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मानसून

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

पिछले कुछ समय से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार की वजह से कृषि की तरफ रुझान देखने को मिला है और बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर आने वाले युवा भी, अब धीरे-धीरे नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक बदलाव की तरफ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

जो खेत काफी समय से बिना बुवाई के परती पड़े हुए थे, अब उन्हीं खेतों में अच्छी तकनीक के इस्तेमाल और सही समय पर अच्छा मैनेजमेंट करने की वजह से आज बहुत ही उत्तम श्रेणी की फसल लहलहा रही है। 

इन्हीं तकनीकों से कुछ युवाओं ने पिछले 1 से 2 वर्ष में तिलहन फसलों के क्षेत्र में आये हुए नए विकास के पीछे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। तिलहन फसलों में मूंगफली को बहुत ही कम समय में अच्छी कमाई वाली फसल माना जाता है।

पिछले कुछ समय से बाजार में आई हुई हाइब्रिड मूंगफली का अच्छा दाम तो मिलता ही है, साथ ही इसे उगाने में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो गए हैं। केवल दस बीस हजार रुपये की लागत में तैयार हुई इस हाइब्रिड मूंगफली को बेचकर अस्सी हजार रुपये से एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं।

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इस कमाई के पीछे की वैज्ञानिक विधि को चक्रीय खेती या चक्रीय-कृषि के नाम से जाना जाता है, जिसमें अगेती फसलों को उगाया जाता है। 

अगेती फसल मुख्यतया उस फसल को बोला जाता है जो हमारे खेतों में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल जैसे कि गेहूं और चावल के कुछ समय पहले ही बोई जाती है, और जब तक अगली खाद्यान्न फसल की बुवाई का समय होता है तब तक इसकी कटाई भी पूरी की जा सकती है। 

इस विधि के तहत आप एक हेक्टर में ही करीब 500 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन कर सकते हैं और यह केवल 60 से 70 दिन में तैयार की जा सकती है।

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मूंगफली को मंडी में बेचने के अलावा इसके तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है और हाल ही में हाइब्रिड बीज आ जाने के बाद तो मूंगफली के दाने बहुत ही बड़े आकार के बनने लगे हैं और उनका आकार बड़ा होने की वजह से उनसे तेल भी अधिक मिलता है। 

चक्रीय खेती के तहत बहुत ही कम समय में एक तिलहन फसल को उगाया जाता है और उसके तुरंत बाद खाद्यान्न की किसी फसल को उगाया जाता है। जैसे कि हम अपने खेतों में समय-समय पर खाद्यान्न की फसलें उगाते हैं, लेकिन एक फसल की कटाई हो जाने के बाद में बीच में बचे हुए समय में खेत को परती ही छोड़ दिया जाता है, लेकिन यदि इसी बचे हुए समय का इस्तेमाल करते हुए हम तिलहन फसलों का उत्पादन करें, जिनमें मूंगफली सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है।

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भारत में मानसून मौसम की शुरुआत होने से ठीक पहले मार्च में मूंगफली की खेती शुरू की जाती है। अगेती फसलों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इन्हें तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है, साथ ही इनकी अधिक मांग होने की वजह से मूल्य भी अच्छा खासा मिलता है। 

इससे हमारा उत्पादन तो बढ़ेगा ही पर साथ ही हमारे खेत की मिट्टी की उर्वरता में भी काफी सुधार होता है। इसके पीछे का कारण यह है, कि भारत की मिट्टि में आमतौर पर नाइट्रोजन की काफी कमी देखी जाती है और मूंगफली जैसी फसलों की जड़ें नाइट्रोजन यौगिकीकरण या आम भाषा में नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation), यानी कि नाइट्रोजन केंद्रीकरण का काम करती है और मिट्टी को अन्य खाद्यान्न फसलों के लिए भी उपजाऊ बनाती है। 

इसके लिए आप समय-समय पर कृषि विभाग से सॉइल हेल्थ कार्ड के जरिए अपनी मिट्टी में उपलब्ध उर्वरकों की जांच भी करवा सकते हैं।

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मूंगफली के द्वारा किए गए नाइट्रोजन के केंद्रीकरण की वजह से हमें यूरिया का छिड़काव भी काफी सीमित मात्रा में करना पड़ता है, जिससे कि फर्टिलाइजर में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो सकते हैं। 

इसी बचे हुए पैसे का इस्तेमाल हम अपने खेत की यील्ड को बढ़ाने में भी कर सकते हैं। यदि आपके पास इस प्रकार की हाइब्रिड मूंगफली के अच्छे बीज उपलब्ध नहीं है तो उद्यान विभाग और दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर एडवाइजरी जारी की जाती है जिसमें बताया जाता है कि आपको किस कम्पनी की हाइब्रिड मूंगफली का इस्तेमाल करना चाहिए। 

समय-समय पर होने वाले किसान चौपाल और ट्रेनिंग सेंटरों के साथ ही दूरदर्शन के द्वारा संचालित डीडी किसान चैनल का इस्तेमाल कर, युवा लोग मूंगफली उत्पादन के साथ ही अपनी स्वयं की आर्थिक स्थिति तो सुधार ही रहें हैं, पर इसके अलावा भारत के कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं। 

आशा करते हैं कि मूंगफली की इस चक्रीय खेती विधि की बारे में Merikheti.com कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आप भी भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने में सफल होंगे।

Soyabean Tips: लेट मानसून में भी पैदा करना है बंपर सोयाबीन, तो करें मात्र ये काम

Soyabean Tips: लेट मानसून में भी पैदा करना है बंपर सोयाबीन, तो करें मात्र ये काम

देश में इस साल मानसून की असामान्य गतिविधि देखी जा रही है। कहीं पानी तो कहीं गर्मी सूखे के कारण, कृषक तय नहीं कर पा रहे हैं कि वो फसल कब और कौन सी बोएं। आम तौैर पर मानसून आधारित औसतन कम पानी की जरूरत वाली खरीफ की फसलों में शामिल, सोयाबीन की किस्मों पर किसान यकीन करते हैं।

असामान्य स्थिति

बारिश जनित असमान्य स्थितियों के कारण इस साल सोयाबीन खेती आधारित पैदावार क्षेत्रों में मानसूनी वर्षा के आगमन एवं फैलाव में स्थितियां पिछले सालों की तुलना में अलग हैं। कुछ जगहों के कृषक मित्र सोयाबीन की खेती शुरू कर चुके हैं, जबकि कुछ इलाकों के किसान सोयाबीन की बुआई के लिए अभी भी पर्याप्त वर्षा जल का इंतजार कर रहे हैं। मतलब इन इलाकों की सोयाबीन बुआई फिलहाल अभी रुकी हुई है।

