150 मी. मी. की दर पर बहुत कम होती है। 

क्षेत्रों में क्राईक मुद्राएं वह शुष्क मृदा नियंत्रण रूप से पाई जाती है। इस स्थिति में फसल का वृद्धि काल सिर्फ 90 दिनों से ज्यादा दिनों तक विकसित नहीं होता।

कृषि भूमि प्रयोग पारिस्थितिकी

इन कृषि क्षेत्रों में काफी कम वन पाए जाते हैं। इन भूमि प्रति इकाई उत्पादन बहुत कम होता है। सब्जियों में अग्रवर्ती फसलें तथा वनस्पतियां ज्वार, बाजरा, गेहूं, चारा दालें आदि की फसलें उगाई जाती हैं। 

फसलों के बीच में हल्की हल्की घास भी उगाई जाती हैं इन क्षेत्रों में फलों के रूप में सेब तथा खुबानी की खेती होती है। खेतों की जुताई के लिए भेड़, बकरी, याक खच्चर आदि पशुओं का इस्तेमाल किया जाता है।

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कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं

कृषि जलवायु परिस्थितियों में जुताई करते समय विभिन्न प्रकार की आवश्यकता की जरूरत होती है। भूमि को गहराई से कुछ इंचों की दूरी पर अच्छे से खोदना चाहिए। मिट्टी को हल के जरिए पलट पलट कर खुरदरा करना चाहिए। 

ऐसा करने से नीचे की मिट्टी ऊपर आ जाती है। यह मिट्टियां उष्मा आदि के प्राकृतिक क्रिया द्वारा प्रभावित होकर अपना भुरभुरा रूप ले लेती हैं। 

कृषि कार्य भूमि को वर्षा, सूर्य, वायु पाला, प्रकाश के संपर्क में उगाते हैं। कृषि इन स्थितियों में अपने खेतों की जुताई करते हैं।

  • कृषि नई भूमि की जुताई करने से पूर्व विभिन्न प्रकार की सावधानियां बरतें हैं जैसे, की नई भूमि को जोतते समय पहले पेड़, पौधों को अच्छी तरह भूमि से काट लेते हैं। पूरी तरह भूमि को स्वच्छ कर लेते हैं उसके बाद किसी भारी यंत्र द्वारा अपने खेत की जुताई करते हैं। जुताई यंत्र द्वारा मिट्टी कटती है और फिर उन मिट्टी को ऊपर नीचे पलटा भी जाता है। इस तरह से कई बार खेतों की जुताई करते हैं और जब भूमि अपना गहराई का रूप ले लेती है तब मिट्टी फसल उगाने के लायक बन जाती है।
  • इन खेतों की गहराई कम से कम 1 फुट होती है। इस नीचे वाली भूमि को गर्भतल के नाम से भी बुलाया जाता है। गर्भतल कभी-कभी अनुपजाऊ भी रह जाते हैं इस स्थिति में गहरी जुताई करने के बाद मिट्टी को उपजाऊ बनाना जरूरी होता है। गर्भतल की गहराई निश्चित आकार के रूप में ना की जाए, तो या अपना कठोर रुप ले लेती हैं। इसकी ऊपरी सतह बहुत ही ज्यादा कठोर बन जाती है। इस कठोर सतह को अंग्रेजी भाषा में प्लाऊ पैन के नाम से भी जाना जाता है। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यह कठोर तह बहुत ही हानिकारक होती है। सिंचाई व वर्षा जब होती है तो खेत में जल ज्यादा होते हैं और यह कठोर तह तक नहीं पहुंच पाते है।

मिट्टियों में काफी टाइम तक पानी भरा रहता है और इस वजह से विभिन्न प्रकार के कुछ हानिकारक कारण भी उत्पन्न हो जाते हैं खेतों में।

