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पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण सलाह

पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण सलाह

भारत के अधिकांश किसान खेती-किसानी के साथ-साथ पशुपालन कर दुग्ध उत्पादन से भी अच्छी आय करते हैं। लेकिन, ऐसे भी किसान हैं, जिनकी आजीविका ही पशुपालन से चलती है। वर्तमान में रबी की फसलों की कटाई का समय चल रहा है। 

किसान अब जायद की फसलों की बुवाई की तैयारी में जुटेंगे। अब ऐसे में आज हम पशुपालन करने वाले किसानों को गर्मी के समय पशुओं के स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। 

पशुपालक अपने पशु को दिन में कम से कम तीन बार पीने के लिए साफ पानी दें। साथ ही, हरा चारा आहार स्वरूप अधिक खिलाएं। इसके लिए \ मूंग मक्का या अन्य हरे चारे की बुआई कर दें।

गर्मियों में पशुओं की देखभाल क्यों जरूरी ?

गर्मी के बढ़ने से मनुष्यों के साथ-साथ पशु पक्षियों को भी काफी दिक्कत होती है। इसलिए, किसान भाइयों को अपने दुधारू पशुओं की सही से देखभाल करने की आवश्यकता है। 

ऐसे मौसम में अपने पशुओं की उचित देखरेख नहीं करने से सूखा चारा खाने की मात्रा दस से 30 फीसद और दूध उत्पादन में दस फीसद तक की कमी हो सकती है। इस पर विशेष ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है। 

आहार को लेकर विशेषज्ञों की महत्वपूर्ण सलाह 

कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार, गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन और पशु की शारीरिक क्षमता बनाए रखने के लिए पशुओं में आहार का महत्वपूर्ण योगदान है। गर्मी के मौसम में पशुओं को हरे-चारे की ज्यादा मात्रा देनी चाहिए। 

पशु हरे-चारे को बड़े ही चाव से खाते हैं। इसके साथ ही इससे 70 से 90 फीसद तक पानी की मात्रा होने से शरीर में जल की पूर्ति करता है। गर्मी के मौसम में हरे चारे का अत्यंत अभाव रहता है। 

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इसके लिए किसानों को मार्च या शुरू अप्रैल माह में ही मूंग, मक्का या अन्य हरे चारे की बुआई कर दें। इससे गर्मी में भी पशुओं को हरा चारा मिलता रहे।

पशुपालकों के लिए पशुओं के आवास हेतु सलाह  

पशुपालकों को अपने पशुओं को गर्मी से बचाने के लिए छांव में रखने की आवश्यकता है। इससे पशुओं पर गर्म हवाओं का सीधा प्रभाव नहीं पड़ेगा। रात्री के दौरान पशुओं को खुले में ही रखें। 

अगर पशुओं के आवास की छत एस्बेस्टस या कंक्रीट की है तो उसके ऊपर चार से छह इंच मोटी घास- फूस रख दें। इससे पशुओं को गर्मी से निजात मिलती है। 

इसके साथ ही पशुओं को तीन से चार बार ताजा एवं स्वच्छ पानी जरूरी पिलाएं। इससे पशुओं के स्वास्थ्य पर किसी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ेगा। साथ ही, किसी भी प्रकार की बीमारी होने पर शीघ्र डॉक्टर से सलाह लें।

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

जानिए हरे चारे की समस्या को दूर करने वाली ग्रीष्मकालीन फसलों के बारे में

पशुपालकों को हरा चारा सुनिश्चित करने के लिए काफी अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है। भारतीय मौसम विगाग का कहना है, कि इस बार गर्मी अपने चरम स्तर पर पहुँचने की आशंका है। 

विगत दिनों तापमान में सामान्य से अधिक वृद्धि होने की वजह से पशुपालकों के हरे चारे की उपलब्धता में गिरावट आ रही है। क्योंकि, तापमान में वृद्धि होने के कारण खेतों में नमी की मात्रा में गिरावट देखने को मिल रही है। 

हरे चारे पर इसका प्रत्यक्ष तौर प्रभाव देखने को मिल रहा है। इस वजह से पशुपालकों को वक्त रहते ही हरे चारे की व्यवस्था सुनिश्चित कर लेनी चाहिए, जिससे आगामी समय में पशु को पर्याप्त चारा हांसिल हो सके। 

क्योंकि, हरे चारे के अभाव का सीधा प्रभाव पशुओं के दुग्ध उत्पादन क्षमता पर पड़ता है। नतीजतन, पशुपालकों की कमाई में गिरावट आने लगती है। 

हरे चारे की किल्लत को दूर करने वाली फसलें इस प्रकार हैं ?

आप सब ने लोबिया, मक्का और ज्वार  का नाम तो सुना ही होगा। लेकिन, क्या आप जानते हैं, कि लोबिया, मक्का और ज्वार का चारा पशुओं के लिए बेहद लाभकारी होता है। 

इसके अतिरिक्त मक्का, ज्वार और लोबिया फसल लगाने से किसान हरे चारे की किल्लत से छुटकारा पा सकते हैं। क्योंकि, यह एक तीव्रता से बढ़ने वाले हरे चारे वाली फसलें हैं। 

इसके अतिरिक्त इन चारों के साथ सबसे खास बात यह है, कि इनकी खेती करने से खेत की उर्वरक क्षमता को भी प्रोत्साहन मिलता है, जिससे किसान अगली फसल में मुनाफा उठा सकते हैं। वहीं, इसके प्रतिदिन सेवन से पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता में भी इजाफा होता है।