ये भी पढ़ें: सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन मानसून में हो रही देरी के कारण कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन के बीजों के चयन, उनको बोने एवं आवश्यक ध्यान रखने के बारे में कुछ सलाह जारी की हैं।

बुआई के लिए

मानसून की देरी से परेशान ऐसे किसान जिन्होंने अभी तक सोयाबीन की बुवाई नहीं की है, या फिर अभी 3 से 4 दिन पहले ही सोयाबीन बोया है तो उनके लिए यह सलाह काफी अहम है। आम तौर पर वैज्ञानिकों के अनुसार जुलाई महीने के पहले सप्ताह तक का समय सोयाबीन बोवनी के लिए उपयुक्त होता है। इसमें देरी होने पर कृषक ख्याल रखें कि बोवनी क्षेत्र में पर्याप्त वर्षा (100 मि.मी.) होने पर ही सोयाबीन कि बुवाई का वे जोखिम उठाएं।

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सोयाबीन की किस्म

इस बारे में कृषकों को सलाह दी गई है कि, वे एक ही किस्म की सोयाबीन बोवनी की बजाए खेत में विभिन्न समयावधि में पकने वाली किस्मों की बोवनी करें। इसमें 2 से 3 अनुशंसित किस्मों की सोयाबीन खेती को प्राथमिकता दी जा सकती है।

बीज दर का गणित

बीज ऐसा चुनें जिसकी गुणवत्ता न्यूनतम 70% अंकुरण की हो। इस आधार पर ही बोए जाने वाले बीज दर का भी प्रयोग करें। अंकुरण परीक्षण से सोयाबीन बोवनी हेतु उपलब्ध बीज का अंकुरण न्यूनतम 70 फीसदी सुनिश्चित करने से भी कृषक अपने बीज का परीक्षण कर सकते हैं।

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पद्धति का चुनाव

सोयाबीन के लिए विपरीत माने जाने वाली सूखे कि स्थिति, अतिवृष्टि आदि से संभाव्य नुकसान कम करने सोयाबीन की बोवनी बी.बी.एफ. पद्धति या रिज एवं फरो विधि (Ridge and furrow) से करने की सलाह कृषि वैज्ञानिकों ने दी है।

सोयाबीन बीज उपचार

बोवनी के समय बीज को अनुशंसित तरीके से उपचारित कर थोड़ी देर छाया में सुखाएं | फिर इसके बाद अनुशंसित कीटनाशक से भी उपचारित करें | कृषक रासायनिक फफूंद नाशक के स्थान पर बीजों में जैविक फफूंद नाशक ट्रायकोडर्मा का भी उपयोग कर सकते है। इसे जैविक कल्चर के साथ मिलकर प्रयोग किया जा सकता है।

खाद का संतुलन

किसान सोयाबीन की फसल के लिए आवश्यक पोषक तत्वों नाईट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश व सल्फर की पूर्ति केवल बोवनी के वक्त करें।

बोवनी वक्त दूरी

सोयाबीन की बोनी के लिए 45 से.मी. कतारों की दूरी अनुपालन की अनुशंसा की जाती है। बीज को 2 से 3 से.मी. की गहराई पर बोते हुए पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेमी रखने की सलाह कृषि वैज्ञानिक देते हैं। कृषि वैज्ञानिकों की सलाह है कि, सोयाबीन बीज दर 65 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करने से बेहतर पैदावार होगी।
मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें

दोस्तों आज हमारा यह आर्टिकल मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें और मानसून से जुड़े सभी प्रकार की आवश्यक जानकारी से जुड़ा होगा।

मानसून और किसानों से जुड़ी आवश्यक जानकारियों को प्राप्त करने के लिए हमारे इस आर्टिकल के अंत तक जरूर रहेंगे। 

मानसून के शुरुआती जुलाई महीने के कृषि कार्य

दोस्तों अगर बात करें मानसून के महीने की, तो मानसून का महीना किसानों के लिए सोने पर सुहागा होता है। मानसून का आरंभ महासागर तथा अरब सागर की तरफ से भारत के दक्षिण पश्चिम तट पर आने वाली पावस हवाओं को कहा जाता हैं। 

मानसून के महीने में तेज हवाएं और तेज बारिश खूब होती है। इन मानसून हवाओं के प्रभाव से भारत के आसपास के क्षेत्र यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि क्षेत्रों में भारी वर्षा होती हैं। 

इन मानसून हवाओं का सक्रिय दक्षिण एशिया क्षेत्र में जून के महीने से लेकर सितंबर तक चलता रहता है।

किसान भाइयों पर मानसून का प्रभाव:

जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतएकउपजाऊदेश है। यहां हर प्रकार की फसलें उगाई जाती हैं इसीलिए इसे सोना उगलने वाली भूमि भी कहां जाता है। 

भारत में अधिकांश लोग कृषि विकास और उत्पादन पर ही अपना जीवन निर्भर करते हैं। मूल रूप से कहे तो भारत एक कृषि अर्थव्यवस्था का स्वरूप है। भारत की लगभग 50% जनसंख्या अपनी आजीविका कमाई कृषि के माध्यम से ही करती हैं।

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किसान भाइयों के लिए महत्वपूर्ण मानसून का महीना:

पूर्ण रूप से कृषि उद्योग पर निर्भर देश के लिए मानसून का महीना सब महीनों से आवश्यक महीना है। भारत की ज्यादातर कृषि भूमियों को सिंचाई की आवश्यकता होती है और यह भूमि मानसून की वर्षा के कारण भली प्रकार से सिंचित हो जाती है। 

यह दक्षिण पश्चिम मानसून के संपर्क से सिंचित होती हैं। कुछ ऐसी फसलें हैं जिनको भारी वर्षा की जरूरत पड़ती है, यह फसलें कुछ इस प्रकार है जैसे: चावल, दालें आदि। इन फसलों को भरपूर वर्षा की आवश्यकता होती है, ताकि यह फसलें पूर्ण रूप से उत्पादन कर सके। 

यह भारतीयों का मुख्य आहार भी है जो भारतीय खाना बेहद पसंद करते हैं। किसानों के अनुसार रबड़ के पेड़ों को अच्छे तापमान और भारी वर्षा की बहुत जरूरत पड़ती है। 

यह रबड़ के पेड़ दक्षिणी क्षेत्रों में रोपड़ होते हैं। किसानों का यह कहना है, कि मानसून की पहली बारिश पर ही फसलों का रोपण पूर्ण रूप से निर्भर होता है। विपत्ति संकट से जूझने वाले किसानों के लिए मानसून का महीना सबसे महत्वपूर्ण होता है। 

मानसून का सीजन किसानों के लिए क्यों महत्वपूर्ण होता है?