  • सर्वप्रथम बीज बोने से पहले मिट्टी को किसी भी मिट्टी पलटने वाले यंत्र से उलट पलट देना चाहिए। मिट्टी पलटने के लिए भारी उपकरण का इस्तेमाल करें। हल के जरिए मिट्टी को अच्छी तरह से भुरभुरा कर देना चाहिए। खेत की आखिरी जुताई बहुत ही ध्यान से करनी चाहिए। मिट्टियों में मौजूद आर्द्रता का संरक्षण इस आखिरी बुवाई पर पूर्ण रूप से निर्भर होता हैं। यदि आर्द्रता अच्छे प्रकार से होती है तो बीज सफलतापूर्ण जम जाते हैं। केशिका नलियों के जरिए यह ऊपर की तह तक भली प्रकार से पहुंच जाते हैं।
  • हल की मुठिया को खूब अच्छी तरह से पकड़ना चाहिए। ताकि जुताई करते टाइम हल का संपर्क सीधा गहराई से हो। खेतों की जुताई जलवायु के अनुसार खरीफ, रबी, जायद मौसम में विभाजित करनी चाहिए। इन्हीं के अनुसार फसलों की जुताई करनी चाहिए।

हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारी इस आर्टिकल के जरिए, विभिन्न कृषि-जलवायु परिस्थितियों में जुताई की आवश्यकताएं तथा अन्य जानकारी पूर्ण रूप से प्राप्त हुई होंगी। 

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फसल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मई माह में कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य

फसल उत्पादकता को बढ़ाने के लिए मई माह में कृषि से संबंधित महत्वपूर्ण कार्य

कृषि में अच्छी उत्पादकता के लिए कुछ जरूरी बातों का ध्यान रखना होता है। सबसे पहले जुताई किसी भी फसल की खेती के लिए सर्वप्रथम कार्य है। 

फसल की पैदावार खेत की जुताई पर आश्रित होती है। क्योंकि, अब रबी फसलों की कटाई का कार्य तकरीबन पूर्ण हो चुका है। 

अब ऐसे में किसान खरीफ सीजन की खेती की तैयारियों में जुट गए हैं। रबी फसल की कटाई के पश्चात खेत बिल्कुल खाली हो जाते हैं।

परंतु, खरीफ सीजन की खेती शुरू करने से पहले किसानों को ग्रीष्मकालीन जुताई अवश्य कर लेनी चाहिए। जमीन की उर्वरता को बढ़ाने के लिए ये काफी जरूरी है। 

इससे फसल उपज में काफी लाभ मिलता है। जानिए जुताई क्यों आवश्यक है। रबी फसल की कटाई के पश्चात खेत खाली हो जाते हैं। 

वहीं, गर्मी में खाली खेत पानी की कमी की वजह से सख्त हो जाते हैं, जिससे बचने के लिए खेत की ग्रीष्मकालीन जुताई अत्यंत आवश्यक है। कृषि वैज्ञानिकों की मानें तो खेत में केमिकल फर्टिलाइजेशन से भूमि के 6 इंच तक मृदा सख्त हो जाती है।

खरीफ के सीजन में कल्टीवेटर से जुताई करने पर खेत में 3 इंच तक ही जुताई हो पाती है। इससे खेत की कड़ी मिट्‌टी टूटती नहीं और जड़ों का विकास नहीं हो पाता है। इसके लिए कृषकों को गर्मी के मौसम में एक बार ग्रीष्मकालीन जुताई करनी अत्यंत आवश्यक है।

किस महीने में ग्रीष्मकालीन जुताई करनी चाहिए

ग्रीष्मकालीन जुताई करने का सबसे अनुकूल वक्त मई माह होता है। इस मौसम में तापमान काफी ज्यादा होता है। इस दौरान जमीन के अंदर कीड़े मकोड़े घर बना लेते हैं। 

साथ ही, जुताई करने से मृदा पलटती है, जिससे कीड़ों के साथ उनके अंडे और घर चौपट हो जाते हैं। इससे वो आगे खरीफ की फसल को हानि नहीं पहुंचा पाते। साथ-साथ जुताई के पश्चात मृदा के अंदर हवा का संचार होता है।

ग्रीष्मकालीन जुताई कितनी गहराई तक करनी चाहिए ?

ग्रीष्मकालीन जुताई जमीन में 6 इंच तक करनी आवश्यक है। बतादें, कि किसी भी फसल के जड़ का विकास 6 से 9 इंच तक होगा, जिससे फसल अच्छी तरह तैयार होती है। 

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इसके लिए किसान ट्रैक्टर के साथ दो हल वाले एमपी फ्लाई, डिस फ्लाई, क्यूचिजन फ्लाई मशीन के हल का उपयोग कर सकते हैं। इससे खेत में 6 इंच तक गहरी जुताई हो जाती है। जुताई करने पर बारिश होने के बाद खेत में पानी ठहरता है, जिससे मृदा में नमी बनी रहती है।

ग्रीष्मकालीन जुताई के क्या-क्या फायदे हैं ?

