Ad

mung

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

इस वैज्ञानिक विधि से करोगे खेती, तो यह तिलहन फसल बदल सकती है किस्मत

पिछले कुछ समय से टेक्नोलॉजी में काफी सुधार की वजह से कृषि की तरफ रुझान देखने को मिला है और बड़ी-बड़ी मल्टीनेशनल कंपनियों को छोड़कर आने वाले युवा भी, अब धीरे-धीरे नई वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से भारतीय कृषि को एक बदलाव की तरफ ले जाते हुए दिखाई दे रहे हैं।

जो खेत काफी समय से बिना बुवाई के परती पड़े हुए थे, अब उन्हीं खेतों में अच्छी तकनीक के इस्तेमाल और सही समय पर अच्छा मैनेजमेंट करने की वजह से आज बहुत ही उत्तम श्रेणी की फसल लहलहा रही है। 

इन्हीं तकनीकों से कुछ युवाओं ने पिछले 1 से 2 वर्ष में तिलहन फसलों के क्षेत्र में आये हुए नए विकास के पीछे अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। तिलहन फसलों में मूंगफली को बहुत ही कम समय में अच्छी कमाई वाली फसल माना जाता है।

पिछले कुछ समय से बाजार में आई हुई हाइब्रिड मूंगफली का अच्छा दाम तो मिलता ही है, साथ ही इसे उगाने में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो गए हैं। केवल दस बीस हजार रुपये की लागत में तैयार हुई इस हाइब्रिड मूंगफली को बेचकर अस्सी हजार रुपये से एक लाख रुपए तक कमाए जा सकते हैं।

ये भी पढ़ें: मूंगफली की बुवाई 

इस कमाई के पीछे की वैज्ञानिक विधि को चक्रीय खेती या चक्रीय-कृषि के नाम से जाना जाता है, जिसमें अगेती फसलों को उगाया जाता है। 

अगेती फसल मुख्यतया उस फसल को बोला जाता है जो हमारे खेतों में उगाई जाने वाली प्रमुख खाद्यान्न फसल जैसे कि गेहूं और चावल के कुछ समय पहले ही बोई जाती है, और जब तक अगली खाद्यान्न फसल की बुवाई का समय होता है तब तक इसकी कटाई भी पूरी की जा सकती है। 

इस विधि के तहत आप एक हेक्टर में ही करीब 500 क्विंटल मूंगफली का उत्पादन कर सकते हैं और यह केवल 60 से 70 दिन में तैयार की जा सकती है।

ये भी पढ़ें: मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (Pests and Diseases) 

मूंगफली को मंडी में बेचने के अलावा इसके तेल की भी अच्छी कीमत मिलती है और हाल ही में हाइब्रिड बीज आ जाने के बाद तो मूंगफली के दाने बहुत ही बड़े आकार के बनने लगे हैं और उनका आकार बड़ा होने की वजह से उनसे तेल भी अधिक मिलता है। 

चक्रीय खेती के तहत बहुत ही कम समय में एक तिलहन फसल को उगाया जाता है और उसके तुरंत बाद खाद्यान्न की किसी फसल को उगाया जाता है। जैसे कि हम अपने खेतों में समय-समय पर खाद्यान्न की फसलें उगाते हैं, लेकिन एक फसल की कटाई हो जाने के बाद में बीच में बचे हुए समय में खेत को परती ही छोड़ दिया जाता है, लेकिन यदि इसी बचे हुए समय का इस्तेमाल करते हुए हम तिलहन फसलों का उत्पादन करें, जिनमें मूंगफली सबसे प्रमुख फसल मानी जाती है।

ये भी पढ़ें: इस फसल को बंजर खेत में बोएं: मुनाफा उगाएं – काला तिल (Black Sesame) 

भारत में मानसून मौसम की शुरुआत होने से ठीक पहले मार्च में मूंगफली की खेती शुरू की जाती है। अगेती फसलों का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि इन्हें तैयार होने में बहुत ही कम समय लगता है, साथ ही इनकी अधिक मांग होने की वजह से मूल्य भी अच्छा खासा मिलता है। 

इससे हमारा उत्पादन तो बढ़ेगा ही पर साथ ही हमारे खेत की मिट्टी की उर्वरता में भी काफी सुधार होता है। इसके पीछे का कारण यह है, कि भारत की मिट्टि में आमतौर पर नाइट्रोजन की काफी कमी देखी जाती है और मूंगफली जैसी फसलों की जड़ें नाइट्रोजन यौगिकीकरण या आम भाषा में नाइट्रोजन फिक्सेशन (Nitrogen Fixation), यानी कि नाइट्रोजन केंद्रीकरण का काम करती है और मिट्टी को अन्य खाद्यान्न फसलों के लिए भी उपजाऊ बनाती है। 

इसके लिए आप समय-समय पर कृषि विभाग से सॉइल हेल्थ कार्ड के जरिए अपनी मिट्टी में उपलब्ध उर्वरकों की जांच भी करवा सकते हैं।

ये भी पढ़ें: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार 

मूंगफली के द्वारा किए गए नाइट्रोजन के केंद्रीकरण की वजह से हमें यूरिया का छिड़काव भी काफी सीमित मात्रा में करना पड़ता है, जिससे कि फर्टिलाइजर में होने वाले खर्चे भी काफी कम हो सकते हैं। 

इसी बचे हुए पैसे का इस्तेमाल हम अपने खेत की यील्ड को बढ़ाने में भी कर सकते हैं। यदि आपके पास इस प्रकार की हाइब्रिड मूंगफली के अच्छे बीज उपलब्ध नहीं है तो उद्यान विभाग और दिल्ली में स्थित पूसा इंस्टीट्यूट के कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा समय-समय पर एडवाइजरी जारी की जाती है जिसमें बताया जाता है कि आपको किस कम्पनी की हाइब्रिड मूंगफली का इस्तेमाल करना चाहिए। 

समय-समय पर होने वाले किसान चौपाल और ट्रेनिंग सेंटरों के साथ ही दूरदर्शन के द्वारा संचालित डीडी किसान चैनल का इस्तेमाल कर, युवा लोग मूंगफली उत्पादन के साथ ही अपनी स्वयं की आर्थिक स्थिति तो सुधार ही रहें हैं, पर इसके अलावा भारत के कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने में अपना भरपूर सहयोग दे रहे हैं। 

आशा करते हैं कि मूंगफली की इस चक्रीय खेती विधि की बारे में Merikheti.com कि यह जानकारी आपको पसंद आई होगी और आप भी भारत में तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के अलावा अपनी आर्थिक स्थिति में भी सुधार करने में सफल होंगे।

मूंगफली की बुवाई

मूंगफली की बुवाई

दोस्तों आज हम बात करेंगे मूंगफली की बुवाई की, मूंगफली की बुवाई कहां और किस प्रकार होती है। मूंगफली से जुड़ी सभी आवश्यक और महत्वपूर्ण बातों को जानने के लिए कृपया हमारे पोस्ट के अंत तक जरूर बने रहें: 

मूंगफली की बुवाई कहां होती है?

मूंगफली एक तिलहनी फसल है भारत में सभी फसलों की तरह मूंगफली भी महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। मूंगफली की अधिक पैदावार गुजरात आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों में भारी मात्रा में उगाई जाती है।

कुछ और भी ऐसे राज्य हैं जहां मूंगफली की पैदावार काफी ज्यादा होती है। जैसे मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पंजाब इन राज्यों में मूंगफली की फसल को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। 

राजस्थान में लगभग मूंगफली की खेती 3.47 लाख हेक्टेयर क्षेत्रों में होती हैं। मूंगफली का उत्पादन करीब 6.81 लाख टन होता है। मूंगफली के भारी उत्पादन से आप इस फसल की उपयोगिता का अंदाजा लगा सकते हैं।

ये भी पढ़ें: तिलहनी फसलों से होगी अच्छी आय

मूंगफली की खेती के लिए भूमि को तैयार करना:

सबसे पहले खेतों की जुताई कर लेना चाहिए। खेतों की जुताई करते वक्त जल निकास की व्यवस्था को उचित ढंग से बनाना चाहिए। 

मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए। खेतों के लिए दोमट व बलुई दोमट मिट्टी सबसे सर्वोत्तम मानी जाती है भूमि उत्पादन के लिए, खेतों को मिट्टी पलटने वाले हल और उसके बाद कल्टीवेटर से अच्छी तरह से दो से तीन बार खेतों की जुताई कर लेनी चाहिए। 

भूमि को पाटा लगाकर अच्छी तरह से समतल कर लेना उचित होता है। मूंगफली की फसल में दीमक और कीड़े लगने की संभावना बनी रहती है। मूंगफली की फसल को दीमक और कीड़ों से सुरक्षित रखने के लिए क्विनलफोस 1.5 प्रतिशत 25 किलोग्राम प्रति हेक्टर की दर से भूमि की आखिरी जुताई के दौरान अच्छी तरह से भूमि में मिला देना चाहिए। 

मूंगफली की फसल के लिए बीज का चयन:

किसान मूंगफली की बुवाई मानसून के शुरुआती महीने में करना शुरू कर देते हैं। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार भारत में करीब 15 से 20 जून से लेकर 15 से 20 जुलाई के बीच मूंगफली की फसल की बुवाई होती है।

किसान मूंगफली की फसल के लिए दो तरह की बीज का इस्तेमाल करते हैं। पहली कम फैलने वाली बीज की किस्म जो लगभग 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टर होती है। और वहीं दूसरी ओर फैलने वाली बीज की किस्म जो लगभग 60 से 70 किलोग्राम प्रति हेक्टर इस्तेमाल किया जाता है। 

बुवाई के लिए स्वस्थ फल्लियाँ और प्रमाणित बीज का चयन करना उचित रहता है। किसान बीज बोने से पहले 3 ग्राम थाइरम या 2 ग्राम मेन्कोजेब या कार्बेण्डिजिम दवा 1 किलो प्रति बीज के हिसाब से उपचारित करते हैं। इस प्रक्रिया द्वारा बीज में अंकुरण अच्छे ढंग से होता है। मूंगफली बीजों की इन दो किस्मों की बुवाई अलग-अलग ढंग से की जाती है। 

मूंगफली की फसल के लिए खाद और उर्वरक का इस्तेमाल:

किसान उर्वरक का इस्तेमाल भूमि की उर्वराशक्ति को देखते हुए और मूंगफली की कौन सी किस्म बोई गई है इसके आधार पर करते हैं। मूंगफली एक तिलहनी फसल है, इस प्रकार मूंगफली की फसल को नाइट्रोजनधारी उर्वरक की जरूरत होती है। 

खेत को तैयार करते वक्त उर्वरकों की अच्छी मात्रा भूमि में मिक्स करें। खेतों की बुवाई करने से लगभग 20 से 25 दिन पहले ही कम्पोस्ट और गोबर की खाद को 8 से 10 टन प्रति हेक्टर को पूरे खेत में अच्छी तरह से बिखेर कर फैलाकर मिला देना आवश्यक होता है। 250 किलोग्राम जिप्सम प्रति हैक्टर का इस्तेमाल करने से काफी अधिक मूंगफली का उत्पादन होता है।