एक अच्छा मानसून का सीजन कृषि उद्योग को पुनर्जीवित करता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि गांव तथा ग्रामीण में जल का कोई साधन नहीं होता हैं। मात्र नदियों और हैंडपंप के माध्यम से ही पानी का स्त्रोत बना रहता है।

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फसलों में पानी की प्राथमिक स्त्रोत को पूरा करने के लिए महिलाएं, पुरुषों बच्चों आदि को दूर दूर से पानी लाना पड़ता है। मानसून का महीना किसानों की इस गंभीर समस्याओं को दूर कर देता है। 

भारी वर्षा के कारण भूमिगत जल आवश्यकता की आपूर्ति होती है। मानसून का महीना ग्रामीण विकास में काफी सहायक होते है और भूमि के जलाशयों की भरपूर भरपाई होती हैं। 

किसान भाई विभिन्न प्रकार के कर्ज़ में डूबे होते हैं और इन कर्ज़ों को अदा करने में मानसून का सीजन मदद करता है। इसीलिए मानसून के सीजन को सबसे महत्वपूर्ण सीजन कहा जाता है। 

सरकार द्वारा किसानों को काफी कम मुनाफा होता है इस प्रकार किसानों को और ज्यादा अच्छे उपज की जरूरत पड़ती है।

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मानसून की शुरुआत के, जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें ?

मानसून के महीने में अच्छी फसलों की प्राप्ति के लिए किसान भाइयों को क्या करना चाहिए जानिए। जुलाई के महीने में किसान भाई को कोई कठिन काम करने की आवश्यकता नहीं है, कुछ आसान तरीके हैं जो कुछ इस प्रकार है:

  • मानसून का महीना मन मोह लेने वाला होता है काफी सुहाना और खूबसूरत मौसम होता है। इस मानसून के महीने में लोग घूमना फिरना काफी पसंद करते हैं और इस मौसम का भरपूर मजा लेते हैं।
  • हमारे भारत देश में सभी प्रकार की खेती पूर्ण रूप से मौसम पर ही निर्भर होती है।अच्छी बारिश के ज़रिए खेत, खलियान हरे भरे होकर लहराने लगते हैं। खेतों को हरा भरा देख किसानों में एक अलग तरह का उत्साह पैदा हो जाता है।

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जिस प्रकार हर सिक्के के 2 पहलू होते हैं उसी प्रकार मानसून का महीना कुछ फसलों के लिए बहुत ही ज्यादा फायदेमंद होता है। और कुछ फसलों को नुकसान भी पहुंचा सकता है।

ऐसी स्थितियों से बचने के लिए हमारे किसान भाइयों को कुछ आसान तरीके अपनाने चाहिए:

  • मानसून के महीने में फसल को सुरक्षित रखने के लिए किसानों को चाहिए कि वह खेतों में ज्यादा से ज्यादा अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए जलभराव को रोकना शुरू करें। जलभराव को रोकना बहुत ही ज्यादा आवश्यक होता है, क्योंकि इससे हमारी फसलें खराब हो सकती हैं। जलभराव से बचने के लिए आपको खेत के बीच में गहरी नालियों की व्यवस्था करनी चाहिए। ताकि जब भी कभी बारिश का पानी खेतों में जाए तो वह आसानी से बाहर निकल जाए, बिना फसलों को नुकसान पहुंचाए।
  • कृषि विशेषज्ञ मानसून के महीनों में नर्सरी फसलों की सुरक्षा के लिए हर तरह की जानकारी अवगत कराते हैं। जिस जानकारियों को अपनाकर आप अपनी नर्सरी फसलों की सुरक्षा कर सकते हैं।
  • विशेषज्ञों के अनुसार जिन फल और सब्जियों की फसलों को ज्यादा पानी की आवश्यकता पड़े, उन फसलों को किसान भाई मानसून में लगाएं ताकि फसलों को पूर्ण रूप से जल प्राप्ति हो सके।
  • फसलों के बचाव के लिए जैविक कीटनाशक छिड़काव की बहुत आवश्यकता होती है। यह छिड़काव आपको समय-समय पर फसलों पर करते रहना है।
  • रासायनिक कीटनाशक तथा फफूंदी नाशक का उपयोग सिर्फ और सिर्फ कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर ही करें।
  • मानसून का महीना फसलों के लिए सफ़ेद मक्खियों का प्रकोप भी बन जाता है। ऐसे में किसानों को चाहिए कि वह लगभग 5 किलो नीम की खली को अच्छी तरह से पानी में घोलकर मिला लें। फसलों की सुरक्षा के लिए फसलों पर छिड़काव करते रहे। क्योंकि यहां सफेद मक्खियां फसलों की उत्पादन क्षमता को रोकती हैं।

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दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि आपको हमारा यह आर्टिकल मानसून के शुरुआती जुलाई महीने में किसान भाई क्या करें पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियां मौजूद है। 

जिससे आप लाभ उठा सकते हैं। यदि आप हमारी दी गई जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा सोशल मीडिया और अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। धन्यवाद।

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात के मौसम में बकरियों की इस तरह करें देखभाल | Goat Farming

बरसात में बकरियों का विशेष रूप से ख्याल रखना पड़ता है। इस मौसम में उनको बीमार होने का खतरा ज्यादा रहता है। इसलिए आज हम आपको इस लेख में बताएंगे कि आप बारिश के दिनों में कैसे अपनी बकरी की देखभाल करें। गांव में गाय-भैंस की भांति बकरी पालने का भी चलन आम है। आज के वक्त में बहुत सारे लोग बकरी पालन से प्रति वर्ष मोटी आमदनी करने में सफल हैं। हालांकि, बरसात के दौरान बकरियों को बहुत सारे गंभीर रोग पकड़ने का खतरा रहता है। इस वजह से इस मौसम में पशुपालकों द्वारा उनका विशेष ख्याल रखा जाता है। आज हम आपको यह बताएंगे कि बरसात में बकरियों की देखभाल किस तरह की जा सकती है। 