ग्रीष्मकालीन जुताई से मृदा में कार्बनिक पदार्थों की वृद्धि होती है। मिट्टी के पलट जाने से जलवायु का असर सुचारू रूप से मृदा में होने वाली प्रतिक्रियाओं पर पड़ता है। 

वहीं, वायु और सूर्य के प्रकाश की मदद से मिट्टी में विद्यमान खनिज ज्यादा सुगमता से पौधे के भोजन में परिणित हो जाते हैं। 

ग्रीष्मकालीन जुताई कीट एवं रोग नियंत्रण में सहायक है। हानिकारक कीड़े तथा रोगों के रोगकारक भूमि की सतह पर आ जाते हैं और तेज धूप से खत्म हो जाते हैं।

ग्रीष्मकालीन जुताई मृदा में जीवाणु की सक्रियता को काफी बढ़ाती है। यह दलहनी फसलों के लिए भी काफी ज्यादा उपयोगी है। ग्रीष्मकालीन जुताई खरपतवार नियंत्रण में भी मददगार है। 

कांस, मोथा आदि के उखड़े हुए हिस्सों को खेत से बाहर फेंक देते हैं। अन्य खरपतवार उखड़ कर सूख जाते हैं। खरपतवारों के बीज गर्मी व धूप से नष्ट हो जाते हैं।

बारानी खेती वर्षा पर निर्भर करती है अत: बारानी परिस्थितियों में वर्षा के पानी का अधिकतम संचयन करने लिए ग्रीष्मकालीन गहरी जुताई करना नितान्त आवश्यक है। 

अनुसंधानों से भी यह साफ हो चुका है, कि ग्रीष्मकालीन जुताई करने से 31.3 प्रतिशत बरसात का पानी खेत में समा जाता है। ग्रीष्मकालीन जुताई करने से बरसात के पानी द्वारा खेत की मिट्टी कटाव में भारी कमी होती है।

अर्थात् अनुसंधान के परिणामों में यह पाया गया है कि गर्मी की जुताई करने से भूमि के कटाव में 66.5 फीसद तक की कमी आती है। 

ग्रीष्मकालीन जुताई से गोबर की खाद व अन्य कार्बनिक पदार्थ जमीन में बेहतर तरीके से मिल जाते हैं, जिससे पोषक तत्व जल्द ही फसलों को उपलब्ध हो जाते हैं।

जानें सबसॉइलर (Subsoiler) कृषि मशीन की बेहतरीन विशेषताओं के बारे में

जानें सबसॉइलर (Subsoiler) कृषि मशीन की बेहतरीन विशेषताओं के बारे में

सबसॉइलर कृषि मशीन खेत के अंदर गहरी जुताई करने के लिए बेहद ही ज्यादा उपयोगी मशीन होती है। इस मशीन को ट्रैक्टर के पीछे लगाकर संचालित किया जाता है। 

सबसॉइलर से खेत की जुताई करने के उपरांत फसल में रोग लगने की आशंका बेहद ही कम हो जाती है। यहां पर जानें इस कृषि मशीन की बाकी महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में। 

खेती-किसानी के कार्यों को सुगमता से पूर्ण करने के लिए बाजार में विभिन्न प्रकार के शानदार कृषि उपकरण उपलब्ध हैं। इन्हीं कृषि मशीनों में एक सबसॉइलर कृषि यंत्र भी शम्मिलित है, जो कि कम परिश्रम में खेतों की गहरी जुताई करने में सक्षम है। 

इस उपकरण को संचालित करने के लिए आपको ट्रैक्टर की जरूरत पड़ेगी। दरअसल, सबसॉइलर कृषि मशीन को ट्रैक्टर के पीछे लगाकर खेत में संचालित किया जाता है। 