ये भी पढ़ें: भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से ऊर्जा के मामले में दक्ष स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

मूंगफली की फसल की सिंचाई:

मूंगफली की फसल को ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती हैं, क्योंकि यह एक खरीफ फसल होती है। मूंगफली की फसल की सिंचाई बारिश पर ही पूर्व से आधारित होती है। 

मूंगफली की फसल की जल्दी बुवाई के लिए पलेवा का उपयोग करें। मूंगफली की फसल में फूल अगर सूखे नजर आए हैं तो जल्दी ही सिंचाई करना आवश्यक होता है।सिंचाई करने से फलियां अच्छे से बड़ी और खूब भरी हुई नजर आती है।

किसानों के अनुसार फलियों का उत्पादन जमीन के भीतर होता है और काफी ज्यादा टाइम तक पानी भरने से फलियां खराब भी हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में जल निकास की व्यवस्था को बुवाई के वक्त विकसित करना उचित होता। 

इस प्रक्रिया को अपनाने से बारिश के दिनों में पानी खेतों में नहीं भरने पाते और ना ही फसल को किसी भी तरह का कोई नुकसान होता है। 

मूंगफली की फसल में निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण:

मूंगफली की फसल के लिए सबसे महत्वपूर्ण निराई गुड़ाई और खरपतवार नियंत्रण होता है। निराई गुड़ाई की वजह से फसलों में अच्छा उत्पादन होता है। बारिश के दिनों में खरपतवार ढक जाते हैं खरपतवार पौधों को किसी भी प्रकार से बढ़ने नहीं देते हैं। 

फसलों को खरपतवार से सुरक्षित रखने के लिए कम से कम दो से तीन बार खेतों में निराई और गुड़ाई करनी चाहिए। पहली निराई गुड़ाई फूल आने के टाइम करें और दूसरी लगभग 2 से 3 सप्ताह बात करें। जब नस्से भूमि के भीतर प्रवेश करने लगे। इस प्रक्रिया को अपनाने के बाद कोई और निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती हैं।

ये भी पढ़ें: मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (pests and diseases)

मूंगफली फसल की कटाई का उचित समय:

किसानों के अनुसार जब पौधों की पत्तियां पीली रंग की नजर आने लगे तो कटाई की प्रक्रिया को शुरू कर दें। मूंगफली की फलियों को पौधों से अलग करने के बाद कम से कम 8 से 10 दिन तक उन्हें खूब अच्छी तरह से सुखा लेना आवश्यक होता है। 

मूंगफली की फलियों को किसान लगभग तब तक सुखाते हैं जब तक उनमें 10% नमी ना बचे। इस प्रतिक्रिया को किसान इसलिए अपनाते हैं क्योंकि नमी वाली फलियों को इकट्ठा या भंडारित करने से उन में विभिन्न प्रकार की बीमारियों का प्रकोप बना रहता है। 

खासकर सफेद फंफूदी जैसे रोग पैदा हो सकते हैं। मूंगफली की कटाई करने के बाद इन तरीकों को अपनाना आवश्यक होता है। 

दोस्तों हम उम्मीद करते हैं आपको हमारा यह आर्टिकल मूंगफली की बुवाई पसंद आया होगा। हमारे इस आर्टिकल में मूंगफली की बुवाई से जुड़ी सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारी मौजूद हैं। 

यदि आप हमारी जानकारियों से संतुष्ट हैं। तो हमारे इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों और सोशल मीडिया पर शेयर करें। धन्यवाद।

Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

आज हम आपको इस लेख में मूंगफली की खेती के बारे में विस्तृत जानकारी देने वाले हैं। परंपरागत फसलों के तुलनात्मक मूंगफली को ज्यादा मुनाफा देने वाली फसल माना जाता है। यदि किसान मूंगफली की खेती वैज्ञानिक ढंग से करते हैं, तो वह इस फसल से ज्यादा उत्पादन उठाकर बेहतरीन मुनाफा कमा सकते हैं। बतादें, कि खरीफ सीजन के फसल चक्र में मूंगफली की खेती का नाम सर्वप्रथम आता है। भारत के कर्नाटक,आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में प्रमुख तौर पर मूंगफली की खेती की जाती है। 

मूंगफली की खेती

यदि आप मूंगफली का उत्पादन करके बेहतरीन पैदावार से ज्यादा मुनाफा अर्जित करना चाहते हैं, तो मूंगफली की खेती कब और कैसे करनी चाहिए,
मूंगफली की बुवाई का समुचित समय क्या है? मूंगफली की उन्नत किस्म कौन सी है? मूंगफली हेतु बेहतर खाद व उर्वरक आदि से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी आपको होनी ही चाहिए। तब ही आप मूंगफली की उन्नत खेती कर सकेंगे। मूंगफली की उन्नत खेती करने के इच्छुक किसानों को इस लेख को आखिर तक अवश्य होंगे। 

मूंगफली की खेती किस इलाके में की जाती है

मूंगफली को तिलहनी फसलों की श्रेणी में रखा गया है, जो ऊष्णकटबंधीय इलाकों में बड़ी ही सुगमता से उत्पादित की जा सकती हैं। जो किसान मूंगफली की खेती करने की योजना बना रहे हैं, उनको इस लेख को ध्यानपूर्वक पूरा पढ़ना चाहिए। इस लेख में किसानों को मूंगफली की उन्नत खेती किस प्रकार करें? इस विषय में विस्तृत रूप से जानकारी दी जाएगी। 

मूंगफली की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु कौन-सी है

मूंगफली की खेती करने के लिए अर्ध-उष्ण जलवायु सबसे बेहतर मानी जाती है। इसकी खेती से बेहतरीन उत्पादन पाने के लिए 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान की जरुरत होती है। मूंगफली फसल के लिए 50 से 100 सेंटीमीटर बारिश सर्वोत्तम मानी जाती है।

यह भी पढ़ें: मूंगफली की खेती से किसान और जमीन दोनों को दे मुनाफा

मूंगफली की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

मूंगफली की खेती विभिन्न प्रकार की मृदा में की जा सकती है। परंतु, मूंगफली की फसल से बेहतरीन पैदावार लेने के लिए बेहतरीन जल निकासी और कैल्शियम एवं जैव पदार्थो से युक्त बलुई दोमट मृदा सबसे उपयुक्त मानी गई है। इसकी खेती के लिए मृदा पीएच मानक 6 से 7 के मध्य होना आवश्यक है। 

मूंगफली फसल के लिए खेत की तैयारी

मूंगफली की खेती के लिए प्रथम जुताई मृदा पलटने वाले हल कर खेत को कुछ दिनों के लिए खुला छोड़ दें। जिससे कि उसमें उपस्थित पुराने अवशेषों, खरपतवार एवं कीटों का खत्मा हो जाये। खेत की आखिरी जुताई करके मृदा को भुरभुरी बनाकर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लें। खेत की अंतिम जुताई के दौरान 120 कि.ग्रा./एकड़ जिप्सम/फास्फोजिप्सम उपयोग करें। दीमक एवं अन्य कीड़ों से संरक्षण के लिए किनलफोस 25 किग्रा एवं निम की खली 400 किग्रा प्रति हैक्टेयर खेत में डालें। 

भारत के अंदर मूंगफली की खेती के लिए विभिन्न किस्में मौजूद हैं, जो कि निम्नलिखित हैं।

फैलने वाली वैरायटी:- आर जी-382 (दुर्गा), एम-13, एम ए-10, आर एस-1 और एम-335, चित्रा इत्यादि। 

मध्यम फैलने वाली वैरायटी:- आर जी-425, गिरनार-2, आर एस बी-87, एच एन जी-10 और आर जी-138, इत्यादि।

झुमका वैरायटी:- ए के-12 व 24, टी जी-37ए, आर जी-141, डी ए जी-24, जी जी-2 और जे एल-24 इत्यादि। 

मूंगफली के बीज की क्या दर होनी चाहिए

मूंगफली की गुच्छेदार प्रजातियों के लिए 100 कि.ग्रा. और फैलने वाली प्रजातियों के लिए 80 कि.ग्रा. बीज प्रति हैक्टेयर की दर से जरुरी होता है।  

मूंगफली के बीज को किस प्रकार उपचारित किया जाए

मूंगफली के बीज का समुचित ढंग से अंकुरण करने के लिए बीज को उपचारित अवश्य कर लें। कार्बोक्सिन 37.5% + थाइरम 37.5 % की 2.5 ग्राम/कि.ग्रा. बीज की दर से या 1 ग्रा. कार्बेन्डाजिम + ट्राइकाडर्मा विरिडी 4 ग्रा./कि.ग्रा. के अनुरूप बीज को उपचारित किया जाए। 

यह भी पढ़ें: भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से ऊर्जा के मामले में दक्ष स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

मूंगफली की बुआई किस प्रकार से की जाए

मूंगफली की बुवाई के लिए सबसे अच्छा समय जून के द्वितीय सप्ताह से जुलाई के प्रथम सप्ताह में की जा सकती है। मूंगफली का बीजारोपण रेज्ड बेड विधि द्वारा करना चाहिए। इस विधि के अनुरूप बुवाई करने पर 5 कतारों के उपरांत एक-एक कतार खाली छोड़ते हैं। झुमका किस्म:- झुमका वैरायटी के लिए कतार से कतार का फासला 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की फासला 10 से.मी. आवश्यक होता है। विस्तार किस्मों के लिए:- विस्तार किस्मों के लिए कतार से कतार का फासला 45 से.मी. वहीं पौधे से पौधे का फासला 15 सें.मी. रखें। बीज को 3 से 5 से.मी. की गहराई में ही बोयें। 

मूंगफली की खेती में खरपतवार नियंत्रण

मूंगफली फसल में सत्यानाशी, कोकावा, दूधघास, मोथा, लकासा, जंगली चौलाइ, बनचरी, हिरनखुरी, कोकावा और गोखरू आदि खरपतवार प्रमुख रूप से उग जाते हैं। इनकी रोकथाम करने के लिए 30 और 45 दिन पर निदाई-गुड़ाई करें, जिससे कि खरपतवार नियंत्रण मूंगफली की जड़ों का फैलाव अच्छा होने के साथ मृदा के अंदर वायु का संचार भी हो जाता है। 

मूंगफली की खेती के लिए सिंचाई प्रबंधन

जायद की फसल के लिए सिचाई – बतादें कि प्रथम सिंचाई बुवाई के 10-15 दिन उपरांत, दूसरी सिंचाई बुवाई के 30-35 दिन के उपरांत एवं तीसरी फूल एवं सुई निर्माण के वक्त, चौथी सिचाई 50-75 दिन उपरांत मतलब फली बनने के समय तो वहीं पांचवी सिचाई फलियों की प्रगति के दौरान (75-90 दिन बाद) करनी जरूरी होती है। यदि मूंगफली की बुवाई वर्षाकाल में करी है, तब वर्षा के आधार पर सिंचाई की जाए। 