बकरियों की सुरक्षा का विशेष ध्यान रखें

पशुपालन विभाग द्वारा जारी सुझावों के मुताबिक, बरसात में बकरियों को जल से भरे गड्ढों अथवा खोदे हुए इलाकों से दूर रखें ताकि वे फंस न जाएं। बारिश से बचाने के लिए उन्हें घर से बाहर भी शेड के नीचे रखें। क्योंकि पानी में भीगने से उनकी सेहत पर काफी दुष्प्रभाव पड़ सकता है। 

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बकरियों के लिए चारा-जल इत्यादि की उचित व्यवस्था करें

बरसात के समय, बकरियों के लिए स्वच्छ पानी मुहैय्या कराएं। अगर वे बाहर रहते हैं, तो उनके लिए छत के नीचे पानी की व्यवस्था करें। जिससे कि वे ठंड और बरसात से बच सकें। आपको उन्हें स्वच्छ एवं सुरक्षित भोजन भी प्रदान करना होगा। बरसात में आप चारा, घास अथवा अन्य विशेष आहार उनको प्रदान कर सकते हैं। 

बकरियों के आसपास स्वच्छता का विशेष बनाए रखें

बरसात में इस बात का ध्यान रखें, कि बकरियों के आसपास की स्वच्छता कायम रहे। उनके लिए स्थायी अथवा अस्थायी शेल्टर का भी उपयोग करें, जिससे कि वे ठंड और नमी से बच सकें। 

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बकरियों का टीकाकरण कराऐं

बकरियों के स्वास्थ्य को अच्छा रखने के लिए उनको नियमित तौर पर वैक्सीनेशन उपलब्ध कराएं। इसके लिए पशु चिकित्सक से सलाह भी लें एवं उन्हें बकरियों के लिए अनुशासनिक टीकाकरण अनुसूची बनाने की बात कही है।

दक्षिण पश्चिम मानसून के आगे बढ़ने के लिए स्थितियां अनुकूल

दक्षिण पश्चिम मानसून के आगे बढ़ने के लिए स्थितियां अनुकूल

भारतीय मौसम विभाग के नई दिल्‍ली स्थित राष्‍ट्रीय मौसम भविष्‍यवाणी केन्‍द्र/ क्षेत्रीय मौसम केन्‍द्र के अनुसार: दक्षिण पश्चिम मानसून कर्नाटक के दक्षिणी हिस्‍से के कुछ और हिस्‍सों, रायलसीमा के कुछ भागों, तमिलनाडु के अधिकांश हिस्‍सों, समूची दक्षिण पश्चिम बंगाल की खाड़ी, पश्चिमी मध्‍य बंगाल की खाड़ी के कुछ और भागों, समूची पूर्वी मध्‍य बंगाल की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी के उत्‍तर पश्चिम के कुछ भागों और उत्‍तर पूर्वी बंगाल की खाड़ी के कुछ और हिस्‍सों की तरफ बढ़ गया है। 

मानसून का उत्‍तरी दायरा (एनएलएम) अब कारवाड़, शिमोगा, तुमकुरू, चित्‍तूर और चेन्‍नई के रास्‍ते गुजर रहा है। दक्षिण पश्चिम मानसून के लिए ऐसी अनुकूल स्थितियां बन रही हैं जिससे वह अगले 23 दिन के दौरान मध्‍य अरब सागर, गोवा, कोंकण के कुछ भागों, कर्नाटक के कुछ और हिस्‍सों, रायलसीमा, तमिलनाडु के शेष हिस्‍सों, तटीय आन्‍ध्र प्रदेश के कुछ हिस्‍सों, मध्‍य और उत्‍तरी बंगाल की खाड़ी के कुछ और भागों और उत्‍तर पूर्व के कुछ हिस्‍सों की तरफ बढ़ जाएगा। इसके बाद ऐसी अनुकूल स्थितियां बन सकती हैं जब दक्षिण पश्चिम मानसून अगले 2 दिन के दौरान महाराष्‍ट्र के कुछ और भागों, कर्नाटक के कुछ और भागों, तेलंगाना के कुछ भागों, तटीय आन्‍ध्र प्रदेश के कुछ और भागों, बंगाल की खाड़ी शेष हिस्‍सोंऔर उत्‍तर पूर्वी राज्‍यों, सिक्किम, ओडिशा के कुछ भागों और गंगा के तटीय पश्चित बंगाल की तरफ बढ़ जाए।

पश्चिमी विक्षोभ कम दबाव वाले क्षेत्र में कायम रहेगा। साथ ही उत्तर-पश्चिमी राजस्थान और उसके पड़ोस, उत्तर पंजाब, बिहार और इससे सटे पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्‍तर पूर्वी उत्तर प्रदेश और पड़ोस तथा मध्य गुजरात में चक्रवाती चक्‍कर के रूप में बना हुआ है। चक्रवाती तूफान जो पूर्वी मध्‍य बंगाल की खाड़ी और आसपास उत्तरी अंडमान सागर से सटे क्षेत्र पर स्थित था अब पूर्वी मध्य बंगाल की खाड़ी में टिका हुआ है। इसके प्रभाव से, अगले 48 घंटों के दौरान बंगाल की खाड़ी के पूर्वी मध्‍य हिस्‍से में कम दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना है। इसके पश्चिम उत्‍तर पश्चिम दिशा की ओर बढ़ने और अगले 24 घंटे के दौरान अधिक सुस्‍पष्‍ट होने की संभावना है।

समुद्र तल के स्‍तर से 5.8 किलोमीटर ऊपर केरल तट से दूर दक्षिण पूर्वी अरब सागर पर चक्रवाती तूफान बना हुआ है। पूर्वी विदर्भ और उसके पड़ोस में चक्रवाती तूफान समुद्र तल के स्‍तर से 0.9 किलोमीटर तक ऊपर है और कम स्‍पष्‍ट है। इस बीच, अगले पांच दिन के लिए सामान् मौसम की भविष्यवाणी (12 जून 2020 को सुबह 08:30 बजे तक): अगले 24 घंटे के दौरान अधिकतम तापमान में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं और उत्तर पश्चिम भारत के मैदानी इलाकों में अगले तीन दिन के दौरान तापमान में 2-4°से. के बढ़ोतरी होगा। उत्तर पश्चिमी भारत में छिटपुट वर्षा होने की संभावना है।   