बतादें, कि इस सबसॉइलर कृषि मशीन को खेत में फसल बिजाई से पूर्व ही तैयार करने के लिए चलाया जाता है। यह मशीन खेत के अंदर गहरी जुताई करने के लिए बेहद उपयोगी साबित होती है।

इस मशीन के माध्यम से की गई जुताई के उपरांत किसानों की फसल में रोग लगने की आशंका कम होती है। खेत की जुताई का कार्य शीघ्रता से किया जा सके, इसको मंदेनजर रखते हुए सबसॉइलर कृषि मशीन को तैयार किया गया है।

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सबसॉइलर कृषि मशीन

यह कृषि उपकरण ट्रैक्टर के साथ जोड़कर चलने वाली मशीन है, जो खेत में कम समय में ही गहरी जुताई करने में सक्षम है। 

इसे मिट्टी को तोड़ना, मिट्टी को ढीला करना और गहरी अच्छी जुताई करने के लिए सबसॉइलर कृषि मशीन बेहद लोकप्रिय है। 

यह मशीन मोल्डबोर्ड हल, डिस्क हैरो या रोटरी टिलर मशीन के मुकाबले काफी अच्छे से खेत की जुताई करती है. इसके अलावा, सबसॉइलर कृषि मशीन खेत की मिट्टी को अच्छी उर्वरता शक्ति प्रदान करने में भी मदद करती है. इस मशीन से खेत की जुताई करने के बाद किसानों को फसल की अच्छी उपज प्राप्त होती है।

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सबसॉइलर कृषि मशीन का उपयोग

  • किसान भाई इस मशीन का अधिकतर उपयोग खेत की जुताई करने के लिए करते हैं।
  • इस मशीन का इस्तेमाल खेत में पानी को रोकने के लिए भी किया जाता है।
  • सबसॉइलर मशीन खेत की खराब स्थिति को सुधारने के लिए भी खेत में चलाई जाती है।
  • सबसॉइलर कृषि मशीन से क्या क्या फायदे होते हैं
  • सबसॉइलर कृषि मशीन को खेत में चलाने के पश्चात फसल में कीट और रोग लगने की आशंका काफी कम हो जाती है।
  • सबसॉइलर मशीन के उपयोग से खेत की मिट्टी की उपजाऊ क्षमता बनी रहती है।
  • देश के जिन हिस्सों में जल के अभाव की वजह खेत की सिंचाई नहीं की जाती उन इलाकों के लिए यह बेहद उपयोगी कृषि यंत्र है।
  • इस मशीन के इस्तेमाल से किसान कम से कम ढाई फीट तक गहरी नाली बना सकते हैं।
  • सबसॉइलर कृषि मशीन किसानों पर पड़ने वाले मजदूरों के भार को कम करती है।

गेहूं कटाई के बाद खेत की जुताई के लिए आधुनिक कृषि यंत्र

गेहूं कटाई के बाद खेत की जुताई के लिए आधुनिक कृषि यंत्र

आधुनिकता के चलते भारतीय कृषि क्षेत्र में बैलों की जगह कई प्रकार के कृषि यंत्रो और मशीनों ने ले ली है। उपकरण खेती के बहुत सारे बड़े से बड़े कार्यों को आसान बनाते हैं। 

साथ ही, लागत को भी कम करने का कार्य करते हैं। बुवाई से लगाकर कटाई तक के कार्यों को सुगम बनाने में कृषि यंत्र अपनी अहम भूमिका निभाते हैं। बुवाई के लिए खेत को तैयार करने के लिए किसान ट्रैक्टर द्वारा रोटावेटर या कल्टीवेटरका इस्तेमाल करते हैं। 

ये उपकरण मिट्टी की उपरी परत की हल्की जुताई करते हैं, जिससे बुवाई करना काफी सरल हो जाता है। आइए जानते हैं जुताई के लिए कुछ महत्वपूर्ण और लाभदायक कृषि यंत्रों के बारे में। 

मोल्ड बोर्ड हल 

मोल्ड बोर्ड हल को किसानों के बीच मिट्टी पलट हल के नाम से भी जाना व पहचाना जाता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने के लिए जरूरी है कि इसे पलटा जाये। 