मूंगफली की फसल में लगने वाले कीट

रस चूसक/ पत्ती सुरंगक/ चेपा/ टिक्का/ रोजेट/फुदका/ थ्रिप्स/ दीमक/सफेद लट/बिहार रोमिल इल्ली और मूंगफली का माहू इत्यादि इसकी फसल में विशेष तौर पर लगने वाले कीट और रोग हैं। 

यह भी पढ़ें: मूंगफली (Peanut) के कीट एवं रोग (pests and diseases)

मूंगफली की खुदाई हेतु सबसे अच्छा समय कौन-सा होता है

आपकी जानकारी के लिए बतादें कि मूंगफली के पौधों की पत्तियों का रंग पीला होने लग जाए। फलियों के अंदर के टेनिन का रंग उड़ जाए और बीज का खोल रंगीन हो जाने के उपरांत खुदाई करें। खुदाई के दौरान खेत में हल्की नमी होनी चाहिए। बतादें, कि भंडारण और अंकुरण क्षमता स्थिर बनाये रखने के लिए खुदाई के उपरांत सावधानीपूर्वक मूंगफली को सुखाना चाहिए। मूंगफली का भंडारण करने से पूर्व यह जाँच कर लें कि मूंगफली के दानो में नमी की मात्रा 8 से 10% प्रतिशत से ज्यादा नहीं होनी चाहिए। 

मूंगफली की खेती में कितना खर्च और कितनी आय होती है

मूंगफली की खेती को बेहतरीन पैदावार देने वाली फसल मानी जाती है। इसकी खेती करने में लगभग 1-2 लाख रुपए तक की लागात आ जाती है। यदि किसानों के हित में सभी कुछ ठीक रहा तो प्रति हेक्टेयर तकरीबन 5-6 लाख की आमदनी की जा सकती है।

मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की खेती से किसान भाई सिर्फ तभी पैदावार हांसिल कर सकते हैं। जब वह मूंगफली की फसल में सफेद लट के रोग से निजात पा सकें। सफेद लट मृदा में पाए जाने वाले बहुभक्षी कीट हैं। इनको जड़ लट के तौर पर भी जाना जाता है। बतादें, कि सफेद लट कीट अपना भोजन मृदा में मौजूद ऑर्गेनिक पदार्थ और पौधों की जड़ों से अर्जित करते हैं। मूंगफली के अतिरिक्त सफेद लट आलू, अखरोट, तम्बाकू एवं विभिन्न अन्य तिलहन, दालें और सब्जी की फसलें अमरूद, गन्ना, नारियल, सुपारी की जड़ों पर आक्रमण कर अपना भोजन अर्जित करते हैं। सफेद लट मूंगफली की फसल को 20-80 प्रतिशत तक हानि पहुँचा सकती हैं।

सफेद लट का प्रकोप किस समय ज्यादा होता है

सामान्य तौर पर सफेद लट साल भर मौजूद रहते हैं। परंतु, इनकी सक्रियता बरसात के मौसम के समय अधिक नजर आती है। मानसून की प्रथम बारिश मई के मध्य अथवा जून माह में वयस्क लट संभोग के लिए बड़ी तादात में बाहर आते हैं। खेत में व उसके आसपास मौजूद रहने वाली मादाएं प्रातः काल जल्दी मिट्टी में वापिस आती हैं। साथ ही, अंडे देना चालू कर देती हैं। पुनः अपने बचे हुए जीवन चक्र के लिए मिट्टी में लौट जाते हैं। आगामी मानसूनी बारिश तक तकरीबन एक मीटर की गहराई पर मृदा निष्क्रिय स्थिति में रहती है। 

यह भी पढ़ें: मूंगफली की फसल को सर्वाधिक प्रभावित करने वाले कीट व रोगों की इस प्रकार रोकथाम करें

मूंगफली के खेत में सफेद लट संक्रमण के लक्षण

यह कीट भूमिगत है, इसलिए इस कीट से होने वाली हानि को सामान्य तौर पर दरकिनार कर दिया जाता है। संक्रमित पौधा पीला पड़ता दिखाई देने के साथ-साथ मुरझाया हुआ दिखाई पड़ता है। ऐसे में आखिर में पौधा सूख जाता है, जिसको बड़ी सहजता से जमीन से निकाला जा सकता है। भारी संक्रमण में पौधे मर जाते हैं। साथ ही, मरे हुए पौधे खेतों के भीतर पेचो में दिखाई देते हैं। सफेद लट पौधों की जड़ों को भी खाकर समाप्त कर देते हैं। लटों की वजह से मूंगफली की पैदावार में भारी हानि होती है। वयस्क लट रात में सर्व प्रथम पत्तियों में छेद करते हैं। उसके उपरांत सिर्फ मध्य पत्ती की मध्य शिरा को छोड़कर पूरी पत्ती को चट कर जाते हैं।

मूंगफली के खेत में सफेद लट कीट प्रबंधन

बतादें, कि यदि किसी इलाके में सफेद लटों का आक्रमण है, तो वहां इसका प्रबंधन एक अकेले किसान की कोशिशों से संभव नहीं है। इसके लिए समुदायिक रूप से सभी किसान भाइयों को रोकथाम के उपाय करने पड़ेंगे। सफेद लट का प्रबंधन सामुदायिक दृष्टिकोण के जरिए से करना ही संभव होता है। 

यह भी पढ़ें: Mungfali Ki Kheti: मूंगफली की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

सफेद लट का वयस्क प्रबंधन

  • प्रथम बारिश होने के उपरांत एक लाइट ट्रैप/हेक्टेयर की दर से लगाएं।
  • लट संभावित इलाकों में खेतों के आस-पास के वृक्षों की कटाई कर दें। साथ ही, जो झाड़ियां खेत के पास है उन्हें काट के खत्म कर दें।
  • सूर्यास्त के दौरान वृक्षों और झाड़ियों पर कीटनाशकों जैसे कि इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल @ 1.5 मिली/लीटर अथवा मोनोक्रोटोफॉस 36 एसएल @ 1.6 मिली/लीटर का छिड़काव करें।
  • पेड़ों के पास गिरे हुए लटों को एकत्रित करके उनको समाप्त कर दें।

सफेद लट कीट प्रबंधन

  • यदि जल की उपलब्धता है, तो अगेती बुवाई करें।
  • किसान भाई बेहतर तरीके से विघटित जैविक खाद का इस्तेमाल करें।
  • किसान भाई प्यूपा को प्रचंड धूप के संपर्क में लाने हेतु गर्मियों में गहरी जुताई करें।
  • छोटे पक्षियों को संरक्षित करने पर अधिक ध्यान दें, क्योंकि यह इन सफेद लट का शिकार करते हैं।
  • बुवाई से पूर्व मृदा में कार्बोफ्यूरान 3 सीजी @ 33.0 किग्रा/हेक्टेयर अथवा फोरेट 10 सीजी @ 25.0 किग्रा/हेक्टेयर मिलाएं।
  • सफेद लट संक्रमित खेतों में बुवाई वाली रेखाओं में कीटनाशकों जैसे कि थियामेथोक्सम 25 डब्ल्यूएस @ 1.9 लीटर/हेक्टेयर अथवा फिप्रोनिल 5 एफएस का @ 2.0 लीटर/हे. का उपयोग करें।
  • संभावित इलाकों में बीज उपचार के लिए बिजाई से पूर्व क्लोरपायरीफॉस 20EC @ 6.5-12.0 मिली/किग्रा अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 SL @ 2.0 मिली/किग्रा से बीज का उपचार करें।
  • खेतों में वयस्क सफेद लट नजर आने पर फसलों की जड़ों में क्लोरपायरीफॉस 20 ईसी@ 4.0 लीटर/हेक्टेयर अथवा क्विनालफॉस 25 ईसी @ 3.2 से लीटर/हेक्टेयर छिड़काव करें।

किसान भाई मूंगफली की इस किस्म की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

किसान भाई मूंगफली की इस किस्म की खेती कर अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं

मूंगफली की डी.एच. 330 किस्म की खेती के लिए कम जल की जरूरत होती है। साथ ही, इसको तैयार होने में तकरीबन 4 से 5 महीने का वक्त लग जाता है। मूंगफली एक बेहद ही स्वादिष्ट एवं फायदेमंद फसल है।

भारत के तकरीबन प्रत्येक व्यक्ति को मूंगफली काफी पसंद होती है। भारत में मूंगफली का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य गुजरात है। उसके पश्चात महाराष्ट्र, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश आते हैं।

यदि आप किसान भाई भी इसकी खेती कर बेहतरीन कमाई करने का सोच रहे हैं। तो आगे इस लेख में आज हम आपको इसकी खेती के विषय में जानकारी देंगे, जिसे अपनाकर आप केवल 4 माह में ही मूंगफली का बेहतरीन उत्पादन कर मोटी आय अर्जित कर सकते हैं।

मूंगफली की खेती का बेहतरीन तरीका

मूंगफली की उन्नत और शानदार खेती के लिए अच्छे बीज के साथ-साथ आधुनिक तकनीक की भी आवश्यकता होती है। मूंगफली की डी.एच. 330 फसल के लिए खेतों में तीन से चार बार जुताई करने के उपरांत ही बिजाई करनी होती है।

इसके उपरांत मृदा को एकसार करने के पश्चात खेत में आवश्यकता के हिसाब से जैविक खाद, उर्वरक एवं पोषक तत्वों को मिला देना चाहिए। डी.एच. 330 एक ऐसी प्रजाति की मूंगफली है, जिसे अत्यधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। 

खेत तैयार करने के उपरांत मूंगफली की बुवाई करनी चाहिए। आपको इस बात का खास ख्याल रखना चाहिए कि इसकी बेहतरीन पैदावार के लिए स्वस्थ बीजों का चुनाव करें।

ये भी पढ़ें: मूंगफली की अच्छी पैदावार के लिए सफेद लट कीट की रोकथाम बेहद जरूरी है

मूंगफली की खेती में सिंचाई बेहद आवश्यक है

मूंगफली की डी.एच. 330 की फसल को तैयार होने में कम बारिश की आवश्यकता होती है। इस वजह से इसे पानी बचाने वाली फसल के नाम से भी जाना जाता है। 

अगर आपके क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा होने की संभावना रहती है, तो आप इस किस्म की खेती बिल्कुल भी ना करें। मूंगफली की फसल में पानी भरने से सड़ने का खतरा काफी बढ़ जाता है और कीड़े लगने का भी खतरा रहता है।

मूंगफली की फसल में जैविक कीटनाशक

डी.एच. 330 मूंगफली की फसल में अत्यधिक खरपतवार निकलने की संभावना बनी रहती है। अब ऐसी स्थिति में आप जैविक खाद के इस्तेमाल से अपनी पैदावार को अच्छा कर सकते हैं। 

मूंगफली की बिजाई के 25 से 30 दिन उपरांत खेतों में निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए। खेत में उत्पादित होने वाली घास को हटा दें। साथ ही, फसल को कीटों एवं रोगों से सुरक्षा के लिए माह में दो से तीन बार कीटनाशक का स्प्रे करते रहें।

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

भोपाल में किसान है परेशान, नहीं मिल रहे हैं प्याज और लहसुन के उचित दाम

वैसे तो मध्य प्रदेश की चर्चा आमतौर पर कृषि के क्षेत्र में कार्य करने हेतु होती रहती है। बार-बार न्यूज़ मीडिया के माध्यम से यह बताया जाता है कि मध्य प्रदेश की सरकार किसानों के हित के लिए कार्य कर रही है। किसान किस तरह से आत्मनिर्भर हो और किसान की आय में किस तरह से बढ़ोतरी हो, इसको लेकर लगातार मध्य प्रदेश सरकार काम करने की कोशिश कर रही है।

भोपाल के किसानों की फसल का अब क्या होगा ?