दक्षिण-पश्चिम मानसून ने समय से पहले केरल में दे दी दस्तक

दक्षिण-पश्चिम मानसून ने समय से पहले केरल में दे दी दस्तक

भारत मौसम विज्ञान विभाग की ओर से कहा गया कि 29 मई को मॉनसून ने केरल में दस्तक दे दी है, जबकि इसकी शुरुआत की सामान्य तौर पर जून से होती है| भारत मौसम विज्ञान विभाग (Indian Meteorological Department - IMD) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने कहा, " दक्षिण-पश्चिम मानसून ने 1 जून की शुरुआत की सामान्य तारीख के मुकाबले रविवार, 29 मई को केरल में प्रवेश किया है| दक्षिण-पश्चिम मानसून अपने समय से पहले आ गया है |"

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इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट की ओर से इस बात की जानकारी दी गई है कि 29 मई को मॉनसून ने केरल में दस्तक दे दी है, जबकि इसकी शुरुआत की सामान्य तौर पर 1 जून से होती है| दक्षिण-पश्चिम मानसून को भारत की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था  माना जाता है| लेकिन मौसम विभाग में कहा गया है कि केरल के ऊपर दक्षिण-पश्चिम मॉनसून की शुरुआत के लिए स्थितियां अनुकूल बनी हुई हैं| आगे के लिए भी स्थितियां अनुकूल हैं| दक्षिण पश्चिम मॉनसून अरब सागर और लक्षद्वीप क्षेत्र के कुछ और हिस्सों में आगे बढ़ रहा है|

अगले पांच दिनों में यहां बारिश हो सकती है :

  1. 30 और 31 मई को उप-हिमालयी क्षेत्र, पश्चिम बंगाल और सिक्किम में भारी वर्षा की संभावना है|
  2. 29 मई से 01 जून के दौरान असम-मेघालय, मणिपुर, मिजोरम और त्रिपुरा में बारिश हो सकती है|
  3. केरल और लक्षद्वीप में गरज / बिजली के साथ व्यापक रूप से हल्की / मध्यम वर्षा होने की संभावना है|
  4. अगले 5 दिनों के दौरान आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और तमिलनाडु, पुडुचेरी और कराईकल में छिटपुट भारी वर्षा की संभावना है|
  5. इसके अतिरिक्त कश्मीर और हिमाचल प्रदेश में अगले 5 दिनों के दौरान हल्की/मध्यम वर्षा की संभावना है. वहीं, अगले 2 दिनों के दौरान उत्तर प्रदेश और पूर्वी राजस्थान में बारिश हो सकती है|
  6. जबकि 29 मई को हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में अलग-अलग जगह ओलावृष्टि की संभावना है|
   
हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

हल्के मानसून ने खरीफ की फसलों का खेल बिगाड़ा, बुवाई में पिछड़ गईं फसलें

नई दिल्ली। कहावत है ''बिन पानी सब सून''। वाकई बिना पानी के सब कुछ शून्य है। बारिश बिना खरीफ के आठ फसलों का पूरा खेल बिगड़ता दिखाई दे रहा है। हल्के मानसून के चलते खरीफ की फसलों की बुवाई पिछड़ती जा रही है।

ये भी पढ़ें: किसान भाई ध्यान दें, खरीफ की फसलों की बुवाई के लिए नई एडवाइजरी जारी पिछले साल के मुकाबले, इस बार खरीफ की फसलों की बुवाई में ९.२७ फीसदी गिरावट हुई है। बुवाई का यह आंकड़ा ४१.५७ हेक्टेयर तक पीछे जा रहा है। साल २०२१ में ४४८.२३ लाख हेक्टेयर जमीन में खरीफ की फसलें बोई गईं थीं, लेकिन इस साल आठ जुलाई तक सिर्फ ४०६.६६ लाख हेक्टेयर फसल बोई गईं हैं। कम बारिश के चलते धान और तिलहन की फसलें सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहीं हैं। महाराष्ट्र, पूर्वी उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के कई क्षेत्रों में कमजोर बारिश के कारण खेती लगातार पिछड़ती जा रही है।

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पंपसेट लगाकर महंगा डीजल फूंककर धान की रोपाई कर रहे किसान

कमजोर मानसून की मार झेल रहे किसान पंपसेट लगाकर धान की रोपाई कर रहे हैं। समय पर धान की रोपाई हो जाए, इसके लिए महंगा डीजल भी फूंक रहे हैं। इससे फसल की लागत बढ़ रही है, जो भविष्य में घाटे का सौदा बन सकती है।

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धान रोपाई की क्या स्थिति है ?

चालू खरीफ सीजन २०२२ में ८ जुलाई तक ७२.२४ लाख हेक्टेयर में धान की रोपाई और बुवाई हो चुकी है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक यह ९५ लाख हेक्टेयर में बुवाई हो चुकी थी। मतलब इसमें करीब २३.९५ फीसदी की कमी है, जो २२.७५ लाख हेक्टेयर की कमी को दर्शाता है। धान सबसे ज्यादा पानी खपत वाली फसलों में से एक है। इसलिए इसकी रोपाई के लिए किसान आमतौर पर बारिश का ही इंतजार करते हैं।

बुवाई में दलहन आगे तो तिलहन की फसल हैं पीछे

पिछले साल के मुकाबले बात करें तो दलहन की फसलों की बुवाई में ०.९८ फीसदी का इजाफा है। साल २०२१ में कुल दलहन फसलों की ४६.१० लाख हेक्टेयर में बुवाई हुई थी, जबकि इस बार ४६.५५ लाख हेक्टेयर की हो चुकी है। हालांकि, अरहर की बुवाई में २८.५८ परसेंट की गिरावट है। पिछले साल मतलब २०२१ में २३.२२ लाख हेक्टेयर में अरहर की बुवाई हुई थी। जबकि इस बार १६.५८ लाख हेक्टेयर में ही हो सकी है। उड़द की बुवाई में १०.३४ फीसदी की कमी है।

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उधर तिलहन की फसलों की बुवाई में लगभग २०.२६ फीसदी की गिरावट है। साल २०२१ में ८ जुलाई तक ९७.५६ लाख हेक्टेयर में मूंगफली, सूरजमुखी, नाइजर सीड सोयाबीन और अन्य तिलहन फसलों की बुवाई हो चुकी थी। जबकि इस साल सिर्फ ७७.८० लाख हेक्टेयर में हुई है। सोयाबीन की बुवाई में २१.७४ फीसदी की कमी है। क्योंकि मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में बारिश में देरी हुई है। इसकी बुवाई के लिए खेत में नमी की जरूरत होती है।

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२०२२ में बाजरा की बुवाई की स्थिति?