मक्का 

पशुओं के लिए पशुपालक हरा चारा सुनिश्चित करने के उद्देश्य से मक्के की संकर मक्का गंगा-2, गंगा-7, विजय कम्पोजिट जे 1006 अफ्रीकन टॉल, प्रताप चारा-6 आदि जैसी प्रमुख मक्का की उन्नत किस्मों की खेती कर सकते हैं।

ज्वार

गर्मी के मौसम में पशुओं के लिए हरे चारे की किल्लत को दूर करने के लिए ज्वार की पूसा चरी 23, पूसा हाइब्रिड चरी-109, पूसा चरी 615, पूसा चरी 6, पूसा चरी 9, पूसा शंकर- 6, एस. एस. जी. 59-3 (मीठी सूडान), एम.पी. चरी, एस.एस. जी.-988-898, एस. एस. जी. 59-3, • जे.सी. 69. सी. एस. एच. 20 एमजी, हरियाणा ज्वार- 513 जैसी विशेष किस्मों की खेती कर सकते हैं। 

लोबिया 

लोबिया एक वार्षिक जड़ी-बूटी वाली फलियां हैं, जिसकी खेती बीजों अथवा चारे के लिए की जाती है। इसकी पत्तियाँ अंडाकार पत्तों वाली त्रिकोणीय होती हैं, जो 6-15 सेमी लंबी और 4-11 सेमी चौड़ाई वाली होती हैं। 

लोबिया के फूल सफेद, पीले, हल्के नीले या बैंगनी रंग के होते हैं। इसकी फली जोड़े में पाई जाती हैं। इसकी प्रति फली में 8 से 20 बीज होते हैं। इसके साथ ही बीज सफेद, गुलाबी, भूरा या काला होता है।

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं का दाना न खा जाएं पेट के कीड़े (Stomach bug)

पशुओं के पेट में अंतः परजीवी पाए जाते हैं। यह पशु के हिस्से का आहार खा जाते हैं। इसके चलते पशु दुग्ध उत्पादन की दृष्टि से कमजोर पड़ जाता है और शारीरिक विकास दृष्टि से भी कमजोर हो जाता है। यह कई अन्य बीमारियों के कारण भी बनते हैं।

लक्षण

आंतरिक परजीवी से ग्रस्त पशु सामान्यतः बेचैन रहता है। पर्याप्त दाना पानी खिलाने के बाद भी उसका शारीरिक विकास ठीक से नहीं होता। यदि
दुधारू पशु है तो उसके दूध का उत्पादन लगातार गिरता जाता है। प्रभावित पशु मिट्टी खाने लगता है। दीवारें चाटने लगता है। पशु के शरीर की चमक कम हो जाती है। बाल खड़े हो जाते हैं। इसके अलावा कभी कबार पशु के गोबर में रक्त और कीड़े भी दिखते हैं। पशुओं में इन की अधिकता मृत्यु का कारण तक बन सकती है। कई पशुओं में दूध की कमी, पुनः गाभिन होने में देरी, गर्भधारण में परेशानी एवं शारीरिक विकास दर में कमी जैसे लक्षण क्रमियों से ग्रसित होने के कारण बनते हैं। gaay ke rog

कृमि रोग का निदान

कर्मी रोग का परीक्षण सबसे सरलतम गोबर के माध्यम से किया जा सकता है। ब्रज में अनेक वेटरनरी विश्वविद्यालय स्थित है वहां यह परीक्षण 5 से ₹7 में हो जाता है।
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दवाएं

अंतर है पर जीबीओ को खत्म करने के लिए पशु को साल में दो बार पेट के कीड़ों की दवा देनी चाहिए। गाभिन और गैर गाभिन पशुओं को दवा देते समय इस बात का ध्यान रखा जाए कि कौन सी दवा गाभिन पशु के लिए है कौन सी गैर गाभिन पशु के लिए। ट्राई क्लब एंड आजोल गर्भावस्था के लिए सुरक्षित दवा है। इसे रोटी या गुड़ के साथ मुंह से खिलाया जा सकता है। गाय भैंस के लिए इसकी 12 मिलीग्राम मात्रा पशु के प्रति किलो वजन के हिसाब से दी जाती है। बाजार में स्वस्थ पशु के लिए एक संपूर्ण टेबलेट आती है। दूसरी दवा ऑक्सीक्लोजानाइड है। इसलिए दवा रेड फॉक्स नइट गर्भस्थ पशु के लिए भी सुरक्षित है और संपूर्ण विकसित पशु के लिए इसकी भी एक खुराक ही आती है। आम तौर पर प्रचलित अल्बेंडाजोल गोली भी बहुतायत में प्रयोग की जाती है।
सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

सावधान : बढ़ती गर्मी में इस तरह करें अपने पशुओं की देखभाल

फिलहाल गर्मी के दिन शुरू हो गए हैं। आम जनता के साथ-साथ पशुओं को भी गर्मी प्रभावित करेगी। ऐसे में मवेशियों को भूख कम और प्यास ज्यादा लगती है। पशुपालक अपने मवेशियों को दिन में न्यूनतम तीन बार जल पिलाएं। 

जिससे कि उनके शरीर को गर्म तापमान को सहन करने में सहायता प्राप्त हो सके। इसके अतिरिक्त लू से संरक्षण हेतु पशुओं के जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिला देना चाहिए। 

भारत के विभिन्न राज्यों में गर्मी परवान चढ़ रही है। इसमें महाराष्ट्र राज्य सहित बहुत से प्रदेशों में तापमान 40 डिग्री पर है। साथ ही, गर्म हवाओं की हालत देखने को मिल रही है। साथ ही, उत्तर भारत के अधिकांश प्रदेशों में तापमान 35 डिग्री तक हो गया है। 