मिट्टी पलटने तथा खरपतवार को नीचे दबाने के लिए मोल्ड बोर्ड हल (Mould Board Plough) ज्यादा गहरी जुताई करते हैं। मिट्टी को भी पलटते हैं, जिससे सतह पर मौजूद खर-पतवार और अन्य फसल अवशेष बेहतर तरीके से दब जाते हैं। 

बतादें, कि 2 फाल वाले प्लाऊ को संचालित करने के लिए ट्रैक्टर की हॉर्स पावर 35 से 45 हॉर्स पॉवर होनी चाहिए। इस प्लाऊ की कार्य क्षमता 1.5 हेक्टेयर तक प्रति दिन होती है। 

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साथ ही, 3 फाल वाले प्लाऊ को चलाने के लिए ट्रैक्टर की हॉर्स पावर 40 से 50 एचपी होनी चाहिए। इस हल के साथ किसान 2 हेक्टेयर तक प्रति दिन कार्य कर सकते हैं। 

इस कृषि उपकरण का इस्तेमाल गर्मी के मौसम में खेत की गहरी जुताई के लिए, ढैचा/सनई आदि हरी खाद वाली फसल को मिट्टी में पलटकर मिलाने के लिए भी किया जाता है। 

डिस्क प्लाऊ

डिस्क प्लाऊ  (Disc Plough) भी एक मिट्टी पलटने वाला हल है और यह मोल्ड बोर्ड हल की अपेक्षा ज्यादा गहराई तक जुताई करने में सक्षम होता है। किसान इस यंत्र का इस्तेमाल भारी मृदा को पलटने के लिए करते हैं। इसमें आपको दो या तीन फाल देखने को मिल सकते हैं।

खेतों में ज्यादा खरपतवार और गहरे फसल अवशेष को काटने तथा पलटने में इस यंत्र का इस्तेमाल किया जाता है। ट्रैक्टर की क्षमता के अनुसार इस यंत्र से 40 से 50 सेंटीमीटर की गहराई तक जुताई की जा सकती है। इस कृषि यंत्र की कार्य क्षमता प्रतिदिन 1.5 से 2 हेक्टेयर है। 

चिसेल प्लाऊ 

चिसेल हल (Chisel Plough) बिना सतह वाली मृदा को अस्त व्यस्त किये और सतह पर मौजूद फसल अवशेषों को यथावत रखते हुए बहुत गहरी चीरे लगाई जा सकती हैं। इस यंत्र के साथ 1 मीटर की गहराई तक जुताई कर सकते हैं। 

ऐसा करने से स्थाई तौर पर सतह के नीचे की जल निकासी सुनिश्चित की जा सकती है। मिट्टी पलट हलों के मुकाबले में चिजेल हल के इस्तेमाल से मिट्टी की सतह पर किसी तरह का कार्य नहीं किया जाता है, जिससे हवा या पानी की वजह मिट्टी के कटाव को रोका जा सकता है। 

लेजर लैंड लेवलर 

खेत की जुताई और सिंचाई करने से जमीन असमतल हो जाती है, जिससे मृदा के पोषक तत्व का असामान्य वितरण और सिंचाई जल में वृद्धि जैसी दिक्कतें खड़ी होने लग जाती हैं। 

समय-समय पर खेत के समतलीकरण की आवश्यकता को सटीक और कम में वक्त में पूरा करने के लिये लेजर लैंड लेवलर (Laser Land Leveler) का इस्तेमाल किया जाता है। इस मशीन में लेजर किरणों की सहायता से पीछे लगे बकेट को काबू करके जमीन को एकसार किया जा सकता है। 

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

mitti ki janch 

अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

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खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

april mai boi jane wali fasal 

अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

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बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

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खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