बात करते हैं साल २०२२ में बाजरे के बुवाई की। बाजरा की बुवाई पिछले साल से अधिक हो चुकी है। इस साल ६५.३१ लाख हेक्टेयर में ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का और स्माल मिलेट्स की बुवाई हुई है। जबकि २०२१ में ८ जुलाई तक सिर्फ ६४.३६ लाख हेक्टेयर में हुई थी। बाजरा की बुवाई पिछले साल के मुकाबले इस बार ७९.२६ फीसदी अधिक है. हालांकि, मक्का की बुवाई २३.५३ फीसदी जबकि रागी की ४७.४४ परसेंट पिछड़ी हुई है। ------- लोकेन्द्र नरवार
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल

भारत मौसम विज्ञान विभाग ने दी किसानों को सलाह, कैसे करें मानसून में फसलों और जानवरों की देखभाल

मानसून का आगमन हो गया है. इस मौसम में फसलों और पशुओं की विशेष देखभाल की जरूरत होती है, पर किसानों को इसकी पूरी जानकारी नहीं होती. इसी को देखते हुए भारत मौसम विज्ञान विभाग चंडीगढ़ ने पंजाब के किसानों को सलाह दी है, जिसके आधार पर किसान अपने फसलों और जानवरों को मानसून में होने वाली क्षति से बचा सकेंगे. किसानों को बताया गया है कि वह इस मौसम में कैसे अपनी फसल और पशुधन का ध्यान रखें.

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धान के लिये आवश्यक सलाह

  • धान के खेत में केवल दो सप्ताह तक ही पानी लगाने दें और पानी को रोक कर रखें.
  • धान के रोपनी के ३ सप्ताह और ६ सप्ताह के बाद ३० किलो यूरिया प्रति एकड़ की दर से दूसरी और तीसरी बार पौधों को पोषक तत्व दें.
  • शाकनाशी (हर्बीसाइड, Herbicides) के छिड़काव के बाद हीं पटवन करें. खेत में पानी जमा हो तो छिड़काव नहीं करें.
  • अगर बरसात की आशंका हो तो छिड़काव को रोक दें, बाद में छिड़काव करें.


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मक्का की फसल के लिए जरूरी सलाह

  • बारिश की संभावना के कारण, ध्यान देना चाहिये कि मक्का की फसल में बारिश का पानी को जमा नहीं हो, क्योंकि यह फसल जमा पानी में ख़राब हो सकता है, यह पानी के प्रति बहुत संवेदनशील होता है और बैक्टीरिया से बर्बाद हो सकती है.
  • अगर किसान के सभी प्रयासों के बाद भी मक्का का फसल बरसात के कारण ख़राब हो जाता है, तो वैसी स्थिति में बाढ़ समाप्त होने के बाद ७-८ दिनों के अंतराल पर ३% यूरिया को २०० लीटर पानी में ६ किग्रा यूरिया प्रति एकड़ की दर से फसल पर दो बार छिड़काव करें.


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कपास की खेती के लिए आवश्यक सलाह

  • कपास में 33 किलो यूरिया प्रति एकड़ की दर से और पतले होने के बाद बीटी और गैर बीटी संकरों में 45 किलो यूरिया परती एकड़ की दर से खाद डालें.
  • बीटी कपास में आवश्यकता के अनुसार पीएयू-एलसीसी का उपयोग एन लागू करने के लिए किया जा सकता है.
  • स्टॉम्प 30 ईसी को 1 लीटर प्रति एकड़ 200 लीटर पानी डालकर पहली सिंचाई या बारिश की बौछार के साथ डालें.
  • कोबाल्ट क्लोराइड का 10 मिलीग्राम प्रति लीटर पानी का छिडकाव पैराविल्ट प्रभावित पौधों पर मुरझाने के शुरुआत में छिड़काव किया जा सकता है. इससे कपास के पौधों में पैराविल्ट की रोकथाम की जा सकती है.
  • कपास की फसल को गुलाबी सुंडी से बचाने के लिए किसान कर रहे हैं इस तकनीकी का प्रयोग

जानवरों का ऐसे रखें ध्यान

गाय

  • बरसात के मौसम में जानवरों खासकर गाय पर विशेष ध्यान देना आवश्यक होता है.
  • गाय के छोटे बछड़ों के लिए साफ, सूखा और मुलायम बिस्तर की व्यवस्था करें.
  • बछड़ों को जन्म के आधे घंटे के भीतर कोलोस्ट्रम जरूर खिलाएं.
  • प्रति दिन सुबह शाम नियमित रूप से पशुओं के गर्मी में होने वाली बिमारियों के लक्षण की जांच करें. जैसे श्लेष्म स्राव, पेट फूलना आदि लक्षणों पर ध्यान दें.



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  • जानवरों को नियमित आधार पर खनिज मिश्रण खिलाएं और ताजा पानी पिलायें.
  • गंदे जमा पानी से जानवरों को दूर रखें..
  • पशुओं का शेड हवादार होना जरूरी है ताकि गर्मी से पशुओं का बचाव हो सके.
  • दुधारू जानवरों का गर्मी के कारण दुग्ध क्षमता कम नहीं हो इसके लिये आवश्यकता के अनुसार कूलर और पंखा लगाया जा सकता है.

भैंस

 
Kharif Tips: बारिश में घर-बागान-खेत में उगाएं ये फसल-साग-सब्जी, यूं करें बचत व आय में बढ़ोतरी

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इसे प्रकृति का मानसून ऑफर समझिये और अपने घर, बगिया, खेत में लगाएं मानसून की वो फसल साग-सब्जी, जिनसे न केवल घरेलू खर्च में हो कटौती, बल्कि खेत में लगाने से सुनिश्चित हो सके आय में बढ़ोतरी। लेकिन यह जान लीजिये, ऐसा सिर्फ सही समय पर सही निर्णय, चुनाव और कुशल मेहनत से संभव है। घर की रसोई, छत की बात करें, इससे पहले जान लेते हैं मानसून की फसल यानी खरीफ क्रॉप में मुख्य फसलों के बारे में। खरीफ की यदि कोई मुख्य फसल है तो वह है धान