इस मध्य मवेशियों को गर्म हवा लगने की आशंका रहती है। लू लगने की वजह से आम तौर पर पशुओं की त्वचा में सिकुड़न और उनकी दूध देने की क्षमता में गिरावट देखने को मिलती है। 

हालात यहां तक हो जाते हैं, कि इसके चलते पशुओं की मृत्यु तक हो जाने की बात सामने आती है। ऐसी भयावय स्थिति से पशुओं का संरक्षण करने के लिए उनकी बेहतर देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।

पशुओं को पानी पिलाते रहें

गर्मी के दिनों में मवेशियों को न्यूनतम 3 बार जल पिलाना काफी आवश्यक होता है। इसकी मुख्य वजह यह है, कि जल पिलाने से पशुओं के तापमान को एक पर्याप्त संतुलन में रखने में सहायता प्राप्त होती है। 

इसके अतिरिक्त मवेशियों को जल में थोड़ी मात्रा में नमक और आटा मिलाकर पिलाने से गर्म हवा लगने की आशंका काफी कम रहती है। 

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यदि आपके पशुओं को अधिक बुखार है और उनकी जीभ तक बाहर निकली दिख रही है। साथ ही, उनको सांस लेने में भी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। उनके मुंह के समीप झाग निकलते दिखाई पड़ रहे हैं तब ऐसी हालत में पशु की शक्ति कम हो जाती है। 

विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे हालात में अस्वस्थ पशुओं को सरसों का तेल पिलाना काफी लाभकारी साबित हो सकता है। सरसों के तेल में वसा की प्रचूर मात्रा पायी जाती है। जिसकी वजह से शारीरिक शक्ति बढ़ती है। विशेषज्ञों के अनुरूप गाय और भैंस के पैदा हुए बच्चों को सरसों का तेल पिलाया जा सकता है।

पशुओं को सरसों का तेल कितनी मात्रा में पिलाया जाना चाहिए

सीतापुर जनपद के पशुपालन वैज्ञानिक डॉ आनंद सिंह के अनुरूप, गर्मी एवं लू से पशुओं का संरक्षण करने के लिए काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। ऐसी हालत में सरसों के तेल का सेवन कराना बेहद लाभकारी होता है। 

ऊर्जा मिलने से पशु तात्कालिक रूप से बेहतर महसूस करने लगते हैं। हालांकि, सरसों का तेल पशुओं को प्रतिदिन देना लाभकारी नहीं माना जाता है। 

डॉ आनंद सिंह के अनुसार, पशुओं को सरसों का तेल तभी पिलायें, जब वह बीमार हों अथवा ऊर्जा स्तर निम्न हो। इसके अतिरिक्त पशुओं को एक बार में 100 -200 ML से अधिक तेल नहीं पिलाना चाहिए। 

हालांकि, अगर आपकी भैंस या गायों के पेट में गैस बन गई है, तो उस परिस्थिति में आप अवश्य उन्हें 400 से 500 ML सरसों का तेल पिला सकते हैं। 

साथ ही, पशुओं के रहने का स्थान ऐसी जगह होना चाहिए जहां पर प्रदूषित हवा नहीं पहुँचती हो। पशुओं के निवास स्थान पर हवा के आवागमन के लिए रोशनदान अथवा खुला स्थान होना काफी जरुरी है।

पशुओं की खुराक पर जोर दें

गर्मी के मौसम में लू के चलते पशुओं में दूध देने की क्षमता कम हो जाती है। उनको इस बीच प्रचूर मात्रा में हरा एवं पौष्टिक चारा देना अत्यंत आवश्यक होता है। 

हरा चारा अधिक ऊर्जा प्रदान करता है। हरे चारे में 70-90 फीसद तक जल की मात्रा होती है। यह समयानुसार जल की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इससे पशुओं की दूध देने की क्षमता काफी बढ़ जाती है।

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

पशुपालन विभाग की तरफ से निकाली गई बंपर भर्ती, उम्मीदवार 5 जुलाई से आवेदन कर सकते हैं

बीपीएनएल के ओर से सर्वे इंचार्ज एवं सर्वेयर पद पर अच्छी खासी संख्या में भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 वहीं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड में बंपर भर्ती निकली है। यदि आप सरकारी नौकरी करना चाहते हैं एवं पशुपालन में आपकी रुचि है तो ये भर्ती आपके लिए ही है। सबसे खास बात यह है, कि इस भर्ती में 10वीं पास लोग भी हिस्सा ले सकते हैं। जो भी इच्छुक उम्मीदवार इस भर्ती परीक्षा में बैठना चाहते हैं, उनको 5 जुलाई से पूर्व इस परीक्षा के लिए आवेदन फॉर्म भरना पड़ेगा। इस भर्ती से जुड़ी समस्त जानकारी आपको बीपीएनएल की आधिकारिक वेबसाइट पर प्राप्त हो जाएगी।

भर्ती हेतु आवेदनकर्ता पर क्या-क्या होना चाहिए

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड मतलब कि बीपीएनएल द्वारा सर्वे इंचार्ज और सर्वेयर पद पर बंपर भर्तियां निकाली हैं। इस भर्ती में सर्वे इंचार्ज पद के लिए 574 एवं सर्वेयर पद के लिए 2870 भर्तियां निर्धारित की गई हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि जो लोग भी सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करना चाहते हैं, उन उम्मीदवारों की आयु सीमा 21 से 40 वर्ष के मध्य होनी अति आवश्यक है। इसके साथ ही उनके पास भारत के किसी मान्यता प्राप्त कॉलेज से 12वीं पास का रिजल्ट भी होना अनिवार्य है। वहीं, सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार इच्छुक हैं, उनकी आयु सीमा 18 से 40 वर्ष के मध्य होनी चाहिए। साथ ही, उनके पास 10वीं पास का रिजल्ट अवश्य होना चाहिए। हालांकि, ऐसा नहीं है, कि इस भर्ती के लिए केवल 10वीं अथवा 12वीं पास लोग ही आवेदन कर सकते हैं। यदि आप इससे अधिक पढ़े लिखे हैं, तब भी आप इस भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं। यह भी पढ़ें: इन पशुपालन में होता है जमकर मुनाफा