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में किसानों की हालत बहुत ही खराब हो चुकी है। किसानों को उनकी फसल का उचित रेट भी नहीं मिल पा रहा है, जिससे किसान काफी मायूस है। भोपाल के मंडियों में किसानों को उनके उगाई गई फसल लहसुन और
प्याज का उचित मूल्य भी प्राप्त नहीं हो रहा है, जिससे किसानों में काफी नाराजगी बनी हुई है। किसानों की तो यह स्थिति हो चुकी है कि फसल को बाजार तक लाने का किराया भी जुटा पाना मुश्किल हो गया है। इस बार मौसम ने भी किसानों के साथ शायद अन्याय कर दिया है, क्योंकि जहां देश के कई राज्यों में बारिश नहीं होने के कारण फसलों को भारी नुकसान झेलना पड़ा है, वहीं देश के अन्य राज्यों में अधिक बारिश होने के कारण सारे फसल पानी लग जाने के कारण बर्बाद हो चुके हैं। फसलों का इस तरह से बर्बाद हो जाना किसानों के लिए बहुत ही महंगा साबित हो रहा है। इस बार मौसम की बेरुखी के कारण ऐसे ही फसलों की उपज में कमी पाई गई है, वहीं दूसरी तरफ किसानों ने जो फसल उगाई थे उसका भी उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है।


ये भी पढ़ें: मध्य प्रदेेश में एमएसपी (MSP) पर 8 अगस्त से इन जिलों में शुरू होगी मूंग, उड़द की खरीद

कृषि मंत्री का अजीबोगरीब बयान

एक तरफ मध्य प्रदेश सरकार विश्व के बाजारों में अपने उत्पादन को प्रमोट करती हुई दिख रही है, तो दूसरी तरफ मध्य प्रदेश की राजधानी में ही किसानों का यह हाल है कि उनके द्वारा उपजाए गए फसलों का ही उचित मूल्य प्राप्त नहीं हो रहा है। ऐसी स्थिति में किसानों के साथ सरकार का रुख नरम होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं हुआ। समस्याओं का समाधान करने के बजाय मध्य प्रदेश सरकार के मंत्री ने कुछ इस तरह का बयान दे दिया जिससे किसानों में भारी नाराजगी देखने को मिल रही है। मध्य प्रदेश के कृषि मंत्री श्री कमल पटेल समस्याओं का निराकरण करने के बजाय है यह कहते हुए पाए गए कि किसानों को इस तरह की फसल नहीं उगाना चाहिए जिसका मंडियों में उचित मूल्य नहीं मिलता है। अब सवाल यह है कि क्या किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिसका मंडियों में उचित मूल्य मिलता हो?


ये भी पढ़ें: किसानों के लिए खुशी की खबर, अब अरहर, मूंग व उड़द के बीजों पर 50 प्रतिशत तक की सब्सिडी मिलेगी
यह मामला तब सामने आया जब मध्य प्रदेश के एक किसान ने कृषि मंत्री श्री पटेल को फोन कर किसानों की हालत से अवगत कराया। बातचीत के दौरान कृषि मंत्री श्री पटेल ने यह कहा कि मैं किसानों को उनकी उपज का यानी लहसुन प्याज का उचित मूल्य कहां से दूं, कुछ दिन और रुक जाओ लहसुन के दाम 4 गुना अधिक हो जाएंगे। लेकिन किसानों का कहना है कि कुछ दिन बाद बाजार में नए फसल आ जाएंगे तो फिर लहसुन और प्याज का उचित मूल्य कहां से प्राप्त होगा। साथ में उन्होंने यह भी कहा कि मेरे पास कृषि विभाग है, मेरे अंदर लहसुन और प्याज का विभाग नहीं आता है। कृषि मंत्री का किसानों के प्रति इस तरह का विवादास्पद बयान देना बहुत ही आपत्तिजनक है। इस तरह के बयानों से किसानों को सिर्फ निराशा हाथ लगती है किसान मायूस हो जाते हैं और इसका असर आने वाले समय में व्यापक स्तर पर होने लगता है क्योंकि अगर किसान फसल ही नहीं उगाएंगे तो फिर क्या हालात होगी। ये भी पढ़ें : प्याज़ भंडारण को लेकर सरकार लाई सौगात, मिल रहा है 50 फीसदी अनुदान बात यहीं तक नहीं रुकती है। मंत्री जी ने किसानों को यह सलाह देते हुए कहा कि उन्हें मूंग की खेती करनी चाहिए। कई बार किसानों को उनकी फसल पर दोगुना तिन गुना अधिक रेट मिलता है। इसीलिए किसान को परेशान नहीं होना चाहिए। अगर किसान मूंग की खेती करते हैं तो उन्हें ज्यादा फायदा होगा। लेकिन किसानों का कहना है कि इससे पहले हमने सोयाबीन की खेती की थी उसका भी फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गया। किसी तरह का कोई सर्वे सरकार के द्वारा नहीं कराया गया, अगर हम मूंग (Mung bean) की फसल का उपज करते हैं तो इसकी गारंटी कौन लेगा कि आने वाले समय में इस फसल पर हमें अच्छा रेट मिल पाएगा।


ये भी पढ़ें: पोषण और पैसे की गारंटी वाली फसल है मूंग

मूंग का मिल जाएगा अच्छा रेट?

अब यह समझने की भी जरूरत है कि फसलों को उगाने में किसान अपना सब कुछ लगा देते हैं और इन्हीं फसलों को बेचकर अपना उपार्जन करते हैं। फसलों का मौसम की बेरुखी के कारण बर्बाद हो जाना और उसके बाद इनकी समस्याओं को दरकिनार कर विवादास्पद बयान सरकार के मंत्रियों के द्वारा देना क्या किसानों के लिए हितकारी साबित होगा। जमीनी स्तर पर यह किस तरह से संभव हो पाएगा की किसान सिर्फ उन्हीं फसलों की खेती करें जिनका मार्केट वैल्यू यानी बाजार में अच्छे रेट मिल रहे हैं। क्योंकि फसल को उपजाने में मौसम का अहम योगदान होता है, यदि मौसम फसलों के अनुकूल होती है तो अच्छी उपज होती है इसके विपरीत अगर मौसम प्रतिकूल हो तो उपज पर गहरा असर पड़ता है और पैदावार अच्छी नहीं होती है। फसल वृद्धि का मौसम के साथ गहरा संबंध है। कुछ फसलों को अपना अंकुरण शुरू करने से लेकर और आगे विकास जारी रखने तक के लिए एक तापमान की आवश्यकता होती है। ऐसी स्थिति में यह सुनिश्चित करना कैसे संभव है कि मौसम के विपरीत जाकर सिर्फ मूंग की खेती करने से किसानों की समस्याओं का हल हो जाएगा। इस समय सरकार को किसानों की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए उनकी समस्याओं पर विचार करते हुए उनके समस्याओं का निराकरण करना चाहिए और किस तरह से किसान बेहतर खेती कर पाए और उसके द्वारा उपजाए गए फसलों को उचित मूल्य बाजार और मंडियों में प्राप्त हो, इसके लिए सरकार को पहल करना चाहिए।


ये भी पढ़ें: मध्य प्रदेश में अब इलेक्ट्रॉनिक कांटे से होगी मूंग की तुलाई
साथ ही साथ सरकार को किसानों के फसल उगाने के लिए नए तकनीकों के साथ जोड़ने और प्रशिक्षण देना चाहिए, जिससे किसान आने वाले समय में अच्छा उपज करके अपनी फसल को बाजार और मंडियों में बेचकर उचित मूल्य को प्राप्त कर सके और कृषि के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ सके।
Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

Drumstick: कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा

बहु उपयोगी पेड़ सहजना, सुजना, सेंजन और मुनगा आदि कई स्थानीय नामों से पुकारे पहचाने जाने वाले इस फलीदार वृक्ष की खासियतों के राज यदि आप जानेंगे तो आपके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहेगा। किसान मित्र औषधीय एवं खाद्य उपयोगी कम लागत की इस पेड़ की खेती कर लाखों रुपए का लाभ हासिल कर सकते हैं। ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) यानी कि सहजन या मुनगा का वानस्पतिक नाम मोरिंगा ओलिफेरा (Moringa oleifera) है। जड़ से लेकर पत्तियों तक कई पोषक तत्वों से भरपूर इस पौधे का उपयोग रसोई से लेकर औषधीय गुणों के कारण प्रयोगशालाओं तक विस्तृत है।

उपयोग इतने सारे

सहजन या मुनगे की पत्तियों और फली की सब्जी को चाव से खाया जाता है। मुनगे की पत्तियां जल को स्वच्छ करने में भी उपयोग की जाती हैं।



ये भी पढ़ें: श्रावण मास में उगाएंगे ये फलफूल, तो अच्छी आमदनी होगी फलीभूत

मुनगे की पहचान

एक हाथ या उससे अधिक लंबी आकार वाली मुनगे की फलियां खाद्य एवं औषधीय गुणों से भरपूर होती हैं। आम तौर पर बरवटी, सेम जैसी फलीदार सब्जियां बेलों पर पनपती हैं। जबकि मुनगे की फलियां वृक्ष पर लगती हैं। मुनगे के पेड़ के तने में काफी मात्रा में पानी होता है। सहजन के पेड़ की शाखाएं काफी कमजोर होती हैं। सहजन के फल-फूल-पत्तियों की बाजार में खासी डिमांड रहती है। इसकी पत्तियों के क्रय एवं निर्जलीकरण के लिए सरकार द्वारा कई तरह की योजनाएं संचालित की जाती हैं। मध्य प्रदेश के बैतूल जिले में मुनगे की खेती को प्रोत्साहित करने कृषि विभाग ने पत्तियों और फलों की खरीद से जुड़ी कई प्रोत्साहन योजनाओं को लागू किया है। उद्यानिकी एवं खाद्य प्रसंस्करण के अधीन मुनगा पत्‍ती रोपण के बारे में किसान कल्याण मंत्री से मुनगा पत्‍ती मूल्‍य अनुबंध खेती, किसानों के लिए इसमें समाहित अनुदान, प्रावधान से संबंधित सवाल किए जा चुके हैं।