धान के उन्नत परंपरागत बीज मुफ्त प्रदान करने वाले केंद्र के बारे में जानिये

(Paddy Farming: किसानों को इस फार्म से मुफ्त में मिलते हैं पांरपरिक धान के दुर्लभ बीज) जबलपुर निवासी, अनुभवी एवं प्रगतिशील युवा किसान ऋषिकेश मिश्रा बताते हैं कि, बारिश के सीजन में धान की रोपाई के लिए अनुकूल समय, बीज, रोपण के तरीके के साथ ही सिंचन के विकल्पों का होना जरूरी है।

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धान (dhaan) के लिए जरूरी टिप्स (Tips for Paddy)

खरीफ क्रॉप टिप्स (Kharif Crop Tips) की बात करें, तो वे बताते हैं कि शुरुआत में ही सारी जानकारी जुटा लें, जैसे खेत में ट्रैक्टर, नलकूप आदि के साथ ही कटाई आदि के लिए पूर्व से मजदूरों को जुटाना, लाभ हासिल करने का बेहतर तरीका है। समय पर डीएपी, यूरिया, सुपर फास्फेट, जिंक, पोटास आदि का प्रयोग लाभ कारी है। धान की प्रजाति की किस्म का चुनाव भी बहुत सावधानी से करना चाहिए।

ये भी पढ़ें: स्वर्ण शक्ति: धान की यह किस्म किसानों की तकदीर बदल देगी ऋषिकेश बताते हैं कि, एक एकड़ के खेत में बोवनी से लेकर कटाई की मजदूरी, बिजली, पानी, ट्रैक्टर, डीजल आदि पर आने वाले खर्चों को मिलाकर, जुलाई से नवंबर तक के 4 से 5 महीनों के लगभग 23 से 24 हजार रुपये के कृषि निवेश से, औसतन 22 क्विंटल धान पैदा हो सकता है। मंडी में इसका समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल था। ऐसे में कहा जा सकता है कि प्रति एकड़ पर 20 से 21 हजार रुपये की कमाई हो सकती है। खरीफ सीजन की मेन क्रॉप धान की रोपाई वैसे तो हर हाल में जुलाई में पूर्ण कर लेना चाहिए, लेकिन लेट मानसून होने पर इसके लिए देरी भी की जा सकती है बशर्ते जरूरत पड़ने पर सिंचाई का पर्याप्त प्रबंध हो।

ये भी पढ़ें: तर वत्तर सीधी बिजाई धान : भूजल-पर्यावरण संरक्षण व खेती लागत बचत का वरदान (Direct paddy plantation) कृषि के जानकारों की राय में, धान की खेती (Paddy Farming) में यूरिया (नाइट्रोजन) की पहली तिहाई मात्रा को रोपाई के 58 दिन बाद प्रयोग करना चाहिए।

खरीफ कटाई का वक्त

जून-जुलाई में बोने के बाद, अक्टूबर के आसपास काटी जाने वाली फसलें खरीफ सीजन की फसलें कही जाती हैं। जिनको बोते समय अधिक तापमान और आर्द्रता के अलावा परिपक़्व होने, यानी पकते समय शुष्क वातावरण की जरूरत होती है।

घर और खेत के लिए सब्जियों के विकल्प

खरीफ की प्रमुख सब्जियों की बात करें तो भिंडी, टिंडा, तोरई/गिलकी, करेला, खीरा, लौकी, कद्दू, ग्वार फली, चौला फली के साथ ही घीया इसमें शामिल हैं। इन बेलदार सब्जियों के पौधे घर की रसोई, दीवार से लेकर छत पर लगाकर महंगी सब्जियां खरीदने के खर्च में कटौती करने के साथ ही सेहत का ख्याल रखा जा सकता है।

ये भी पढ़ें: बारिश में लगाएंगे यह सब्जियां तो होगा तगड़ा उत्पादन, मिलेगा दमदार मुनाफा वहीं किसान खेत के छोटे हिस्से में भिंडी, तोरई, कद्दू, करेला, खीरा, लौकी, के साथ ही फलीदार सब्जियों जैसे ग्वार फली लगाकर एक से सवा माह की इन सब्जियों से बेहतर रिटर्न हासिल कर सकते हैं।

साग-सब्जी टिप्स

घर में पानी की बोतल, छोटे मिट्टी, प्लास्टिक, धातु के बर्तनों में मिट्टी के जरिये जहां इन सब्जियों की बेलों को आकार दिया जा सकता है, वहीं खेत में मिश्रित खेती के तरीके से थोड़े, थोड़े अंतर पर रसोई के लिए अनिवार्य धनिया, अदरक जैसी जरूरी चीजें भी उगा सकते हैं। घरेलू उपयोग का धनिया तो इन दिनों घरों में भी लगाना एक तरह से नया ट्रेंड बनता जा रहा है।
उपभोक्ता मंत्रालय ने बताया प्याज-टमाटर के दामों में हुई कितनी गिरावट

उपभोक्ता मंत्रालय ने बताया प्याज-टमाटर के दामों में हुई कितनी गिरावट

जानिए एक महीने में कितने कम हो गए प्याज-टमाटर के दाम

आपने सुना होगा "आसमान से गिरे खजूर में अटके"…. लेकिन प्याज-टमाटर के मामले में "खेत में टूटे..मंडी में पिचके" वाली बात साबित हो रही है… जी हां, प्याज-टमाटर की कीमतों में आई गिरावट के बारे में केंद्र सरकार ने जानकारी दी है। उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की जानकारी कहती है कि
मानसूनी बारिश के कारण मंडियों में आवक बढ़ी है। इससे औसत खुदरा मूल्य में पिछले महीने की तुलना में 29 फीसदी गिरावट आई है। मंत्रालय के अनुसार प्याज की खुदरा कीमत भी पिछले साल के मुकाबले 9 प्रतिशत कम यानी काफी हद तक नियंत्रण में है। आम आदमी की बात करें तो पिछले दिनों टमाटर के भाव जहां सुर्ख रहे तो वहीं प्याज की कीमतें नियंत्रण में रहीं। अंतर की बात करें तो टमाटर की खुदरा कीमत में पिछले माह के मुकाबले 29 जबकि प्याज के दाम में 9 फीसदी तक की कमी आई।

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उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार टमाटर के अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य पिछले महीने की तुलना में 29 प्रतिशत कम हुए। मंत्रालय के आंकड़े कहते हैं कि, टमाटर का अखिल भारतीय औसत खुदरा मूल्य मंगलवार को 37.35 रुपए प्रति किलोग्राम था। एक महीने पहले की समान अवधि में टमाटर की कीमत 52.5 रुपए प्रति किलोग्राम थी। बीते दिनों टमाटर के दाम (Tomato Price) में बढ़त के कारण आम जनता को खासी परेशानी हुई थी। टमाटर के मुकाबले हालांकि प्याज की कीमतें (Onion Price) नियंत्रण में रहीं।