तेज मशीनी चाल के आगे आज भी कायम बैलों की जोड़ी संग किसान की कछुआ कदमताल

तेज मशीनी चाल के आगे आज भी कायम बैलों की जोड़ी संग किसान की कछुआ कदमताल

रोबोटिक्स मिश्रित जायंट फार्म इक्विपमेंट मशीनरी (Giant Farm Equipment Machinery), यानी विशाल कृषि उपकरण मशीनरी की तेज चाल दौड़ में परंपरागत किसानी की विरासत, गाय-बैल-किसान की पहचान धुंधली पड़ती जा रही है। हालांकि कुछ भूमिपुत्र ऐसे भी हैं, जो बैलों की जोड़ियों के गले में बंधी घंटी की खनक के साथ, खेतों में कछुआ गति से कदम ताल करते यदा-कदा नजर आ ही जाते हैं। जी हां, भारत से इंडिया में तब्दील होते आधुनिक देश में पारंपरिक किसानी के तरीकों में तेजी से बदलाव हुआ है। काम में मददगार कृषि प्रौद्योगिकी उपकरणों की उपलब्धता के कारण मौसम आधारित खेती, अवसर आधारित हो गई है। लेकिन देश के कई हलधर ऐसे भी हैं जिन्होंने पारंपरिक खेती की असल पहचान, हलधर किसान की छवि को बरकरार रखा है।

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भूमि विकास, जुताई और बीज बोने की तैयारी के लिए उपकरण हालांकि कहना गलत नहीं होगा कि, दो बैलों और हल के साथ खेतों की जुताई करते किसान की परंपरा अब शायद अपने अंतिम दौर में है। ट्रैक्टर, मशीनों से किसानी की नई पीढ़ी अब बैल-हल से खेती में रुचि नहीं लेती। मेरे देश की धरती सोना-हीरा-मोती उगले गीत सुनकर यदि कोई अक्स उभरता है, तो वह है हरे-भरे खेत में बैलों की जोड़ी, हल के साथ खेत जोतता किसान। यह वास्तविकता अब सपना बनती नजर आ रही है। मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान आदि राज्यों के ठेठ ग्रामीण इलाकों में ही, आर्थिक रूप से कमजोर किसानों को ही इस पहचान के साथ खेत में काम करते देखा जा सकता है। इन किसानों को देखकर पता लगाया जा सकता है, कि किस तरह हमारे पूर्वज अन्नदाता किसानों ने हल और बैलों की मदद से, अथक परिश्रम कर देश का पेट, मिट्टी में से अनमोल अनाज उगा कर भरा।

खेत जोतने से लेकर कटाई, सप्लाई सब मशीनी

आज के मशीनी दौर में किसानी के उपयोग में आने वाले मददगार उपकरणों की सुलभता ने भी पारंपरिक किसानी को पीछे किया है। बैलों की शक्ति के मुकाबले कई अश्वों की ताकत से लैस, कई हॉर्सपॉवर का शक्तिशाली ट्रैक्टर चंद घंटे में कई एकड़ जमीन जोत सकता है। दैत्याकार मशीनें अब कटाई-मड़ाई भी पल भर में करने में मददगार हैं। प्रतिकूल मौसम में भी मददगार मशीनी मदद से समय और श्रम की भी बचत होती है। कल्टीवेटर, रोटावेटर, हैरो जैसे तकनीक आधारित हल मिट्टी की जुताई बेहतर तरीके से कर देते हैं। [embed]https://youtu.be/AjPz41c7pls[/embed]

लेकिन हां….बड़े धोखे हैं इस राह में...

सनद रहे तकनीक आधारित काम में प्राकृतिक नुकसान की भी संभावना बढ़ जाती है। पर्यावरण सुरक्षा की दशा में चौकन्ने होते देशों को सोचना होगा कि, इन मशीनों से खेत पर काम करने से मिट्टी की गुणवत्ता में वह सुधार संभव नहीं जो पारंपरिक तरीके की किसानी में निहित है।

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धान की फसल काटने के उपकरण, छोटे औजार से लेकर बड़ी मशीन तक की जानकारी मशीनों आधारित अधिक गहरी खुदाई से जमीन और खेत की गुणवत्ता प्रभावित होती है, जीव-जंतुओं को नुकसान होता है। जबकि खेत में बैलों, जानवरों के उपयोग से प्राकृतिक संतुलन बना रहता है। कहना गलत नहीं होगा कि, तकनीक आधारित ट्रेक्टर के धुएं ने हल-बैल और किसान की परंपरा का गुड़-गोबर कर अतीत की स्मृति को धुंधला दिया है।

छोटी जोत के किसान

छोटी जोत के गैर साधन संपन्न किसानों को हल और बैल आधारित किसानी करते देखा जा सकता है। इसके भी कई गूढ़ कारण हैं।