ये भी पढ़ें:
बिल्व या बेल की इन चमत्कारी स्वास्थ्य रक्षक व कृषि आय वर्धक खासियतों को जानें

गौरतलब है कि बैतूल जिले में वर्ष 2018-19 में मुनगा की खेती के लिए किसानों के लिए प्रोत्साहन योजना लागू की गई थी। इसका लक्ष्य किसान से मुनगा पत्‍ती खरीदकर उन्हें लाभान्वित करना था। हालांकि सदन में यह भी आरोप लगा था कि, बैतूल के किसानों को 10 रुपए प्रति पौधे की दर से घटिया गुणवत्ता के पौधे प्रदान किए गए। यह पौधे मृत हो जाने से किसानों को लाभ के बजाए नुकसान उठाना पड़ा।

कटाई का महत्व

पौधे की ऊंचाई की बात करें, तो आम तौर पर सहजन का पौधा लगभग 10 मीटर तक वृद्धि करता है। चूंकि जैसा हमने बताया कि इसके तने कमजोर होते हैं, इस कारण इस पर चढ़कर फल, पत्तियों की तुड़ाई करना खतरनाक हो सकता है। इसलिए लगभग 10 से 12 मीटर की ऊंचाई पर पहुंचने पर इसकी पैदावार करने वाले किसान इसकी हर साल इसकी कटाई कर डेढ़ से दो मीटर की ऊंचाई को कम कर देते हैं। इसके फल-फूल-पत्तियों की आसान तुड़ाई के लिए यह प्रक्रिया अपनाई जाती है।

स्टोरेज कैपिसिटी

अपनी फलियों के आकार के कारण ड्रमस्टिक ट्री (Drumstick tree) कहे जाने वाले मुनगा पेड़ में उगने वाली फलियां ड्रम (पाश्चात्य वाद्य) बजाने वाली स्टिक (डंडी/छड़ी) की तरह दिखती हैं। मुनगा की कच्ची-हरी फलियां भारतीय लोग रसम, सांबर, दाल में डालकर या सब्जी आदि बनाकर खाते हैं। लगभग एक बांह लंबी डंडी के आकार वाली सहजन या मुनगा की फलियां तुड़ाई के बाद 10 से 12 दिनों तक उचित देखरेख में घरेलू उपयोग में लाई जा सकती हैं। साथ ही सूखने के बाद भी इसकी फलियों का चूर्ण आदि कई तरह के उपयोग में लाया जाता है।



ये भी पढ़ें: मचान विधि – सब्जी की खेती करने का आसान तरीका

कितने गुणों से भरपूर

सहजन की पत्तियों से लेकर फलियां, छाल, जड़ तक बहुआयामी उपयोगों से परिपूर्ण हैं। मुनगा के बीज से तेल निकालकर भी उसे खाद्य एवं औषधीय उपयोग में लाया जाता है। सहजन की कच्ची हरी पत्तियों में पोषक मूल्य की मात्रा महत्वपूर्ण होती है।

USDA Nutrient database के अनुसार

सहजन में उर्जा, कार्बोहाइड्रेट, आहारीय रेशा, वसा, प्रोटीन की मात्रा ही इसे खास बनाती है। इसमें पानी, विटामिन, कैल्शियम, लोहतत्व से लेकर अन्य पोषक पदार्थ बहुतायत में पाए जाते हैं। एशिया और अफ्रीका में मुनगा के पेड़ प्राकृतिक रूप से स्वतः पनप जाते हैं। ड्रमस्टिक (Drumstick) एवं इसकी पत्तियां कम्बोडिया, फिलीपाइन्स, दक्षिणी भारत, श्री लंका और अफ्रीका के नागरिक खाने में उपयोग में लाते हैं। दक्षिण भारत के तमाम व्यंजनों में इसका अनिवार्यता से प्रयोग होता है। स्वाद की बात करें तो मुनगा का टेस्ट, मशरूम सरीखा महसूस होता है। छाल, रस, पत्तियों, बीजों, तेल, और फूलों से पारम्परिक दवाएँ बनायी जाती है। जमैका में इसके रस से नीली डाई (रंजक) के रूप में उपयोग किया जाता है। दक्षिण भारतीय व्यंजनों में इसका प्रयोग बहुत किया जाता है।



ये भी पढ़ें: घर में ऐसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा, खाने को बनाएगा स्वादिष्ट एवं खुशबूदार

सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) औषधीय गुणों से भरपूर है। इसके औषधीय अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि, तकरीबन तीन सैकड़ा से अधिक रोगों की रोकथाम के साथ ही इनके उपचार की ताकत मुनगा में होती है। मुनगा में मौजूद 90 से अधिक किस्मों के मल्टीविटामिन्स, कई तरह के एंटी आक्सीडेंट, दर्द निवारक गुण और कई प्रकार के एमिनो एसिड इसके प्राकृतिक महत्व को जाहिर करने के लिए काफी हैं।

कम लागत, कम देखभाल, मुनाफा पर्याप्त

स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र या प्राइवेट फल-पौधों की नर्सरी से सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) के उपचारित बीज एवं पौधे क्रय किए जा सकते हैं। किसान मित्र मुनगा के पुराने पौधों की फलियों को संरक्षित करके भी उसके बीजों को बोकर पौध तैयार कर सकते हैं। हालांकि नर्सरी आदि में तैयार बीज एवं पौधे ज्यादा मुनाफा प्रदान करने में सहायक होते हैं, क्योंकि इस पर प्रतिकूल मौसम का प्रभाव कम होता है। इसके साथ ही नर्सरी या शासकीय विक्रय केंद्रों से बीज एवं पौधे खरीदने पर किसानों को मुनगे की पैदावार से जुड़़ी महत्वपूर्ण जानकारियां एवं सुझाव भी मुफ्त में प्राप्त होते हैं।



ये भी पढ़ें: पालड़ी राणावतन की मॉडल नर्सरी से मरु प्रदेश में बढ़ी किसानों की आय, रुका भूमि क्षरण

बारिश अनुकूल मौसम

किसान मित्रों के लिए जुलाई-अगस्त का महीना मुनगा की खेती करने के लिए हितकारी होता है। बारिश का मौसम पौध एवं बीजारोपण के लिए अनुकूल माना जाता है। आमतौर पर वर्षाकाल बागवानी के लिए सबसे मुफीद होता है क्योंकि इस दौरान किसी भी पौधे को तैयार किया जा सकता है। https://youtu.be/s5PUiHTe82Q

बीज का ऑनलाइन मार्केट

ऑनलाइन मार्केट में भी कृषि सेवा प्रदान करने वाली कई कंपनियां मुनगा के बीज एवं पौधे रियायती दर पर उपलब्ध कराने के दावे करती हैं। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मोरिंगा (सफेद) बीज के 180 ग्राम वजनी पैकेट की कीमत 2 अगस्त 2022 को सभी टैक्स सहित ₹499.00 दर्शाई जा रही थी।

सहजन के लाभ एवं नुकसान

मुनगा के अंश का सेवन करने से मानव की रोग प्रत‍िरोधक क्षमता में वृद्धि होती है। इसमें भरपूर रूप से उपलब्ध कैल्‍श‍ियम की मात्रा साइटिका, गठिया के इलाज में कारगर है। हल्का एवं सुपाच्य भोज्य होने के कारण इसका खाद्य उपयोग लि‍वर की सेहत के लिए फायदेमंद है। पेट दर्द, गैस बनना, अपच और कब्ज की बीमारी भी मुनगा के फूलों का रस या फिर इसकी फलियों की सब्जी के सेवन से काफूर हो जाती है।



ये भी पढ़ें: तितली मटर (अपराजिता) के फूलों में छुपे सेहत के राज, ब्लू टी बनाने में मददगार, कमाई के अवसर अपार

हालांकि मुनगा जहां मानव स्वास्थ्य के लिए अति गुणकारी है वहीं इसके सेवन के कई नुकसान भी हो सकते हैं। मोरिंगा (सहजन) का असंतुलित सेवन शरीर में आंतरिक जलन का कारक हो सकता है। मासिक धर्म में महिलाओं को इसके सेवन से बचना चाहिए। प्रसव के फौरन बाद भी इसका सेवन वर्जित माना गया है।

मुनगा का बाजार महत्व

जैसा कि इसकी उपयोगिता से स्पष्ट है कि कच्चे फल, पत्तियों से लेकर उसके उपोत्पाद तक के मामले में सहजना, सुजना, सेंजन, मुनगा, मोरिंगा या ड्रमस्टिक (Drumstick) की तूती बोलती है। दैनिक, साप्ताहिक हाट बाजार, शासकीय निर्धारित मूल्य पर खरीद से लेकर शॉपिंग मॉल्स में भी इसकी डिमांड बनी रहती है। तो यह हुई कच्चे फल, पत्तियों के बाजार से जुड़़ी मांग की बात, अब इसके बाय प्राडक्ट पर नजर डालते हैं। दरअसल ऑर्गेनिक खेती से जुड़े उत्पाद की सेल करने वाली कंपनियां मोरिंगा (मुनगा) के उपोत्पाद भी रिटेल सेंटर्स के साथ ही ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर मुहैया कराती हैं। ऑनलाइन मार्केट में 100 ग्राम मोरिंगा पाउडर 2 सौ रुपए से अधिक की कीमत पर बेचा जा रहा है। ऐसे में समझा जा सकता है कि, मुनगा की किसानी में कृषक को कितना मुनाफा मिल सकता है।

सुरजना पौधे का महत्व व उत्पादन की संपूर्ण विधि

सुरजना पौधे का महत्व व उत्पादन की संपूर्ण विधि

भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे मुनगा, सेजन और सहजन (Munga, Sahjan, Moringa oleifera, Drumstick) नामों से जाना जाता है। बारहमासी सब्जी देने वाला यह पेड़ विश्व स्तर पर भारत में ही सर्वाधिक इस्तेमाल में लाया जाता है।