भर्ती परीक्षा हेतु कितनी फीस तय की गई है

भारतीय पशुपालन निगम लिमिटेड की भर्ती परीक्षा की फीस की बात की जाए तो सर्वे इंचार्ज पद पर आवेदन करने के लिए उम्मीदवारों को 944 रुपये की फीस जमा करनी पड़ेगी। इसके अतिरिक्त सर्वेयर पद के लिए जो उम्मीदवार आवेदन करना चाहते हैं, उनकी फीस 826 रुपये निर्धारित की गई है। समस्त उम्मीदवारों का चयन ऑनलाइन टेस्ट एवं इंटरव्यू के अनुसार होगा। सबसे खास बात यह है, कि आवेदन की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है और अंतिम तिथि 5 जुलाई 2023 है।
गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

गोवंश में कुपोषण से लगातार बाँझपन की समस्या बढ़ती जा रही है

पशुओं में कुपोषण की वजह से बांझपन की बीमारियां निरंतर बढ़ती जा रही हैं। खास कर गोवंश में देखी जा रही है। गोवंश में बांझपन के बढ़ते मामलों के का सबसे बड़ा कारण कुपोषण है। इसका मतलब है, कि पशुओं को पौष्टिक आहार नहीं मिल पा रहा है। इस गंभीर समस्या से किसानों के साथ-साथ पशुपालन से संबंधित समस्त संस्थाऐं भी काफी परेशान हैं। सरदार बल्लभभाई पटेल कृषि विश्वविद्यालय वेटनरी कॉलेज के अधिष्ठाता डॉ राजीव सिंह ने बताया है, कि व्यस्क पशुओं में कम वजन व जननागों के अल्प विकास से पशुओं में प्रजनन क्षमता में कमी देखने को मिल रही है। जैसा कि उपरोक्त में बताया गया है, कि इसका मुख्य कारण कुपोषण है। इफ्को टोकियो जनरल इंश्योरेंस लिमिटेड के वित्तीय सहयोग से कृषि विश्व विद्यालय और पशुपालन विभाग द्वारा मेरठ के ग्राम बेहरामपुर मोरना ब्लॉक जानी खुर्द में निशुल्क पशु स्वास्थ्य शिविर का आयोजन कुलपति डॉ के.के. सिंह एवं पशुपालन विभाग के अपर निदेशक डॉ अरुण जादौन के निर्देश में हुआ है।

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इस उपलक्ष्य पर परियोजना के मार्ग दर्शक डॉ राजवीर सिंह ने कहा है, कि मादा पशुओं को संतुलित आहार के साथ-साथ प्रोटीन और खनिज मिश्रण जरूर देना चाहिए। जिसकी सहायता से उनकी गर्भधारण क्षमता बरकरार रहे। परियोजना प्रभारी डॉ अमित वर्मा का कहना है, कि पशुओं में खनिज तत्वों के अभाव की वजह से भूख ना लगना, बढ़वार एवं प्रजनन क्षमता में कमी जैसे समय पर गर्मी में ना आना, अविकसित संतानो की उत्पत्ति, दूध उत्पादन में कमी, एनीमिया इत्यादि समस्याऐं आ सकती हैं। बतादें, कि पशुओं को प्रतिदिन 30 - 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर पाउडर पशु आहार के लिए जरूर देना चाहिए। पशु स्वास्थ्य शिविर में पशु चिकित्सा महाविद्यालय कॉलेज मेरठ के विशेषज्ञों इनमें डॉ. अमित वर्मा, डॉ अरविन्द सिंह, डॉ अजीत कुमार सिंह, डॉ विकास जायसवाल, डॉ प्रेमसागर मौर्या, डॉ आशुतोष त्रिपाठी और डॉ रमाकांत इत्यादि की टीम के द्वारा 157 पशुओं को कृमिनाशक, बाँझपन प्रबंधन, गर्भावस्था निदान, रक्त व गोबर की जाँच जैसी पशु चिकित्सा सेवाएं और तदानुसार मुफ्त दवाएं भी प्रदान की गईं। पशु चिकित्साधिकारी डॉ रिंकू नारायण एवं डॉ विभा सिंह ने पशुपालन के लिए सरकार की तरफ से दिए जाने वाले किसान क्रेडिट कार्ड तथा सब्सिड़ी योजनाओं के संबंध में जानकारी प्रदान की। प्रशांत कौशिक ग्राम प्रधान समेत अन्य ग्रामवासियों ने शिविर के आयोजन हेतु कृषि विवि की कोशिशों की सराहना करते हुए धन्यवाद व्यक्त किया।

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी नस्ल की भैंस देती है 15 लीटर दूध, जानिए इसके बारे में

बन्नी भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की किस्म है, जो भारत में गुजरात प्रांत में दुग्ध उत्पादन के लिए मुख्य रूप से पाली जाती है। बन्नी भैंस का पालन गुजरात के सिंध प्रांत की जनजाति मालधारी करती है। जो दूध की पैदावार के लिए इस जनजाति की रीढ़ की हड्डी मानी जाती है। बन्नी नस्ल की भैंस गुजरात राज्य के अंदर पाई जाती है। गुजरात राज्य के कच्छ जनपद में ज्यादा पाई जाने की वजह से इसे कच्छी भी कहा जाता है। यदि हम इस भैंस के दूसरे नाम ‘बन्नी’ के विषय में बात करें तो यह गुजरात राज्य के कच्छ जनपद की एक चरवाहा जनजाति के नाम पर है। इस जनजाति को मालधारी जनजाति के नाम से भी जाना जाता है। यह भैंस इस समुदाय की रीढ़ भी कही जाती है।