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पुरानी टेक्नीक

हल-बैल वाली युक्ति में लकड़ी का बना एक जुआ होता है। इसमें बने दो बड़े खानों को बैलों की डील पर पहनाया जाता है। इससे दोनों बैल एक समानांतर दूरी पर खड़े हो जाते हैं। इसके बाद लकड़ी अथवा लोहे की छड़ से लोहे का एक हल जुड़ा होता है। इस हल का जमीन को फाड़ कर उसे पलटने  वाला नुकीला भाग नीचे की ओर होता है। इसे संभाल कर दिशा देने के लिए ऊपर की तरह एक मुठिया बनी होती है, जिसे किसान हाथों से नियंत्रित कर सकता है। बाई ओर चलने वाले बैल से बंधी रस्सी जिसे नाथ बोलते हैं को किसान अपने एक हाथ में पकड़ कर रखता है। इस नाथ से बैलों की दिशा परिवर्तन में मदद मिलती है। खेतों में हल के माध्यम से होने वाली जुताई को  हराई बोलते हैं। पारंपरिक खेती के अनुभवी किसानों के अनुसार छोटी जोत में ट्रैक्टर के माध्यम से जुताई असंभव हो जाती है। जबकि हल-बैल के माध्यम से खेत की अधिक-से अधिक भूमि उपजाऊ बनाई जा सकती है। हालांकि मेकर्स ने छोटी जोत में मददगार मिनी ट्रेक्टरों का दावा भी कर दिया है।
जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ

जैविक खाद का करें उपयोग और बढ़ाएं फसल की पैदावार, यहां के किसान ले रहे भरपूर लाभ

किसानों ने माना खेत की मिट्टी हो रही मुलायम, बुआई और रोपाई में कम लग रही मेहनत

रायपुर। भारत सहित पूरे विश्व में जब भी खेती-किसानी की बात आती है, तो उसके साथ खाद का उपयोग भी एक बड़ी चुनौती या यूं कहें कि हर साल एक समस्या के रूप में उभरकर सामने आती है। वहीं फसल की बुआई से पहले किसानों को खाद की चिंता सताने लगती है। हर साल खाद की कालाबाजारी के भी मामले देशभर में सामने आते रहते हैं। दूसरी ओर किसान भी यह आरोप लगाते हैं कि उन्हें खाद की उचित मात्रा में आपूर्ति नहीं की जाती, जिस कारण सोसायटियों में हमेशा खाद की किल्लत बनी रहती है। ऐसे में हर साल एक बड़ा रकबा खाद की कमी से कम पैदावार कर पाता है। वहीं अब इस समस्या को दूर करने के लिए कई राज्य जैविक खाद को अपनाने लगे हैं। ऐसे में
छत्तीसगढ़ के किसान जैविक खाद का भरपूर फायदा उठा रहे हैं और फसल की पैदावार बढ़ा कर अपने को और स्वाबलंबी बना रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ़ सरकार ने भी माना है कि जैविक खाद का उपयोग करने से खेत की मिट्टी मुलायम हो रही है। इस खरीफ सीजन में खेत की जुताई और धान की रोपाई में किसानों को काफी आसानी हुई है।

छत्तीसगढ़ मेें जैविक खाद लेना अनिवार्य किया

जहां एक ओर कीटनाशक के प्रयोग से फसल जहरीली हो रही है और भूमि की उर्वरा शक्ति भी कमजोर हो रही है, ऐसे में छत्तसीगढ़ सरकार जैविक खाद का उपयोग करने किसानों को प्रोत्साहित कर रही है। सरकार का मानना है जैविक खाद के प्रयोग से जहां जमीन की उर्वरा शक्ति तो बढ़ेगी ही, दूसरी ओर रासायनिक खाद का उपयोग कम होने से इसकी कालाबाजारी कम होगी और हर साल किसानों को होने वाली खाद की किल्लत से किसानों को छुटकारा मिल जाएगा। इसी के तहत छत्तीसगढ़ सरकार ने किसानों को जैविक खाद लेना अनिवार्य कर दिया है।