सुरजना पौधे का महत्व

यह वृक्ष स्वास्थ्य के लिए बहुत ही उपयोगी समझा जाता है और इसकी पत्तियां तथा जड़ों के अलावा तने का इस्तेमाल भी कई बीमारियों के इलाज के लिए किया जाता है। सुरजना या ड्रमस्टिक (Drumstick) कच्चा, सूखा, हरा हर हाल में बेशकीमती है मुनगा सभी प्रकार की मृदाओं में उगाया जा सकने वाला यह पौधा राजस्थान जैसे रेगिस्तानी और शुष्क इलाकों में भी आसानी से उगाया जा सकता है।सीधी धूप पड़ने वाले इलाकों में इस पौधे की खेती सर्वाधिक की जा सकती है। इस पौधे का एक और महत्व यह होता है कि इससे प्राप्त होने वाले बीजों से कई प्रकार का तेल निकाला जा सकता है और इस तेल की मदद से कई आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जाती है। इसके बीज को गंदे पानी में मिलाने से यह पानी में उपलब्ध अपशिष्ट को सोख लेता है और अशुद्ध पानी को शुद्ध भी कर सकता है। कम पानी वाले क्षेत्रों में भी उगाया जा सकने वाला यह पौधा जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के अलावा एक प्राकृतिक खाद और पोषक आहार के रूप में भी इस्तेमाल में लाया जाता है। आयुष मंत्रालय के अनुसार केवल एक सहजन के पौधे से 200 से अधिक रोगों का इलाज किया जा सकता है। यदि बात करें इस पौधे की पत्तियों और तने में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की, तो यह विटामिन ए, बी और सी की पूर्ति के अलावा कैल्शियम, आयरन और पोटेशियम जैसे खनिजो की कमी को भी दूर करता है। इसके अलावा इसकी पत्तियों में प्रोटीन की भी प्रचुर मात्रा पाई जाती है। वर्तमान में कई कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा इस पौधे की जड़ का इस्तेमाल रक्तशोधक बनाने के लिए किया जा रहा है। इस तैयार रक्तशोधक से आंखों की देखने की क्षमता को बढ़ाने के अलावा हृदय की बीमारियों से ग्रसित रोगियों के लिए आयुर्वेदिक दवाइयां तैयार की जा रही है।



ये भी पढ़ें: घर में ऐसे लगाएं करी-पत्ता का पौधा, खाने को बनाएगा स्वादिष्ट एवं खुशबूदार

सुरजना पौधे के उत्पादन की संपूर्ण विधि :

जैसा कि हमने आपको पहले बताया सुरजना का बीज सभी प्रकार की मृदाओं में आसानी से पल्लवित हो सकता है। इस पौधे के अच्छे अंकुरण के लिए ताजा बीजों का इस्तेमाल करना चाहिए और बीजों की बुवाई करने से पहले, उन्हें एक से दो दिन तक पानी में भिगोकर रख देना चाहिए। सेजन पौधे की छोटी नर्सरी तैयार करने के लिए बालू और खेत की मृदा को जैविक खाद के साथ मिलाकर एक पॉलिथीन का बैग में भर लेना चाहिए। इस तैयार बैग में 2 से 3 इंच की गहराई पर बीजों का रोपण करके दस दिन का इंतजार करना चाहिए। इन बड़ी थैलियों में समय-समय पर सिंचाई की व्यवस्था का उचित प्रबंधन करना होगा और दस दिन के पश्चात अंकुरण शुरू होने के बाद इन्हें कम से कम 30 दिन तक उन पॉलिथीन की थैलियों में ही पानी देना होगा। इसके पश्चात अपने खेत में 2 फीट गहरा और 2 फीट चौड़ा एक गड्ढा खोदकर थैली में से छोटी पौधों को निकाल कर रोपण कर सकते है। पांच से छह महीनों में इस पौधे से फलियां प्राप्त होनी शुरू हो जाती है और इन फलियों को तोड़कर अपने आसपास में स्थित किसी सब्जी मंडी में बेचा जा सकता है या फिर स्वयं के दैनिक इस्तेमाल में सब्जी के रूप में भी किया जा सकता है। [embed]https://youtu.be/s5PUiHTe82Q[/embed]

सुरजना पौधे के उत्पादन के दौरान रखें इन बातों का ध्यान :

सुरजाना पौधे के रोपण के बाद किसान भाइयों को ध्यान रखना होगा कि इस पौधे को पानी की इतनी आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए सिंचाई का सीमित इस्तेमाल करें और खेत में जलभराव की समस्या को दूर करने के लिए पर्याप्त जल निकासी की व्यवस्था भी रखें। रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल की सीमित मात्रा में करना चाहिए, बेहतर होगा कि किसान भाई जैविक खाद का प्रयोग ही ज्यादा करें, क्योंकि कई रासायनिक कीटनाशक इस पौधे की वृद्धि को तो धीमा करते ही हैं, साथ ही इससे प्राप्त होने वाली उपज को भी पूरी तरह से कम कर सकते है। घर में तैयार नर्सरी को खेत में लगाने से पहले ढंग से निराई गुड़ाई कर खरपतवार को हटा देना चाहिए और जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए वैज्ञानिकों के द्वारा जारी की गई एडवाइजरी का पूरा पालन करना चाहिए।



ये भी पढ़ें: जैविक खेती पर इस संस्थान में मिलता है मुफ्त प्रशिक्षण, घर बैठे शुरू हो जाती है कमाई

सेजन उत्पादन के दौरान पौधे में लगने वाले रोग और उनका उपचार :

वैसे तो नर्सरी में अच्छी तरीके से पोषक तत्व मिलने की वजह से पौधे की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी हो जाती है, लेकिन फिर भी कई घातक रोग इसके उत्पादकता को कम कर सकते है, जो कि निम्न प्रकार है :-

पौधे की नर्सरी तैयार होने के दौरान ही इस रोग से ग्रसित होने की अधिक संभावना होती है। इस रोग में बीज से अंकुरित होने वाली पौध की मृत्यु दर 25 से 50 प्रतिशत तक हो सकती है। यह रोग नमी और ठंडी जलवायु में सबसे ज्यादा प्रभावी हो सकता है और पौधे में बीज के अंकुरण से पहले ही उसमें फफूंद लग जाती है।

इस रोग की एक और समस्या यह है कि एक बार बीज में यह रोग हो जाने के बाद इसका इलाज संभव नहीं होता है, हालांकि इसे फैलने से जरूर बचाया जा सकता है।

इस रोग से बचने के लिए पौधे की नर्सरी को हवादार बनाना होगा, जिसके लिए आप नर्सरी में इस्तेमाल होने वाली पॉलिथीन की थैली में चारों तरफ कुछ छेद कर सकते है, जिससे हवा आसानी से बह सके।

यदि बात करें रासायनिक उर्वरकों की तो केप्टोन (Captan) और बेनोमील प्लस (Benomyl Plus) तथा मेटैलेक्सिल (metalaxyl) जैसे फंगसनाशीयों का इस्तेमाल किया जा सकता है।

  • पेड़ नासूर रोग (Tree Canker Disease) :

सेजन के पौधों में यह समस्या जड़ और तने के अलावा शाखाओं में देखने को मिलती है।

इस रोग में पेड़ के कुछ हिस्से में कीटाणुओं और इनफैक्ट की वजह से पौधे की पत्तियां, तने और अलग-अलग शाखाएं गलना शुरू हो जाती है, हालांकि एक बार इस रोग के फैलने के बाद किसी भी केमिकल उपचार की मदद से इसे रोकना असंभव होता है, इसीलिए कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा दी गई सलाह के अनुसार पेड़ के नासूर ग्रसित हिस्से को काटकर अलग करना होता है।

कुछ किसान पूरे पेड़ पर ही केमिकल का छिड़काव करते हैं, जिससे कि जिस हिस्से में यह रोग हुआ है इसका प्रभाव केवल वहीं तक सीमित रहे और पेड़ के दूसरे स्वस्थ भागों में यह ना फैले।

पेड़ के हिस्सों को काटने की प्रक्रिया सर्दियों के मौसम में करनी चाहिए, क्योंकि इस समय काटने के बाद बचा हुआ हिस्सा आसानी से रिकवर हो सकता है।



ये भी पढ़ें: गर्मियों के मौसम में हरी सब्जियों के पौधों की देखभाल कैसे करें

गर्मी और बारिश के समय में इस प्रक्रिया को अपनाने से पेड़ के आगे के हिस्से की वृद्धि दर भी पूरी तरीके से रुक जाती है। इसके अलावा कई दूसरे पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले कीटों जैसे कि फंगस, वायरस और बैक्टीरिया की वजह कई और रोग भी हो सकते हैं परंतु इनका इलाज इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (Integrated Pest Management) विधि की मदद से बहुत ही कम लागत पर आसानी से किया जा सकता है। आशा करते हैं कि हमारे किसान भाइयों को हर तरह से पोषक तत्व प्रदान करने वाला 'न्यूट्रिशन डायनामाइट' यानी कि सुरजना की फसल के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी और भविष्य में आप भी कम लागत पर वैज्ञानिकों के द्वारा जारी एडवाइजरी का सही पालन कर अच्छा मुनाफा कर पाएंगे।

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई ..)

किसान फसल की कटाई के बाद अपने खेत को किस तरह से तैयार करता है? खाद और जुताई के ज़रिए, कुछ ऐसी प्रक्रिया है जो किसान अपने खेत के लिए अप्रैल के महीनों में शुरू करता है वह प्रतिक्रियाएं निम्न प्रकार हैं: 

कटाई के बाद अप्रैल (April) महीने में खेत को तैयार करना:

इस महीने में रबी की फसल तैयार होती है वहीं दूसरी तरफ किसान अपनी जायद फसलों की  तैयारी में लगे होते हैं। किसान इस फसलों को तेज तापमान और तेज  चलने वाली हवाओ से अपनी फसलों को  बचाए रखते हैं तथा इसकी अच्छी देखभाल में जुटे रहते हैं। किसान खेत में निराई गुड़ाई के बाद फसलों में सही मात्रा में उर्वरक डालना आवश्यक होता है। निराई गुड़ाई करना बहुत आवश्यक होता है, क्योंकि कई बार सिंचाई करने के बाद खेतों में कुछ जड़े उगना शुरू हो जाती है जो खेतों के लिए अच्छा नही होता है। इसीलिए उन जड़ों को उखाड़ देना चाहिए , ताकि खेतों में फसलों की अच्छे बुवाई हो सके। इस तरह से खेत की तैयारी जरूर करें। 

खेतों की मिट्टी की जांच समय से कराएं:

mitti ki janch 

अप्रैल के महीनों में खेत की मिट्टियों की जांच कराना आवश्यक है जांच करवा कर आपको यह  पता चल जाता है।कि मिट्टियों में क्या खराबी है ?उन खराबी को दूर करने के लिए आपको क्या करना है? इसीलिए खेतों की मिट्टियों की जांच कराना 3 वर्षों में एक बार आवश्यक है आप के खेतों की अच्छी फसल के लिए। खेतों की मिट्टियों में जो पोषक तत्व मौजूद होते हैं जैसे :फास्फोरस, सल्फर ,पोटेशियम, नत्रजन ,लोहा, तांबा मैग्नीशियम, जिंक आदि। खेत की मिट्टियों की जांच कराने से आपको इनकी मात्रा का भी ज्ञान प्राप्त हो जाता है, कि इन पोषक तत्व को कितनी मात्रा में और कब मिट्टियों में मिलाना है इसीलिए खेतों की मिट्टी के लिए जांच करना आवश्यक है। इस तरह से खेत की तैयारी करना फायेदमंद रहता है । 