भारत सरकार ने 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ

बाजार में इस भैंस की कीमत 50 हजार से लेकर 1 लाख रुपये तक है। यदि इस भैंस की उत्पत्ति की बात की जाए तो यह भैंस पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की नस्ल मानी जाती है। मालधारी नस्ल की यह भैंस विगत 500 सालों से इस प्रान्त की मालधारी जनजाति अथवा यहां शासन करने वाले लोगों के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण पशुधन के रूप में थी। पाकिस्तान में अब इस भूमि को बन्नी भूमि के नाम से जाना जाता है। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि भारत के अंदर साल 2010 में इसे भैंसों की ग्यारहवीं अलग नस्ल का दर्जा हांसिल हुआ था। इनकी शारीरिक विशेषताएं अथवा
दुग्ध उत्पादन की क्षमता भी बाकी भैंसों के मुकाबले में काफी अलग होती है। आप इस भैंस की पहचान कैसे करें।

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अब खास तकनीक से पैदा करवाई जाएंगी केवल मादा भैंसें और बढ़ेगा दुग्ध उत्पादन

बन्नी भैंस की कितनी कीमत है

दूध उत्पादन क्षमता के लिए पशुपालकों में प्रसिद्ध बन्नी भैंस की ज्यादा कीमत के कारण भी बहुत सारे पशुपालक इसे खरीद नहीं पाते हैं। आपको बता दें एक बन्नी भैंस की कीमत 1 लाख रुपए से 3 लाख रुपए तक हो सकती है।

बन्नी भैंस की क्या खूबियां होती हैं

बन्नी भैंस का शरीर कॉम्पैक्ट, पच्चर आकार का होता है। इसके शरीर की लम्बाई 150 से 160 सेंटीमीटर तक हो होती है। इसकी पूंछ की लम्बाई 85 से 90 सेमी तक होती है। बतादें, कि नर बन्नी भैंसा का वजन 525-562 किलोग्राम तक होता है। मादा बन्नी भैंस का वजन लगभग 475-575 किलोग्राम तक होता है। यह भैंस काले रंग की होती है, लेकिन 5% तक भूरा रंग शामिल हो सकता है। निचले पैरों, माथे और पूंछ में सफ़ेद धब्बे होते हैं। बन्नी मादा भैंस के सींग ऊर्ध्वाधर दिशा में मुड़े हुए होते हैं। साथ ही कुछ प्रतिशत उलटे दोहरे गोलाई में होते हैं। नर बन्नी के सींग 70 प्रतिशत तक उल्टे एकल गोलाई में होते हैं। बन्नी भैंस औसतन 6000 लीटर वार्षिक दूध का उत्पादन करती है। वहीं, यह प्रतिदिन 10 से 18 लीटर दूध की पैदावार करती है। बन्नी भैंस साल में 290 से 295 दिनों तक दूध देती है।
लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया की खेती: किसानों के साथ साथ दुधारू पशुओं के लिए भी वरदान

लोबिया को बहुत ही पोषक फसल माना जाता है। इसको पूरे भारत भर में उगाया जाता है। लोबिया के बहुआयामी उपयोग है। जैसे खाद्य, चारा, हरी खाद और सब्जी के रूप में होता है।

लोबिया मनुष्य के खाने का पौष्टिक तत्व है तथा पशुधन चारे का अच्छा स्रोत भी है| ये दुधारू पशुओं में दूध बढ़ाने का भी अच्छा जरिया बनता है तथा इसके खाने से पशु का दूध भी पौष्टिक होता है| 

इसके दाने में 22 से 24 प्रोटीन, 55 से 66 कार्बोहाईड्रेट, 0.08 से 0.11 कैल्शियम और 0.005 आयरन होता है| इसमे आवश्यक एमिनो एसिड जैसे लाइसिन, लियूसिन, फेनिलएलनिन भी पाया जाता है| 

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लोबिया की खेती के लिए खेत की तैयारी:

जैसा की आमतौर पर सभी फसलों के लिए गोबर की बनी हुई खाद बहुत आवश्यक होती है उसी तरह से लोबिया की फसल के लिए भी गोबर की सड़ी खाद बहुत आवश्यक होती है. 

इसके खेत में बुवाई से पहले नाइट्रोजन की मात्रा 20 kg पर एकड़ के हिसाब से मिला देना चाहिए. गोबर की 20-25 टन मात्रा बुवाई से 1 माह पहले खेत में डाल दें। जिससे की खाद में जो भी खरपतवार हो वो उग जाये और नष्ट हो सके| 

खाद डालने के बाद इसमें हैरो से 2 बार जुताई कर दें तथा 1 बार कल्टीवेटर निकाल दें जिससे की मिटटी मिलाने के साथ साथ इसमें गहराई भी आ सके| 

मिटटी और उर्वरक:

इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है. वैसे इसके लिए रेतीली और दोमट मिटटी उपयुक्त रहती है. जल निकासी की सामान्य व्यवस्था होनी चाहिए. खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए. 

लोबिया एक दलहनी फसल है, इसलिए नत्रजन की 20 कि.ग्रा, फास्फोरस 60 किग्रा तथा पोटाष 50 किग्रा/हेक्टेयर खेत में अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा 20 किग्रा नत्रजन की मात्रा फसल में फूल आने पर प्रयोग करें। 

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मौसम और बोने का समय:

मौसम की अगर हम बात करें तो इसके लिए गर्म और नमी वाला मौसम अच्छा रहता है. इसको फ़रवरी,-मार्च और जून,-जुलाई में उगाया जा सकता है. 