बफर स्टॉक का सहारा -

भविष्य में भी प्याज की कीमत पर नियंत्रण के लिए सरकार की ओर से किए जा रहे इंतजाम के बारे में भी जानकारी दी गई है। मंत्रालय ने बताया है कि, सरकार ने चालू वर्ष में प्याज के 2.50 लाख टन भंडारण की व्यवस्था की है। ये भी पढ़े: अत्यधिक गर्मी से खराब हो रहे हैं आलू और प्याज, तो अपनाएं ये तरीके आज यह अभी तक का सबसे अधिक खरीदा गया प्याज का बफर स्टॉक है। मंत्रालय का कहना है कि बफर की खरीद ने कृषि मंत्रालय द्वारा 317.03 लाख टन के रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद इस साल, प्याज के मंडी दाम को टूटने से बचाने में मदद प्रदान की है। बताया गया है कि, अगस्त-दिसंबर के दौरान कीमतों की तेजी को कम करने के लिए प्याज का बफर स्टॉक सुनियोजित तरीके से जारी किया जाएगा। इस संग्रह को लक्षित खुले बाजार में बिक्री के माध्यम से रिलीज़ किया जाएगा। इसे खुदरा दुकानों के माध्यम से आपूर्ति के लिए राज्यों और सरकारी एजेंसियों को प्रदान किया जाएगा। खुले बाजार में जारी करने के लिए उन राज्यों/शहरों को लक्षित किया जाएगा, जहां कीमत पिछले महीने की तुलना में बढ़ रही है।
बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

झांसी। बुंदेलखंड के किसानों की समस्या कम होने की बजाय लगातार बढ़ती जा रहीं हैं। पहले कम बारिश के कारण बुवाई नहीं हो सकी, अब बारिश बंद न होने के चलते बुवाई लेट हो रहीं हैं। इस तरह बुंदेलखंड के किसानों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई है। मौसम खुलने के 5-6 दिन बाद ही मूंग, अरहर, तिल, बाजरा और ज्वर जैसी फसलों की बुवाई शुरू होगी। लेकिन बुंदेलखंड में इन दिनों रोजाना बारिश हो रही है, जिससे बुवाई काफी पिछड़ रही है।

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बारिश से किसानों पर पड़ रही है दोहरी मार

- 15 जुलाई को क्षेत्र के कई हिस्सों में करीब 100 एमएम बारिश हुई, जिससे किसानों ने थोड़ी राहत की सांस ली और किसान खेतों में बुवाई की तैयारियों में जुट गए। लेकिन रोजाना बारिश होने के चलते खेतों में अत्यधिक नमी बन गई है, जिसके कारण खेतों को बुवाई के लिए तैयार होने में वक्त लगेगा। वहीं शुरुआत में कम बारिश के कारण बुवाई शुरू नहीं हुई थी। इस तरह किसानों को इस बार दोहरी मार झेलनी पड़ रही है।

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नमी कम होने पर ही खेत मे डालें बीज

- खेत में फसल बोने के लिए जमीन में कुछ हल्का ताव जरूरी है। लेकिन यहां रोजाना हो रही बारिश से खेतों में लगातार नमी बढ़ रही है। नमी युक्त खेत में बीज डालने पर वह बीज अंकुरित नहीं होगा, बल्कि खेत में ही सड़ जाएगा। इसमें अंकुरित होने की क्षमता कम होगी। बारिश रुकने के बाद खेत में नमी कम होने पर ही किसान बुवाई कर पाएंगे।

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रबी की फसल में हो सकती है देरी

- खरीफ की फसलों की बुवाई लेट होने का असर रबी की फसलों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है। जब खरीफ की फसलें लेट होंगी, तो जाहिर सी बात है कि आगामी रबी की फसल में भी देरी हो सकती है।
कम बारिश के चलते धान की खेती नहीं कर पाएंगे झारखंड के किसान

कम बारिश के चलते धान की खेती नहीं कर पाएंगे झारखंड के किसान

रांची। - लोकेन्द्र नरवार इस साल झारखंड में काफी कम बारिश हो रही है। बारिश की कमी के चलते झारखंड के किसान धान की खेती नहीं कर पाएंगे। इससे किसानों को काफी नुकसान झेलना पड़ेगा। इस सीजन झारखंड में मानसून पूरी तरह फेल साबित हो रहे हैं। यही कारण है कि राज्य में धान की खेती से मुनाफा कमाने वाले किसानों को आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ेगा। माना जा रहा है कि इस नुकसान से किसान दो साल में ही उभर पाएंगे।


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15 अगस्त तक करते हैं धान की रोपाई

- अगर बारिश का थोड़ा बहुत भी साथ मिलता है, तो झारखंड के किसान 15 अगस्त तक धान की रोपाई करते हैं। लेकिन इस साल किसानों को बारिश की बेरुखी का सामना करना पड़ रहा है। इससे किसानों की तमाम योजनाएं फेल हो रहीं हैं। कम बारिश भी होती तो 15 अगस्त तक किसान धान की रोपाई कर देते। हालांकि इससे धान की पैदावार कम होती, लेकिन किसानों का मनोबल बना रहता। लेकिन बारिश की ऐसी बेरुखी ने किसानों की चिंता बढ़ा दी है।
किसी की पढ़ाई, तो किसी की शादी में होगी रुकावट
- माना जा रहा है कि इस साल झारखंड के किसानों के सामने आर्थिक संकट खड़ा हो सकता है। लिहाजा किसानों के बच्चों की पढ़ाई एवं कई किसानों के बच्चों की शादी में भी रुकावट आ सकती है। किसान सरकार से मदद की मांग कर रहे हैं।


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खेतों में खड़ा है बिचड़ा, ऊपर से काटकर धान रोपें किसान

- इन दिनों झारखंड के अधिकांश जिलों में अत्यधिक धूप के कारण, धान वाले खेतों में बिचड़ा खड़ा हुआ है, जो काफी बड़ा हो चुका है। बिचड़ा खेतों में ही झुलस रहा है। किसान बारिश के अभाव में खेत तैयार नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि, कृषि विभाग ने किसानों से बिचड़ा को ऊपर से काटकर धान रोपाई करने का सुझाव दिया है। लेकिन इसमें किसानों को ज्यादा सफलता मिलती नहीं दिख रही है।