ये भी पढ़े: अधिक पैदावार के लिए करें मृदा सुधार

खेतों के लिए पानी की जांच कराएं

pani ki janch 

फसलो के लिए पानी बहुत ही उपयोगी होता है इस प्रकार पानी की अच्छी गुणवत्ता का होना बहुत ही आवश्यक होता है।अपने खेतों के ट्यूबवेल व नहर से आने वाले पानी की पूर्ण रूप से जांच कराएं और पानी की गुणवत्ता में सुधार  लाए, ताकि फसलों की पैदावार ठीक ढंग से हो सके और किसी प्रकार की कोई हानि ना हो।

अप्रैल(April) के महीने में खाद की बुवाई करना:

कटाई के बाद अप्रैल माह में खेत की तैयारी (खाद, जुताई) 

 गोबर की खाद और कम्पोस्ट खेत के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं। खेत को अच्छा रखने के लिए इन दो खाद द्वारा खेत की बुवाई की जाती है।मिट्टियों में खाद मिलाने से खेतों में सुधार बना रहता है,जो फसल के उत्पादन में बहुत ही सहायक है।

अप्रैल(April) के महीने में हरी खाद की बुवाई

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पिछले कई वर्षों से गोबर की खाद का ज्यादा प्रयोग नहीं हो रहा है। काफी कम मात्रा में गोबर की खाद का प्रयोग हुआ है अप्रैल के महीनों में गेहूं की कटाई करने के बाद ,जून में धान और मक्का की बुवाई के बीच लगभग मिलने वाला 50 से 60 दिन खाली खेतों में, कुछ कमजोर हरी खाद बनाने के लिए लोबिया, मूंग, ढैंचा खेतों में लगा दिए जाते हैं। किसान जून में धान की फसल बोने से एक या दो दिन पहले ही, या फिर मक्का बोने से 10-15 दिन के उपरांत मिट्टी की खूब अच्छी तरह से जुताई कर देते हैं इससे खेतों की मिट्टियों की हालत में सुधार रहता है। हरी खाद के उत्पादन  के लिए सनई, ग्वार , ढैंचा  खाद के रूप से बहुत ही उपयुक्त होते हैं फसलों के लिए।  

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली फसलें

april mai boi jane wali fasal 

अप्रैल के महीने में किसान निम्न फसलों की बुवाई करते हैं वह फसलें कुछ इस प्रकार हैं: 

साठी मक्का की बुवाई

साठी मक्का की फसल को आप अप्रैल के महीने में बुवाई कर सकते हैं यह सिर्फ 70 दिनों में पककर एक कुंटल तक पैदा होने वाली फसल है। यह फसल भारी तापमान को सह सकती है और आपको धान की खेती करते  समय खेत भी खाली  मिल जाएंगे। साठी मक्के की खेती करने के लिए आपको 6 किलोग्राम बीज तथा 18 किलोग्राम वैवस्टीन दवाई की ज़रूरत होती है। 

ये भी पढ़े: Fasal ki katai kaise karen: हाथ का इस्तेमाल सबसे बेहतर है फसल की कटाई में

बेबी कार्न(Baby Corn) की  बुवाई

किसानों के अनुसार बेबी कॉर्न की फसल सिर्फ 60 दिन में तैयार हो जाती है और यह फसल निर्यात के लिए भी उत्तम है। जैसे : बेबी कॉर्न का इस्तेमाल सलाद बनाने, सब्जी बनाने ,अचार बनाने व अन्य सूप बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। किसान बेबी कॉर्न की खेती साल में तीन चार बार कर अच्छे धन की प्राप्ति कर सकते हैं। 

अप्रैल(April) के महीने में मूंगफली की  बुवाई

मूंगफली की फसल की बुवाई किसान अप्रैल के आखिरी सप्ताह में करते हैं। जब गेहूं की कटाई हो जाती है, कटाई के तुरंत बाद किसान मूंगफली बोना शुरू कर देते है। मूंगफली की फसल को उगाने के लिए किसान इस को हल्की दोमट मिट्टी में लगाना शुरु करते हैं। तथा इस फसल के लिए राइजोवियम जैव खाद का  उपचारित करते हैं। 

अरहर दाल की बुवाई

अरहर दाल की बढ़ती मांग को देखते हुए किसान इसकी 120 किस्में अप्रैल के महीने में लगाते हैं। राइजोवियम जैव खाद में 7 किलोग्राम बीज को मिलाया जाता है। और लगभग 1.7 फुट की दूरियों पर लाइन बना बना कर बुवाई शुरू करते हैं। बीजाई  1/3  यूरिया व दो बोरे सिंगल सुपर फास्फेट  किसान फसलों पर डालते हैं , इस प्रकार अरहर की दाल की बुवाई की जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां

April maon boi jane wali sabjiyan अप्रैल में विभिन्न विभिन्न प्रकार की सब्जियों की बुवाई की जाती है जैसे : बंद गोभी ,पत्ता गोभी ,गांठ गोभी, फ्रांसबीन , प्याज  मटर आदि। ये हरी सब्जियां जो अप्रैल के माह में बोई जाती हैं तथा कई पहाड़ी व सर्द क्षेत्रों में यह सभी फसलें अप्रैल के महीने में ही उगाई जाती है।

खेतों की कटाई:

किसान खेतों में फसलों की कटाई करने के लिए ट्रैक्टर तथा हार्वेस्टर और रीपर की सहायता लेते हैं। इन उपकरणों द्वारा कटाई की जाती है , काटी गई फसलों को किसान छोटी-छोटी पुलिया में बांधने का काम करता है। तथा कहीं गर्म स्थान जहां धूप पढ़े जैसे, गर्म जमीन , यह चट्टान इन पुलिया को धूप में सूखने के लिए रख देते है। जिससे फसल अपना प्राकृतिक रंग हासिल कर सके और इन बीजों में 20% नमी की मात्रा पहुंच जाए। 

ये भी पढ़े: Dhania ki katai (धनिया की कटाई)

खेत की जुताई

किसान खेत जोतने से पहले इसमें उगे पेड़ ,पौधों और पत्तों को काटकर अलग कर देते हैं जिससे उनको साफ और स्वच्छ खेत की प्राप्ति हो जाती है।किसी भारी औजार से खेत की जुताई करना शुरू कर दिया जाता है। जुताई करने से मिट्टी कटती रहती है साथ ही साथ इस प्रक्रिया द्वारा मिट्टी पलटती रहती हैं। इसी तरह लगातार बार-बार जुताई करने से खेत को गराई प्राप्त होती है।मिट्टी फसल उगाने योग्य बन जाती है। 

अप्रैल(April) के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां:

अप्रैल के महीनों में आप निम्नलिखित सब्जियों की बुवाई कर ,फसल से धन की अच्छी प्राप्ति कर सकते हैं।अप्रैल के महीने में बोई जाने वाली सब्जियां कुछ इस प्रकार है जैसे: धनिया, पालक , बैगन ,पत्ता गोभी ,फूल गोभी कद्दू, भिंडी ,टमाटर आदि।अप्रैल के महीनों में इन  सब्जियों की डिमांड बहुत ज्यादा होती है।  अप्रैल में शादियों के सीजन में भी इन सब्जियों का काफी इस्तेमाल किया जाता है।इन सब्जियों की बढ़ती मांग को देखते हुए, किसान अप्रैल के महीने में इन सब्जियों की पैदावार करते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको हमारे इस आर्टिकल द्वारा कटाई के बाद खेत को किस तरह से तैयार करते हैं , तथा खेत में कौन सी फसल उगाते हैं आदि की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर ली होगी। यदि आप हमारी दी हुई खेत की तैयारी की जानकारी से संतुष्ट है, तो आप हमारे इस आर्टिकल को सोशल मीडिया तथा अपने दोस्तों के साथ शेयर कर सकते हैं.

एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल

एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल

सीएम ने आखिरी दौर में की घोषणा, अब सर्वर डाउन

पहले ही उपज बेच चुके हैं कुछ किसान, चूक गए चौहान मध्य प्रदेश राज्य सरकार ने
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर मूंग की सरकारी खरीद शुरू करने का निर्णय लिया है। किसान हित में मुख्यमंत्री के इस निर्णय को देर से लिया गया फैसला बताया जा रहा है। मध्य प्रदेश में मूंग की खेती करने वाले किसानों के लिए समर्थन मूल्य पर उपज खरीदने के सरकारी निर्णय की जरूरी खबर आई तो जरूर है, लेकिन देरी से। गुड न्यूज ये भी है कि सरकार ने इस साल समर्थन मूल्य में आंशिक लेकिन वृद्धि जरूर की है।



ये भी पढ़ें:
केन्द्र सरकार ने 14 फसलों की 17 किस्मों का समर्थन मूल्य बढ़ाया

टाइमिंग पर सवाल -

भले ही मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यह एक किसान समर्थित फैसला हो, लेकिन इसकी टाइमिंग पर भी सवाल उठ रहे हैं। उन पर मूंग के समर्थन मूल्य की घोषणा के संदर्भ में चूक गए चौहान वाली कटूक्तियां की जा रहीं हैं।

उपज बेच चुके किसान -

किसानों का कहना है कि, मध्य प्रदेश सरकार ने समर्थन मूल्य पर खरीदी करने में देर कर दी है। इस घोषणा एवं खरीदी संबंधी रजिस्ट्रेशन आदि की प्रक्रिया पूरी होने के पहले तक अधिकांश किसानों ने कृषि उपज मंडी में ओने-पोने दाम पर मूंग की अपनी उपज बेच दी है।



ये भी पढ़ें:
खरीफ विपणन सीजन 2020-21 के दौरान न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का क्रियान्वयन

प्रक्रिया इस बार -

मध्य प्रदेश में इस साल समर्थन मूल्य पर खरीदी करने का रजिस्ट्रेशन सिर्फ सहकारी सोसायटी के माध्यम से हो रहा है। ऐसी स्थिति में पंजीकरण का अन्य कोई विकल्प न होने से भी किसान असमंजस में हैं, कि वे किस तरह समर्थन मूल्य पर उपज का रजिस्ट्रेशन कराएं। मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के बरेली आदि क्षेत्रों में ग्रीष्म कालीन सीजन में गेहूं, चना, कटाई के फौरन बाद मूंग की खेती शुरू कर दी जाती है। इस चक्र के अनुसार इस बार भी क्षेत्र के कृषकों ने लगभग 18 से 20 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की बोवनी की थी।



ये भी पढ़ें:
न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों की खरीद जारी रहेगी