इसके लिए 20 से 30 डिग्री तक का तापमान उचित रहता जो की इसके बीज को अंकुरित होने में सहायता करता है. 17 डिग्री से कम के तापमान पर इसे उगाना संभव नहीं है. 

लोबिया की उन्नत प्रजातियां:

हमारे कृषि वैज्ञानिक लगातार अपनी फसलों में उन्नत किस्में लेन के लिए मेहनत करते रहते हैं. लोबिया के लिए भी कुछ अच्छी पैदावार वाली किस्में विकसित की हैं. लोबिया की कुछ उन्नत प्रजातियां हैं जो निचे दी गई हैं|

  1. पूसा कोमल: लोबिया की यह किस्म रोग प्रतिरोधक है. इसमें आसानी से रोग नहीं आता है. इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है. यह मोटा गुदेदार होता है, जो कि 20 से 22 सेमी लम्बा होता है. इस किस्म की बुवाई से प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है|
  2. पूसा बरसाती: जैसा की नाम से ही पता चलता है इसको बरसात के मौसम में यानि जुलाई के महीने में लगाना ज्यादा सही रहता है. इसकी फलियों का रंग हल्का हरा होता है, जो कि 26 से 28 सेमी लंबी होती है. खास बात है कि यह किस्म लगभग 45 दिन में पककर तैयार हो जाती है. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल जाती है.
  3. अर्का गरिमा: अर्का गरिमा पौधे ऊँचे और लम्बे होते है तथा ये पशु चारे के लिए भी उपयुक्त होते हैं। फलियाँ हल्की हरी, लंबी, मोटी, गोल, माँसल और रेशे-रहित हैं। सब्जी बनाने के लिए उत्तम हैं। ताप और कम नमी के प्रति सहनशील है।
  4. पूसा फालगुनी: जैसा की नाम से विदित हो रहा है इसको फ़रवरी और मार्च के महीने में लगाया जाता है. इसका पौधा छोटा तथा झाड़ीनुमा किस्म के होते है| इसकी फली का रंग गहरा हरा होता है. इनकी लंबाई 10 से 20 सेमी होती है. खास बात है कि यह लगभग 60 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर लगभग 70 से 75 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
  5. पूसा दोफसली: किस्म को फ़रवरी से लेकर जुलाई, अगस्त तक लगाया जा सकता है, ये तीनों मौसम में लगाई जाती है. इसकी फली का रंग हल्का हरा पाया जाता है. यह लगभग 17 से 18 सेमी लंबी होती है. यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं. इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है.
आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा का तरीका

बुन्देलखण्ड में प्रचलित अन्ना प्रथा उत्तर प्रदेश सरीखे कई प्रदेशों के किसानों के जीका जंजाल बन रही है। इसका कारण बन रहे हैं आवारा गौवंशीय नर। इन्हें यहां सांड के रूप में पहचाना जाता है। यूंतो एक सांड 10 से 12 वर्ष के जीवन काल में तकरीबन तीन लाख का सूखा भूसा खा जाता है। किसानों की फसलों का नुकसान इसमें शामिल नहीं है। इतना ही नहीं यह सांड नगरीय क्षेत्रों में डिवायडर आदि के मध्म जब मस्ती में आते हैं तो भीड़भाड़ वाले इलाकों एवं मंडियों आदि में लोगों के लिए दुर्घटना का कारण भी बन जाते हैं। अनेक लोग इनके आतंक के चलते दुर्घटनाओं का शिकार हो काल कवलित भी हो जाते हैं। खेती में इनसे प्रमुख समस्या फसलों को नुकसान पहुंचाने की है। किसान फसलों को बचाने के लिए मोटा पैसा खर्च कर तार फेंसिंग करा रहे हैं लेकिन भूखे जानवर इन तार और खंभों का भी उखाड़ फेंकते हैं। इससे बचाव के कुछ सामान्य तरीके हैं जिनका प्रयोग कर किसान अपनी फसल को सुरक्षित कर सकते हैंं।

   awara pashu  

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नीलगाय एवं आवारा पशुओं से फसल सुरक्षा के लिए खेत के आसपास गिरे नीलगाय के गोबर एवं आवारा पशुओं के गोबर का आधा एक से दो किलोग्राम अंश लेकर उसे पानी में घोलकर छान लें। इसमें थोड़े बहुत नीम के पत्ते कूटकर मिला लें। दो  तीन दिन में सड़ने के बाद इसको छानकर खेत में छिड़काव करें। प्रयास करें खेत के चारों तरफ पशुओं के घुसने वाले स्थानों पर गहराई तक छिड़काव हो जाए।  कारण यह होता है अपने मल की गंध आने के कारण पशु उस फसल को नहीं खाते। वह फिर ऐसा खेत तलाशने निकलते हैं जहां ​गंध नहो। इधर नीलगाय अपने खाने के लिए जहां फसलें अच्छी होती हैं। उस इलाके का चयन करती है। उस इलाके तक पहुंचने के लिए वहां हर दिन ताजी गोबर छोड़कर आती है। इसकी गंध के आधार पर ही वह दोबारा उस इलाके तक पहुंचती है। लिहाजा खेतों के आस पास जहां भी नीलगाय का गोबर पड़ा हो उसे एकत्र कर गहरे गड्ढे में दबाने से भी वह रास्ता भटक सकती हैं।