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जैविक खाद के फायदे

छत्तीसगढ़ के कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जैविक खाद का उपयोग हर मामले में किसानों के लिए लाभदायक साबित होगा। इससे किसानों को घंटों सोसायटियों में खाद के लाइन लगाने से जहां छुटकारा मिलेगा और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बढ़ाने में मदद मिलेगी। वहीं जैविक खाद के उपयोग कें कई फायदे भी हैं। इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे मिट्टी की भौतिक व रसायनिक स्थिति में सुधार होता है व उर्वरक क्षमता बढ़ती है। वहीं रासायनिक खाद के उपयोग से मिट्टी में जो सूक्ष्म जीव होते हैं उनकी संख्या दिन प्रतिदिन कम होती जा रही है, जिस कारण हर साल किसानों को फसल का नुकसान होता है। जैविक खाद के उपयोग से उन सूक्ष्म जीवों की गतिविधि में वृद्धि होती है और वे फसल की पैदावार बढ़ाने में काफी अहम भूमिका निभा सकते हैं। वहीें जैविक खाद का उपयोग मिट्टी की संरचना में सुधार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अपना सकती है, जिससे पौधे की जड़ों का फैलाव अच्छा होता है। वहीं इसके उपयोग से मृदा अपरदन कम होता है। मिट्टी में तापमान व नमी बनी रहती है।

जैविक खाद के उपयोग से मुलायम हो रही मिट्टी



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वहीं वर्तमान में खरीफ फसल की बुआई के समय छत्तीसगढ़ के किसानों ने भी माना है कि जैविक खाद का उपयोग करने से उनकी जमीन कह मिट्टी मुलायम हुई है। इस कारण इस साल उन्हें जुताई और रोपाई करने में काफी मदद मिली। फसल लगाने में हर बार उन्हें जो महनत करनी पड़ती थी वह इस बार काफी कम हुई, जिससे उनके समय और पैसे दोनों की बचत हुई है।

गौठानों में बनाई जा रही कंपोस्ट खाद

छत्तीसगढ़ में धान की खेती व्यापक रुप से की जाती है। यही कारण है कि इसे धान का कटोरा कहा जाता है। जब खेती व्यापक होगी तो खाद की जरूरत ज्यादा होगी। ऐसे में छत्तीसगढ़ में जैविक खाद की आपूर्ति करने में गौठान एक महत्वपूर्ण भूका निभा रहे हैं।


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छत्तीसगढ़ सरकार ने गांव-गांव में पशुओं का रखने के लिए गौठान बनाने योजना शुरू की थी, जिसके तहत प्रदेश के लाखों पशुओं को एक ठिकाना मिला। वहीं दूसरी गौठानों में अजीविका के कई कार्य भी शुरु किए गए, जिसमें कंपोस्ट खाद निर्माण में इन गौठानों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और किसानों को खाद की किल्लत से राहत पहुंचाई।

ऐसे में बनाई जाती है जैविक खाद

जैविक खाद बनाना काफी आसान है। यही कारण है कि आज किसान जैविक खाद खेत या अपने घर पर ही तैयार कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ में गौठानों में इस खाद को तैयार किया जाता है। इसको बनाने के लिए सरकार ने हर गौठान में एक टैंक बनवाया है। इसमें गोबर डालकर इसमें गोमूत्र मिलाया जाता है। इसके साथ ही इसमें सब्जियों का उपयोग भी कर सकते हैं। कही-कही इसमें गुड़ का उपयोग भी किया जा राह है। इसके बाद इसमें पिसी हुई दालों व लकड़ी का बुरादा डाल दें। आखिर में इस मिश्रण को मिट्टी में साना जाता है।


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यह जरूरी है कि खाद बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पदार्थों की मात्रा सही हो। जैविक खाद बनाने के लिए 10 किलो गोबर,10 लीटर गोमूत्र, एक किलो गुड, एक किलो चोकर एक किलो मिट्टी का मिश्रण तैयार करें। इन पांच तत्वों को अच्छी से मिला लें। मिश्रण में करीब दो लीटर पानी डाल दें। अब इसे 20 से २५ दिन तक ढंक कर रखें। अच्छी खाद पाने के लिए इस घोल को प्रतिदिन एक बार अवश्य मिलाएं। 20 से २५ दिन बाद ये खाद बन कर तैयार हो जाएगी। यह खाद सूक्ष्म जीवाणु से भरपूर रहेगी खेत की मिट्टी की सेहत के लिये अच्छी रहेगी।