तंत्र की खामी -

इंटरनेट आधारित समर्थन मूल्य पर कृषि उपज के रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया तंत्र की सबसे बड़ी समस्या सर्वर डाउन होने की है। किसानों ने जी तोड़ मेहनत कर मूंग उपजाई थी, लेकिन सरकारी खरीद नीति ने फिलहाल किसानों की मुसीबत बढ़ा दी है। कई जगहों पर सर्वर डाउन होने की वजह से पंजीयन नहीं हो पा रहे हैं। पंजीकरण सिर्फ सहकारी सोसायटी से होने के कारण दूसरा विकल्प न होने से भी किसान मूंग की उपज के पंजीकरण से वंचित हैं।



ये भी पढ़ें:
अब सहकारी समितियों के माध्यम से किसानों को मिलेगा सरकार की योजनाओं का लाभ

इनको किया था दायरे में शामिल -

सरकार ने पूर्व में धान, गेहूं, चना आदि उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की थी, लेकिन सरकार के द्वारा हाल ही में मूंग की उपज को समर्थन मूल्य के दायरे में लाया गया।

पिछले माह के मुकाबले अंतर -

पिछले साल सरकार ने मूंग के बारे में 15 जून से समर्थन मूल्य की घोषणा की थी। इस साल सरकार ने 18 जुलाई से समर्थन मूल्य पर मूंग की खरीदी प्रारंभ करने का निर्णय लिया है। हालांकि इस बार सरकार ने समर्थन मूल्य में 79 रुपए की वृद्धि की है।

समर्थन मूल्य तब और अब -

सरकार ने इस वर्ष मूंग का समर्थन मूल्य 79 रुपए बढ़ाकर 7275 रुपए तय किया है। पिछले साल मूंग का समर्थन मूल्य 7196 रुपए था। आंकड़ों के मान से इस बार बाडी क्षेत्र में 18 से 20 हजार हेक्टेयर भूमि में मूंग की बोवनी हुई।
मूंग का भाव एमएसपी तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की कवायद शुरू

मूंग का भाव एमएसपी तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार की कवायद शुरू

भोपाल। मूंग (Mung bean) के भाव को एमएसपी (MSP) या न्यूनतम समर्थन मूल्य (Minimum Support Price) तक पहुंचाने के लिए मध्यप्रदेश सरकार ने कवायद शुरू कर दी है। मध्यप्रदेश की मंडियों में जल्दी ही मूंग के दामों में तेजी आ सकती है।

दूसरे राज्यों के कारोबारी ही मूंग की नीलामी में शामिल

मिली जानकारी के अनुसार 2021-22 सीजन में गोदाम से बिकने वाली मूंग की ई-नीलामी में राज्य सरकार, प्रदेश के मूंग कारोबारियों को अलग कर सकती है। इस बार दूसरे राज्यों के कारोबारी ही मूंग की नीलामी में शामिल होंगे। उन सभी कारोबारियों को जिला स्तर से शर्त माननी होगी, कि वो सभी कारोबारी मूंग खरीद के बराबर की एफडीआर अथवा बैंक गारंटी के कागजात प्रस्तुत करें।

ये भी पढ़ें: एमपी के सीएम शिवराज की समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदी घोषणा की टाइमिंग पर सवाल
मान लिया कि किसी कारोबारी को एक करोड़ रुपए की मूंग खरीदनी है, तो उसे उतने ही रुपए की एफडीआर अथवा बैंक की गारंटी देनी होगी। इस प्रक्रिया के बाद जिला कलेक्टर या उनके अधिकृत अधिकारी के समक्ष इसका प्रमाण देंगे। मंडी अनुज्ञा पत्र भी प्रदेश से बाहर का प्राप्त करना आवश्यक होगा। सभी कागजी कार्यवाही पूरी होने के बाद ही कारोबारी मूंग की ई-नीलामी में शामिल हो सकेंगे। इस प्रक्रिया के पीछे सरकार चाहती है कि, मूंग रीसेल के लिए प्रदेश के बाजार में न आए, जिससे मंडियों में मूंग के दामों में बढ़ोतरी हो सके और मूंग के रेट को कुछ सहारा मिल सके। इससे मूंग को एमएसपी तक पहुंचाने की कवायद सफल हो सकती है।

ये भी पढ़ें: MSP on Crop: एमएसपी एवं कृषि विषयों पर सुझाव देने वृहद कमेटी गठित, एक संगठन ने बनाई दूरी

कारोबारियों के सामने आ सकती हैं मुश्किलें

सरकार के इस फैसले के बाद, मूंग की ई- नीलामी में शामिल होने वाले कारोबारियों के सामने काफी मुश्किलें आ सकती हैं। क्योंकि, इस फैसले के बाद कारोबारियों को मूंग खरीद के लिए बड़ी रकम लगानी होगी।

फैसले के बाद 200 रुपए बढ़े भाव

मूंग की ई-नीलामी में सरकार के इस फैसले के बाद, मूंग के भाव मे 200 रुपये तक कि बढ़ोतरी हुई है। इंदौर मंडी में अब 6300 रु की जगह 6650 रु प्रति क्विंटल और एवरेज में 5400 रु की जगह 6000 रु प्रति क्विंटल हो गए हैं
MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

MSP पर छत्तीसगढ़ में मूंग, अरहर, उड़द खरीदेगी सरकार

फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना लक्ष्य

छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने
मूंग, अरहर और उड़द की उपज की समर्थन मूल्य पर खरीद करने की घोषणा की है। खरीद प्रक्रिया क्या होगी, किस दिन से खरीद चालू होगी, किसान को इसके लिए क्या करना होगा, सभी सवालों के जानिए जवाब मेरीखेती पर। छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश में कृषकों के मध्य फसल विविधता (Crop Diversification) को बढ़ाना देने के लिए यह फैसला किया है। इसके तहत छत्तीसगढ़ प्रदेश सरकार ने दाल के न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था में बदलाव किया है।

ये भी पढ़ें: सोयाबीन, कपास, अरहर और मूंग की बुवाई में भारी गिरावट के आसार, प्रभावित होगा उत्पादन

अधिक मूल्य दिया जाएगा -

सरकार के निर्णय के अनुसार अब दलहन पैदा करने वाले किसानों को दाल का न्यूनतम समर्थन मूल्य अधिक दिया जाएगा। ऐसा करने से प्रदेश में अधिक से अधिक किसान दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित होंगे।

दलहनी फसलों को प्रोत्साहन -

छत्तीसगढ़ प्रदेश राज्य सरकार ने छग में दलहनी फसलों की खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए मूंग, अरहर, उड़द की उपज के लिए समर्थन मूल्य की घोषणा की है।

फसल विविधीकरण (Crop Diversification) -

मूंग, अरहर, उड़द जैसी पारंपरिक दलहनी फसलों को समर्थन मूल्य प्रदान करने का राज्य सरकार का मकसद फसल विविधीकरण को बढ़ावा देना भी है।

ये भी पढ़ें: न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कृषि उत्पादों की खरीद जारी रहेगी
फसल विविधीकरण के लिए राज्य सरकार ने मूंग, उड़द और अरहर को एमएसपी की दरों पर खरीदने की घोषणा की है।

इतनी मंडियों में खरीद -

ताजा सरकारी निर्णय के बाद छत्तीसगढ़ प्रदेश की 25 मंडियों में अब न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर दाल की खरीदारी की जाएगी। मंडिंयों का चयन करते समय इस बात का ख्याल रखा गया है कि, अधिक से अधिक किसान प्रदेश सरकार की योजना से लाभान्वित हों। मंडियां नजदीक होने से दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को मौके पर लाभ मिलेगा और उनकी कमाई बढ़ेगी।

खरीफ खरीद वर्ष 2022-23 -

राज्य सरकार के फैसले के तहत अब छत्तीसगढ़ प्रदेश में मौजूदा खरीफ फसल (Kharif Crops) खरीद वर्ष 2022-23 में अरहर, मूंग और उड़द की खरीद एमएसपी पर की जाएगी। सरकारी सोसायटी को हरा मूंग बेचने वाले किसानों को प्रति क्विंटल 7755 रुपए मिलेंगे। राज्य सरकार द्वारा संचालित नोडल एजेंसी छत्तीसगढ़ राज्य सहकारी विवणन संघ (मार्कफेड) द्वारा राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर दाल की खरीदारी की जाएगी।

ये भी पढ़ें: बारिश के चलते बुंदेलखंड में एक महीने लेट हो गई खरीफ की फसलों की बुवाई

दलहनी फसलों का रकबा बढ़ाना लक्ष्य -

छत्तीसगढ़ के कृषि मंत्री रविंद्र चौबे ने राज्य में दलहन फसलों का रकबा बढ़ाने का आह्वान किया। उन्होंने कृषि विभाग को किसानों को दलहन की पैदावार करने के लिए जी तोड़ मेहनत करने के लिए भी प्रेरित किया। उन्होंने छत्तीसगढ़ राज्य के किसानों को दलहनी फसलों की खेती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए और फसल विविधीकरण को बढ़ावा देने हेतु दाल को एमएसपी के दायरे में लाने की सरकारी मंशा की जानकारी दी।

ये भी पढ़ें: दलहनी फसलों में लगने वाले रोग—निदान
मीडिया को उन्होंने बताया कि, 2022-23 के खरीफ फसल प्लान के अनुसार दलहनी फसलों का रकबा बढ़ा है। उन्होेंने दलहनी फसलों के रकबे में 22 फीसदी की बढ़ोतरी होने की जानकारी दी।

उत्पादन का लक्ष्य बढ़ा -

राज्य सरकार ने इस साल प्रदेश में दो लाख टन से अधिक (232,000) दाल उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य पिछले खरीफ सीजन के संशोधित अनुमान से लगभग 67.51 फीसदी अधिक है।

पिछली खरीद के आंकड़े -

छत्तीसगढ़ राज्य सरकार ने खरीफ सीजन 2021-22 में राज्य के दलहन उत्पादक किसानों से 139,040 टन दाल की खरीद की थी। पिछले साल के 501 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की तुलना में इस बार 520 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर दाल उत्पादन का लक्ष्य प्रदेश में रखा गया है।

ये भी पढ़ें: गेहूं समेत इन 6 रबी फसलों पर सरकार ने बढ़ाया MSP,जानिए कितनी है नई दरें?

अहम होंगी ये तारीख -

प्रवक्ता सूत्र आधारित मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक राज्य सरकार ने इस साल एमएसपी पर दाल की खरीद के लिए सभी संभागीय आयुक्त, कलेक्टर, मार्कफेड रीजनल ऑफिस और मंडी बोर्ड को विस्तृत दिशा-निर्देश दिए हैं। किसानों के लिए एमएसपी पर उड़द, मूंग और अरहर बेचने की तारीख जारी कर दी गई है। इसके मुताबिक किसान 17 अक्टूबर 2022 से लेकर 16 दिसंबर 2022 तक उड़द और मूंग की उपज एमएसपी पर बेच पाएंगे। अरहर की खरीद 13 मार्च 2023 से लेकर 12 मई 2023 तक की जाएगी।