गाय भैंस का बच्चा पेट में घूम जाए तो क्या करें किसान

गाय भैंस का बच्चा पेट में घूम जाए तो क्या करें किसान

गर्भित पशुओं में गर्भाशय का अपने लम्बे अक्ष पर घूम जाने को गर्भाशय में ऐंठन आना कहा जाता है। यह समस्या गाय भैंस में ज्यादा मिलती है। कभी-कभी घोड़ी, भेड़ तथा बकरी में भी यह परेशानी देखी जाती है। जो पशु पहले बच्चे दे चुके हैं उनमें इस बीमारी की सम्भावना अधिक होती है। यह समस्या गर्भावस्था की अन्तिम 2 माह में होने की ज्यादा सम्भावना होती है। इस दशा के होने पर पशु बहुत ही अधिक पीड़ा में होता है और तुरंत निवारण न होने पर पशु की मृत्यु हो सकती है। 

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 अन्य पशुओं की तुलना में गाय और भैंसों में गर्भाशय की शारीरिक रचना में अन्तर होने के अतिरिक्त गर्भित पशुओं के गर्भाशय का कम स्थिर होना इस दशा का मुख्य कारण है। गर्भाशय में अस्थिरता के कई कारण हो सकते हैं जैसे - पशु के उठने तथा बैठने दोनों ही दशाओं में शरीर का पिछला हिस्सा अधिक ऊॅचाई पर होता है और इस दशा में दूसरे पशु से धक्का लगने, फिसलने या गिरने पर गर्भाशय आसानी से घूम जाता है। बच्चे का गर्भाशय के दो में से किसी एक हार्न में होने के कारण भी गर्भाशय की स्थिरता कम रहती है और गर्भाशय आसानी से घूम जाता है। बच्चे के बहुत अधिक हलचल के कारण भी गर्भाशय में ऐंठन आ सकती है। गर्भित पशुओं का गर्भावस्था के अन्तिम महीनों में वाहन में लम्बी यात्रा, दूसरे पशुओं सेे झगड़ा, गिरना, कूदना, भागना इत्यादि भी गर्भाशय के घूम जाने के कारण हो सकते हैं। भैंसों का पानी या कीचड़ में लोटने की आदत भी गर्भाशय के घूम जाने का एक मुख्य कारण है। पशुओं के भोजन मेें पोषक तत्वों की कमी, पशुओं के रखने के स्थान का समतल न होना आदि भी इस समस्या के लिये उत्तरदायी हो सकता हैै। 

गर्भाशय में बच्चा घूमने से बचने के उपाय:

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लक्षण

जब गर्भाशय में बहुत कम डिग्री की ऐंठन होती है तो पशु में सामान्यतः कोई लक्षण नहीं मिलते हैं परंतु अधिक डिग्री होने पर कई प्रकार के लक्षण दिख सकते है। इस समस्या के चलते पशु के पेट में दर्द, भूख न लगना, जुगाली न करना तथा शरीर के ताप का गिर जाना, बार-बार उठना, बैठना तथा जमीन पर लोटना पैर खींचना अथवा पेट में लात मारना, बेचैन होना, ब्याने के लिए जोर लगाना इत्यादि दिक्कतें आमतौर पर दिखती हैं। गर्भावस्था के पूर्ण होने पर भी बच्चा न होना तथा योनी से किसी प्रकार के द्रव्य का स्राव न होना इस दशा के लक्षण है। कभी-कभी दशा अधिक खराब होने पर या समय पर उपचार न होने पर पशु की मृत्यु भी हो जाती है। 

रोकथाम के उपाय

गर्भावस्था के अंतिम दिनों में गर्भित पशु को लम्बी यात्रा पर न जायें। गर्भित पशुओं को दूसरे पशुओं से अलग स्थान पर रखने की व्यवस्था करें। गर्भित पशु को रखने का स्थान समलत होना चाहिए। गर्भित पशु को गर्भावस्था के दौरान बहुत अधिक हलचल जैसे - कूदना, भागना इत्यादि न करने दें। भैंसों को गर्भावस्था के अंतिम दिनों में पानी या कीचड़ में न छोड़ें । गर्भित पशुओं को पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार दें। गर्भावस्था के अंतिम दिनों में बताये गये लक्षणों के दिखने पर बिना विलम्ब किये किसी पशु चिकित्सक को पशु दिखायें अथवा सलाह लें।

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

पशुपालक इस नस्ल की गाय से 800 लीटर दूध प्राप्त कर सकते हैं

किसान भाइयों यदि आप पशुपालन करने का विचार कर रहे हो और एक बेहतरीन नस्ल की गाय की खोज कर रहे हैं, तो आपके लिए देसी नस्ल की डांगी गाय सबसे बेहतरीन विकल्प है। इस लेख में जानें डांगी गाय की पहचान और बाकी बहुत सारी महत्वपूर्ण जानकारियां। किसान भाइयों के समीप अपनी आमदनी को बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के बेहतरीन पशु उपलब्ध होते हैं, जो उन्हें प्रति माह अच्छी आय करके दे सकते हैं। यदि आप पशुपालक हैं, परंतु आपका पशु आपको कुछ ज्यादा लाभ नहीं दे रहा है, तो चिंतित बिल्कुल न हों। आज हम आपको आगे इस लेख में ऐसे पशु की जानकारी देंगे, जिसके पालन से आप कुछ ही माह में धनवान बन सकते हैं। दरअसल, हम जिस पशु के विषय चर्चा कर रहे हैं, उसका नाम डांगी गाय है। बतादें कि डांगी गाय आज के दौर में बाकी पशुओं के मुकाबले में ज्यादा मुनाफा कमा कर देती है। इस वहज से भारतीय बाजार में भी इसकी सर्वाधिक मांग है। 

डांगी नस्ल की गाय कहाँ-कहाँ पाई जाती है

जानकारी के लिए बतादें, कि यह गाय देसी नस्ल की डांगी है, जो कि मुख्यतः गुजरात के डांग, महाराष्ट्र के ठाणे, नासिक, अहमदनगर एवं हरियाणा के करनाल एवं रोहतक में अधिकांश पाई जाती है। इस गाय को भिन्न-भिन्न जगहों पर विभिन्न नामों से भी जाना जाता है। हालाँकि, गुजरात में इस गाय को डांग के नाम से जाना जाता है। किसानों व पशुपालकों ने बताया है, कि यह गाय बाकी मवेशियों के मुकाबले में तीव्रता से कार्य करती है। इसके अतिरिक्त यह पशु काफी शांत स्वभाव एवं शक्तिशाली होते हैं। 

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डांगी गाय कितना दूध देने की क्षमता रखती है

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस देसी नस्ल की गाय के औसतन दूध देने की क्षमता एक ब्यांत में तकरीबन 430 लीटर तक दूध देती है। वहीं, यदि आप डांगी गाय की बेहतर ढ़ंग से देखभाल करते हैं, तो इससे आप लगभग 800 लीटर तक दूध प्राप्त कर सकते हैं। 

डांगी गाय की क्या पहचान होती है

यदि आप इस गाय की पहचान नहीं कर पाते हैं, तो घबराएं नहीं इसके लिए आपको बस कुछ बातों को ध्यान रखना होगा। डांगी गाय की ऊंचाई अनुमान 113 सेमी एवं साथ ही इस नस्ल के बैल की ऊंचाई 117 सेमी तक होती है। इनका सफेद रंग होता है साथ ही इनके शरीर पर लाल अथवा फिर काले धब्बे दिखाई देंगे। साथ ही, यदि हम इनके सींग की बात करें, तो इनके सींग छोटे मतलब कि 12 से 15 सेमी एवं नुकीले सिरे वाले मोटे आकार के होते हैं। 

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इसके अतिरिक्त डांगी गायों का माथा थोड़ा बाहर की ओर निकला होता है और इनका कूबड़ हद से काफी ज्यादा उभरा हुआ होता है। गर्दन छोटी और मोटी होती है। अगर आप डांगी गाय की त्वचा को देखेंगे तो यह बेहद ही चमकदार व मुलायम होती है। इसकी त्वचा पर काफी ज्यादा बाल होते हैं। इनके कान आकार में छोटे होते है और अंदर से यह काले रंग के होते हैं।

राजस्थान सरकार गाय पालने पर देगी 90 प्रतिशत अनुदान

राजस्थान सरकार गाय पालने पर देगी 90 प्रतिशत अनुदान

राजस्थान की गेहलोत सरकार ने गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदने का ऐलान की है। राज्य सरकार गौ पालन और गौ संरक्षण के लिए पूर्व से भी कामधेनु योजना को चलाया जा रहा है, जिसके लिए सरकार डेयरी चालकों को 90 फीसद तक का अनुदान प्रदान करती है। भारत में जहां एक तरफ गाय गौ मूत्र एवं गौ गोबर को लेकर आप विभिन्न प्रकार की समाचार को सुनते ही आए हैं। परंतु, आज हम आपको इस लेख जिस समाचार को बताने जा रहे हैं, वह आपके लाभ की बात है। दरअसल फिलहाल राजस्थान सरकार गाय के गोबर को 2 रुपये/किलो की कीमत से खरीदेगी। राज्य के मुख्य मंत्री अशोक गहलोत ने यह जानकारी पुरानी पेंशन योजना की शुरुआत करने की चल रही मीटिंग के चलते प्रदान की। राजस्थान सरकार ने यह ऐलान किसानों को आर्थिक एवं सामाजिक तौर पर सबल बनाने एवं गाय के गोबर को बेहतर ढंग से प्रयोग में लाने की दिशा में एक नया बताया है।

ये योजनाऐं गौ पालन के लिए चल रही हैं

राजस्थान सरकार गाय पालने के लिए तथा उनका संरक्षण करने हेतु 90 प्रतिशत तक की अनुदान योजना को भी चला रही है। राज्य सरकार के मुताबिक, इससे राज्य में दुग्ध की पैदावार की मात्रा तो बढ़ेगी। इसके साथ ही गौ वंशों के संरक्षण के लिए लोगों को प्रोत्साहित भी किया जा सकेगा। सरकार इस योजना के जरिए ज्यादा दूध देने वाली गायों की प्रजनन दर को बढ़ाएगी। साथ ही, इनकी खरीद पर नियमावली के मुताबिक किसानों को 90 फीसद तक का अनुदान भी प्रदान करेगी। सरकार की इस योजना का फायदा सिर्फ डेयरी धारकों के लिए ही है। क्योंकि, यह अनुदान योजना 25 गायों के पालन पर दी जाती है, जिसके लिए प्रदेश सरकार भिन्न-भिन्न तरीकों के जरिए से लागत का 90 प्रतिशत तक की अनुदान के रूप में प्रदान करेगी।

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गोबर 2 रुपए किलो के हिसाब

राजस्थान सरकार ने गौ संरक्षण के साथ-साथ गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदेगी। राज्य सरकार इससे पूर्व में भी गायों के संरक्षण एवं लोगों के द्वारा इसके पालन के लिए विभिन्न योजनाओं को संचालित कर रही है। इन योजनाओं में कामधेनु योजना, कामधेनु पशु बीमा योजना और गाय योजना इत्यादि हैं। राजस्थान राज्य के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किसानों को इस दिशा में और भी ज्यादा प्रोत्साहित करने के लिए गाय के गोबर को 2 रुपये प्रति किलो की कीमत से खरीदने का ऐलान किया है।